हार के बावजूद फिर मौका — तेजस्वी ने अनीता देवी को दिया वारिसलीगंज से टिकट
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एक बड़ा फैसला लिया है।
लोकसभा चुनाव में हार के बावजूद, बाहुबली अशोक महतो की पत्नी अनीता देवी पर तेजस्वी ने एक बार फिर भरोसा जताया है।
लोकसभा चुनाव में अनीता देवी ने मुंगेर सीट से केंद्रीय मंत्री ललन सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें भारी मतों से हार का सामना करना पड़ा। अब तेजस्वी यादव ने उन्हें वारिसलीगंज विधानसभा सीट से राजद उम्मीदवार बनाया है।
9 अक्टूबर की रात, अनीता देवी राबड़ी आवास पहुंचीं, जहां तेजस्वी यादव ने उन्हें टिकट सौंपा।
इस बार वह एनडीए उम्मीदवार और बीजेपी नेत्री अरुणा देवी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरेंगी।
17 साल जेल में रह चुके अशोक महतो का राजनीतिक दांव – पत्नी को उतारा चुनावी मैदान में

बाहुबली अशोक महतो की राजनीतिक सक्रियता अब उनकी पत्नी के माध्यम से दिख रही है।
जेल ब्रेक कांड में सजायाफ्ता होने के कारण अशोक खुद चुनाव नहीं लड़ सकते।
उन्होंने 17 साल जेल में बिताए और दिसंबर 2023 में रिहा हुए।
रिहाई के बाद से वे लगातार वारिसलीगंज क्षेत्र में जनसंपर्क और राजनीतिक सक्रियता बढ़ा रहे हैं।
लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने पत्नी अनीता देवी को मैदान में उतारा था।
अब विधानसभा चुनाव में भी वही रणनीति दोहराई जा रही है।
वारिसलीगंज सीट पर अबकी बार भी मुकाबला दो बाहुबली परिवारों के बीच होगा —
अशोक महतो बनाम अखिलेश सिंह, लेकिन इस बार दोनों की पत्नियां आमने-सामने होंगी।
25 साल की सियासी शह-मात — वारिसलीगंज की बाहुबली राजनीति की कहानी
वारिसलीगंज की राजनीति में पिछले 25 सालों से बाहुबली परिवारों का वर्चस्व रहा है।
यह सिलसिला साल 2000 से शुरू हुआ, जब अखिलेश सिंह की पत्नी अरुणा देवी ने जेडीयू टिकट पर जीत दर्ज की।
इसके बाद 2005 में अशोक महतो के करीबी प्रदीप महतो मैदान में उतरे।
हालांकि फरवरी 2005 में वे हार गए, लेकिन अक्टूबर 2005 के चुनाव में अरुणा देवी को हराकर जीत हासिल की।
2010 में प्रदीप महतो ने लगातार दूसरी जीत दर्ज की, जबकि 2015 में अरुणा देवी ने वापसी की।
2020 में भी अरुणा देवी ने बीजेपी टिकट पर लगातार दूसरी बार जीत हासिल की और राजद उम्मीदवार आरती सिंह को 25 हजार वोटों के अंतर से हराया।
अब 2025 में वही जंग दोहराई जा रही है,
फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार अखिलेश सिंह की पत्नी अरुणा देवी के सामने अशोक महतो की पत्नी अनीता देवी हैं।
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जेल से रिहाई के बाद पूरी तरह सक्रिय अशोक महतो – ‘रॉबिनहुड’ छवि के सहारे समर्थन जुटाने में व्यस्त
अशोक महतो की राजनीति हमेशा से विवादों के साथ-साथ जनसमर्थन से भी जुड़ी रही है।
90 के दशक में नवादा-नालंदा-शेखपुरा बेल्ट में जातीय संघर्ष और वर्चस्व की लड़ाई में उनका गुट प्रमुख रहा।
कई आपराधिक मुकदमों के बावजूद, स्थानीय मतदाता उन्हें “रॉबिनहुड” की छवि में देखने लगे।
अब वारिसलीगंज में वही पुरानी छवि फिर से उभर रही है।
अशोक महतो रिहाई के बाद से लगातार गांव-गांव जाकर जनसंपर्क अभियान चला रहे हैं।
उनका मकसद है — अनीता देवी को जीत दिलाना और महतो परिवार की सियासी पकड़ को फिर से मजबूत करना।
टिकट मिलने से पहले विवाद – राबड़ी आवास पर नहीं मिली एंट्री
9 अक्टूबर की रात, अशोक महतो राबड़ी आवास पहुंचे थे।
सूत्रों के मुताबिक, वे टिकट के सिलसिले में तेजस्वी यादव से मिलने आए थे।
लेकिन सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया।
वो काफी देर तक बाहर खड़े रहे, पर मुलाकात नहीं हो पाई।
इस घटना के बाद कई राजनीतिक कयास लगाए गए कि शायद राजद नेतृत्व ने उनसे दूरी बना ली है।
लेकिन इन अटकलों पर विराम लगाते हुए तेजस्वी यादव ने अनीता देवी को टिकट देकर साफ संकेत दे दिया —
“राजद का भरोसा अब भी महतो परिवार के साथ है।”
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अनीता देवी का बयान – “यह सम्मान नहीं, बड़ी जिम्मेदारी है”
टिकट मिलने के बाद अशोक महतो ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से एक पोस्ट साझा किया।
उन्होंने लिखा —
“बहुत-बहुत धन्यवाद वारिसलीगंज विधानसभा की सम्मानित जनता को।
गरीबों के मसीहा लालू प्रसाद यादव जी और युवाओं के प्रेरणास्रोत तेजस्वी यादव जी का आभार,
जिन्होंने अनीता जी पर विश्वास जताकर जनसेवा का अवसर दिया।
यह हमारे लिए सम्मान ही नहीं, बल्कि एक बड़ी जिम्मेदारी भी है।”
उनकी इस पोस्ट से साफ झलकता है कि राजद ने इस चुनाव को भावनात्मक और जनाधार आधारित लड़ाई के रूप में पेश करने की रणनीति बनाई है।
दो बाहुबली परिवारों की पत्नियों में मुकाबला तय, वारिसलीगंज में होगी हाई-वोल्टेज टक्कर
वारिसलीगंज सीट एक बार फिर बाहुबल बनाम बाहुबल की जंग का मैदान बन गई है।
अखिलेश सिंह की पत्नी अरुणा देवी और अशोक महतो की पत्नी अनीता देवी के बीच यह लड़ाई
बिहार की राजनीति में एक हाई-वोल्टेज मुकाबले के रूप में देखी जा रही है।
तेजस्वी यादव का अनीता देवी पर दोबारा भरोसा जताना एक राजनीतिक संदेश भी है —
कि राजद अभी भी मैदान में आक्रामक मुद्रा में है,
और वह एनडीए को उनके गढ़ में चुनौती देने से पीछे नहीं हटेगा।
अब देखना यह होगा कि
25 साल की सियासी शह-मात में
इस बार कौन बाज़ी मारता है —
अखिलेश सिंह की परंपरा या अशोक महतो का नया दांव।
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