एनडीए ने अपनाया नया रणनीतिक मोड़
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने अपने उम्मीदवार चयन में बड़ा रणनीतिक बदलाव किया है। पिछली बार भाजपा और जद (यू) दोनों यादव समुदाय को साधने में लगे थे, लेकिन इस बार उन्होंने अपने पारंपरिक समर्थन आधार को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया है। भाजपा ने 2025 में केवल 6 यादव उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि 2020 में यह संख्या 16 थी। नीतीश कुमार की जद (यू) ने भी यादव प्रत्याशियों की संख्या 18 से घटाकर 8 कर दी है।
इसके बजाय भाजपा ने कुशवाहा, निशाद और वैश्य समुदायों के उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी, ताकि गैर-यादव पिछड़ों और उच्च जातियों के भीतर एक मजबूत आधार तैयार किया जा सके। जद (यू) ने अपने मुस्लिम प्रत्याशियों की संख्या भी 11 से घटाकर 4 कर दी है, यह संकेत देते हुए कि मुस्लिम मतदाता अब स्थायी रूप से राजद खेमे में चले गए हैं।
एनडीए का ‘कोर वोट बैंक मॉडल’

एनडीए का यह रणनीतिक मॉडल सीधे कोर वोट बैंक, यानी उच्च जातियों, गैर-यादव ओबीसी, ईबीसी और अनुसूचित जातियों पर निर्भर है। 2014 के बाद भाजपा लगातार प्रयास कर रही थी कि यादव और मुस्लिम वोट बैंक में सेंध डाली जा सके। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में कई यादव उम्मीदवार उतारे गए, ताकि लालू यादव वोट बैंक को तोड़ा जा सके। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में यादव समुदाय ने राजद के साथ मजबूती से खड़े रहने का संकेत दिया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह वही फार्मूला है जिसने 2019 में बिहार में भाजपा को बड़ी सफलता दिलाई थी। गैर-यादव पिछड़ों और दलितों के बीच जातीय रेखाओं को पार करते हुए ‘नरेंद्र मोदी बनाम लालूवाद’ का नारा उभारा गया था। अब वही रणनीति विधानसभा चुनाव में अधिक संगठित रूप में लागू की जा रही है।
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राजद का विस्तारित गठबंधन
वहीं, राजद ने भी अपने हिस्से का सबक लिया है। यादव-मुस्लिम समीकरण अब सत्ता वापसी के लिए पर्याप्त नहीं है। इस बार राजद ने अति पिछड़ों, दलितों और महिलाओं को भी गठबंधन में जगह देने की कोशिश की है। तेजस्वी यादव चाहते हैं कि “सामाजिक न्याय” की पुरानी अवधारणा को “नव-समाजवाद” में बदलें। इसका उद्देश्य आर्थिक असमानता और बेरोजगारी को जातीय सीमाओं से ऊपर उठाकर नया जनाधार तैयार करना है।
नीतीश कुमार की चुनौती
नीतीश कुमार की जद (यू) इस बार असुरक्षित स्थिति में है। मुस्लिम वोटर लगभग पूरी तरह राजद खेमे में चले गए हैं। नीतीश का भरोसा अब अपने जातीय आधार, कुर्मी-कोयरी वोट बैंक और भाजपा समर्थक ऊँची जातियों पर है। हालांकि भाजपा की बढ़ती संगठनात्मक ताकत उनके पारंपरिक इलाकों में सेंध लगा रही है। इसलिए यह चुनाव जद (यू) के लिए सिर्फ जीत की रणनीति नहीं, बल्कि “अस्तित्व की परीक्षा” बन गया है।
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चुनावी परिदृश्य और भविष्य
बिहार चुनाव 2025 में दो समानांतर रणनीतियाँ आमने-सामने हैं:
1. एनडीए की रणनीति: कम दायरे में, लेकिन मजबूत और अनुशासित वोट बैंक को संगठित करना।
2. राजद-INDIA गठबंधन: पारंपरिक आधार को बरकरार रखते हुए नए सामाजिक समूहों को जोड़ना।
यदि एनडीए का ‘कोर वोट बैंक मॉडल’ सफल होता है, तो यह बिहार में यादव-मुस्लिम एकाधिकार का अंत कर सकता है। वहीं, राजद का विस्तारित गठबंधन कामयाब हुआ तो यह संदेश जाएगा कि बिहार की राजनीति अब जाति और धर्म की संकीर्ण रेखाओं से बाहर निकल रही है।
बिहार का चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि सामाजिक प्रतिनिधित्व के नए संतुलन का चुनाव है। एनडीए स्थिरता और सुशासन पर जोर दे रहा है, जबकि राजद न्याय और अवसर के वादे के साथ जनता के सामने है। जनता तय करेगी कि स्थिरता का वादा ज्यादा भरोसेमंद है या परिवर्तन का सपना।
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