NDA में मुख्यमंत्री को ले कर सस्पेंस ,सवर्ण मुख्यमंत्री चुनेगी बीजेपी ? भाजपा नेता ने किया खुलासा!

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार चुनाव 2025 से पहले चर्चा में
Highlights
  • • नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के लिए ‘आवश्यक और अनिवार्य’ हैं। • कोई भी दल अकेले सत्ता में नहीं आ सकता, गठबंधन अनिवार्य है। • अमित शाह के बयान से राजनीतिक बहस तेज हुई। • BJP के पास अभी नीतीश कुमार के बराबर का चेहरा नहीं है। • बिहार में पिछड़ा वर्ग ही मुख्यमंत्री पद के लिए स्वीकार्य चेहरा माना जाता है। • भाजपा को अकेले 122 सीटें जीतना लगभग असंभव दिखता है।

बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच एक बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी बीस साल पहले थी — मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की केंद्रीय भूमिका। बिहार की राजनीति में पिछले दो दशकों में कई प्रयोग हुए, कई गठबंधन बने और टूटे, लेकिन नीतीश कुमार का वर्चस्व कायम रहा।

नीतीश कुमार—बिहार राजनीति के ‘आवश्यक और अनिवार्य’ स्तंभ

पिछले 20 सालों में बिहार की राजनीति में यह बात स्थापित हो चुकी है कि नीतीश कुमार के बिना कोई सत्ता का समीकरण अधूरा है।
राजद हो या भाजपा, हर दल को अंततः नीतीश कुमार की भूमिका को स्वीकार करना पड़ा है। यह पहली और सबसे सशक्त सच्चाई है — बिहार की सत्ता का दरवाज़ा नीतीश कुमार से होकर ही खुलता है।

दूसरा सिद्धांत—बिना गठबंधन कोई सत्ता नहीं

बिहार में जातीय समीकरण इतने जटिल हैं कि कोई भी पार्टी अकेले बहुमत नहीं पा सकती।
भाजपा और राजद दोनों जानते हैं कि Nitish Kumar Bihar Politics 2025 के केंद्र में हैं। जिसने नीतीश को नकारने की कोशिश की, वह सत्ता से बाहर हुआ। यही कारण है कि हर राजनीतिक समीकरण में नीतीश की ज़रूरत बनी रहती है।

तीसरा सिद्धांत—नीतीश कुमार ही ‘सत्ता का चेहरा’

भले ही किसी दल के पास ज्यादा सीटें हों, लेकिन जनता के सामने मुख्यमंत्री का चेहरा हमेशा नीतीश कुमार ही रहे हैं।
2005 से लेकर 2020 तक वे हर राजनीतिक गठबंधन का सबसे बड़ा चेहरा बने रहे। उनकी ईमानदार और सशक्त प्रशासनिक छवि ने उन्हें जनता के भरोसे का प्रतीक बनाया।

चौथा सिद्धांत—ईमानदारी और निष्ठा बनी नीतीश की ढाल

नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी और राज्य के प्रति समर्पण है।
राजनीतिक विरोधियों से लेकर सहयोगियों तक, हर कोई उनकी स्वच्छ छवि को स्वीकार करता है। यही कारण है कि वे दो दशकों से अधिक समय से बिहार के सत्ता समीकरण का केंद्र बने हुए हैं।

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अमित शाह के बयान से उठी नई बहस

NDA में मुख्यमंत्री को ले कर सस्पेंस ,सवर्ण मुख्यमंत्री चुनेगी बीजेपी ? भाजपा नेता ने किया खुलासा! 1

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान ने बिहार में नई राजनीतिक बहस को जन्म दिया।
उन्होंने कहा कि “मुख्यमंत्री का फैसला विधायक दल की बैठक में होगा।”
यह बयान भले सीधे-सीधे नीतीश कुमार के खिलाफ न रहा हो, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे भाजपा की नीतीश-निर्भरता पर सवाल के रूप में देखा जा रहा है।
क्या भाजपा भविष्य में नीतीश के बिना बिहार में सरकार बना पाएगी? यही सवाल अब चर्चाओं के केंद्र में है।

BJP के लिए चुनौती—कौन बनेगा मुख्यमंत्री चेहरा?

भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उसके पास अभी तक ऐसा कोई नेता नहीं है जो नीतीश कुमार की बराबरी कर सके।
सुशील कुमार मोदी जैसे नेता ईमानदार और अनुभवी रहे, लेकिन वे भी नीतीश के आभामंडल में दबे रहे।
आज भी भाजपा के पास ऐसा चेहरा नहीं है जो जनता में मुख्यमंत्री पद के लिए उतनी लोकप्रियता रखता हो।

बिहार की राजनीति देश से अलग क्यों है

बिहार की राजनीति पूरी तरह अलग ढांचे पर आधारित है।
जहां महाराष्ट्र या राजस्थान में भाजपा ने सवर्ण मुख्यमंत्री बनाए, वहीं बिहार में पिछड़े वर्ग का चेहरा ही स्वीकार्य है।
यह सामाजिक समीकरण की वह सच्चाई है जिससे कोई भी दल आंख नहीं मूंद सकता। किसी सवर्ण को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश चुनावी आत्मघात साबित होगी।

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क्या महाराष्ट्र जैसा प्रयोग बिहार में संभव है?

राजनीतिक विश्लेषकों में चर्चा है कि भाजपा बिहार में महाराष्ट्र जैसी रणनीति दोहरा सकती है —
सहयोगी दल को हटाकर खुद मुख्यमंत्री बनाना।
लेकिन क्या यह संभव है?
इसके लिए भाजपा को 122 सीटों का बहुमत चाहिए। पिछले चुनाव में उसका स्ट्राइक रेट 67.27% था, वो भी नीतीश के साथ। अकेले चुनाव लड़ने पर यह दर और नीचे जा सकती है।
यानी गणितीय तौर पर यह राह बहुत कठिन दिखती है।

‘आवश्यक और अनिवार्य’ नीतीश का समीकरण अटूट

बिहार में सत्ता का कोई भी समीकरण नीतीश कुमार के बिना संभव नहीं।
वे आज भी राज्य की राजनीति के सबसे स्थिर और निर्णायक चेहरा हैं।
भले भाजपा या राजद जैसे दल कितनी भी कोशिश कर लें, बिहार की राजनीति का संतुलन तब तक कायम रहेगा, जब तक नीतीश इस केंद्र में मौजूद हैं।

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