“बिहार विधानसभा चुनाव 2025: गठबंधन की ‘गदहपचीसी’ और मतदाताओं के लिए निर्णायक क्षण”

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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए और महागठबंधन के बीच सीट शेयरिंग और गठबंधन राजनीति का नया दंगल
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  • • बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में गठबंधन की राजनीति में गड़बड़ी • एनडीए और महागठबंधन दोनों में सीट शेयरिंग की उलझन • मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव पर दबाव • भ्रष्टाचार और कानून-व्यवस्था के मुद्दे चुनावी रणनीति पर असर • नए खिलाड़ी: प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी और जातिगत समीकरण

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में गठबंधन की राजनीति ने एक बार फिर सियासी हलकों में सस्पेंस और तकरार की स्थिति पैदा कर दी है। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही खेमों में टिकट बंटवारे और सहयोगियों की महत्वाकांक्षा के चलते राजनीतिक जटिलताओं (Power Word) ने जन्म ले लिया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि मतदाता समझदारी से फैसले नहीं लेते हैं तो 14 नवंबर के बाद सरकार बनाने के लिए हॉर्स ट्रेडिंग (Sentiment Word) जैसी स्थिति बन सकती है।

सिद्धांत विहीन गठबंधन का यह खेल, किसी भी जीवंत लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। जदयू और राजद जैसी पार्टियां, जो कभी एक-दूसरे की राजनीतिक उन्नति में सहायक रही हैं, अब भी अपने गठबंधन सहयोगियों की महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रित करने में लगी हुई हैं।

जदयू और राजद की चालाकी और सहयोगियों पर दबाव

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जदयू और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की राजद, दोनों ने गठबंधन के भीतर राजनीतिक दांव-पेंच खेलते हुए अपने सहयोगियों को कमजोर करने की रणनीति अपनाई है।

जदयू ने स्पष्ट किया है कि लोजपा आर, हम और रालोमो को भाजपा मैनेज करे। वहीं तेजस्वी यादव ने वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी और कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग पर तंज कसकर यह संदेश दिया कि महागठबंधन में सभी दलों की ताकत बराबर नहीं है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा ने एनडीए में सीटों का फॉर्मूला पहले ही सुलझा लिया, जिससे जदयू और बीजेपी की बढ़त हुई। एनडीए में जदयू और बीजेपी बराबर-बराबर सीटों पर मैदान में हैं, जबकि छोटे दलों को अपेक्षित सीटें नहीं मिलीं।

सीट बंटवारे में गुत्थी और सत्ता का खेल

गठबंधन की राजनीति में सबसे बड़ा सवाल यही है कि सहयोगी दलों की महत्वाकांक्षा और जमीन पर हकीकत के बीच तालमेल कैसे बने।
एनडीए ने सहयोगियों के बीच सीट बंटवारे का फॉर्मूला पहले ही तय कर लिया, जबकि महागठबंधन अभी भी सीट शेयरिंग को लेकर उलझन में है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि इस बार 2025 के चुनाव में राजग और महागठबंधन दोनों के भीतर समीकरण बदल चुके हैं, जिससे सीट शेयरिंग पर असर पड़ा है। भाजपा और जदयू ने छोटी पार्टियों के दबाव को नियंत्रित कर अपनी बढ़त बनाई, जबकि महागठबंधन के लिए तालमेल बैठाना चुनौतीपूर्ण है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुनौतियां और राजनीतिक दबाव

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस चुनाव में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पिछले दो दशकों से उनका नेतृत्व स्थिर रहा है, लेकिन इस बार भ्रष्टाचार और कानून-व्यवस्था से जुड़ी समस्याएं उनकी छवि पर प्रश्न चिह्न लगा रही हैं।

बीजेपी, लोजपा आर, हम और रालोमो का दबाव उनके ऊपर है, और विरोधी दलों के भ्रष्टाचार के आरोप उनकी छवि को प्रभावित कर रहे हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि चुनाव के अंतिम चरण में यदि उन्हें अपेक्षित सीटें नहीं मिलीं, तो राजनीतिक खेल और भी जटिल हो सकता है।

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महागठबंधन के लिए मुश्किलें और कांग्रेस की भूमिका

महागठबंधन के लिए चुनौतियां अलग प्रकार की हैं। एनडीए ने सीटों का फॉर्मूला तय कर लिया है, जबकि महागठबंधन को सहयोगियों और कांग्रेस आलाकमान से तालमेल बैठाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
कांग्रेस ने इस बार बिहार में पहले से ज्यादा सीटों की आकांक्षा जताई है, जिससे राजद और अन्य सहयोगियों के लिए तालमेल बनाना कठिन हो गया है।

इसके अलावा आईआरसीटीसी होटल भ्रष्टाचार केस में लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव के खिलाफ आरोप तय होने से महागठबंधन की रणनीति पर असर पड़ा है।

नए खिलाड़ियों का एंगल – प्रशांत किशोर और जनसुराज

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की नवस्थापित पार्टी जनसुराज भी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अहम भूमिका निभा सकती है।
जनसुराज ने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करना शुरू कर दिया है और जातिगत समीकरणों का ख्याल रखते हुए गठबंधन को चुनौती दी है।
विश्लेषकों का कहना है कि इस नए एंगल से एनडीए और महागठबंधन दोनों को नुकसान हो सकता है।

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अंतिम चरण में मतदाताओं की भूमिका

पहले चरण के चुनाव के लिए केवल चार दिन बचे हैं। जिन उम्मीदवारों को कम समय में प्रचार करना है, उनकी जीत का परिणाम अनिश्चित हो सकता है।
अब यह बिहार के मतदाताओं और प्रबुद्धजनों पर निर्भर है कि वे गठबंधन की गदहपचीसी से बाहर निकलकर नया भविष्य बनाएं।

सवाल यह है कि गठबंधन कब तक उलझा रहेगा और मतदाता अपने निर्णय से सत्ता के समीकरण बदलेंगे या नहीं।

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