महिला मतदाताओं पर केंद्रित बिहार चुनाव की रणनीति
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का दूसरा चरण जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे राजनीतिक दलों की रणनीतियों का केंद्र महिला मतदाता बन गई हैं। एनडीए और महागठबंधन, दोनों ही गठबंधन इस बार महिलाओं को प्रभावित करने के लिए वादों और योजनाओं का सहारा ले रहे हैं। दोनों पक्षों ने वादों का पिटारा तो खोला है, लेकिन टिकट वितरण में महिलाओं को वह सम्मान नहीं मिला जिसकी बातें मंचों से की जा रही हैं।
महिला मतदाताओं का आंकड़ा और टिकट वितरण का असंतुलन
बिहार में कुल 7.90 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 3.50 करोड़ महिलाएं हैं — यानी लगभग आधी आबादी। इसके बावजूद 243 विधानसभा सीटों में केवल 65 महिला उम्मीदवारों को ही टिकट दिया गया है।
महागठबंधन में आरजेडी ने 23, कांग्रेस ने 5, सीपीआई माले ने 1, सीपीआई और सीपीएम ने 0, और वीआईपी ने 1 महिला प्रत्याशी उतारी है। वहीं एनडीए में बीजेपी और जेडीयू ने 13-13, जबकि हम, आरएलएम और एलजेपी ने मिलकर 8 टिकट महिलाओं को दिए हैं।
टिकट वितरण के आंकड़े यह साफ़ बताते हैं कि महिलाओं को वोट बैंक के रूप में तो देखा गया, लेकिन नेतृत्व में स्थान देने के मामले में दोनों गठबंधन पीछे रहे।
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नीतीश कुमार का महिलाओं पर फोकस और योजनाओं का इतिहास
नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा में महिला मतदाताओं की भूमिका हमेशा से निर्णायक रही है।
• 2009 में स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए साइकिल योजना ने उन्हें सामाजिक स्तर पर नई पहचान दी।
• 2015 में शराबबंदी कानून और सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए आरक्षण का फैसला नीतीश की जीत का मुख्य आधार बना।
• 2020 में जीविका योजना ने गांव-गांव में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया।
इन योजनाओं ने नीतीश कुमार को महिलाओं का भरोसा दिलाया। अब 2025 के चुनाव से पहले उन्होंने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के जरिए लगभग 1.20 करोड़ महिलाओं को 10,000 रुपये की सहायता देने का ऐलान कर फिर से महिलाओं का भरोसा जीतने की कोशिश की है।
‘मास्टर स्ट्रोक’ या चुनावी सियासत?
नीतीश कुमार ने चुनाव से कुछ महीने पहले आंगनबाड़ी सेविकाओं और मिड डे मील रसोइयों के मानदेय में भी बढ़ोतरी की।
इसके साथ-साथ पेंशन योजना, मुफ्त अनाज योजना और जनधन खातों में सीधे पैसे भेजने जैसी योजनाओं ने एनडीए की महिलाओं में मजबूत पकड़ बनाई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाओं में “कानून का राज” और “सुरक्षित बिहार” का नारा इस बात का संकेत है कि एनडीए महिलाओं में सुरक्षा की भावना को अपनी सबसे बड़ी ताकत मानता है।

तेजस्वी यादव की चुनौती: महिलाओं को आकर्षित करने की नई राजनीति
दूसरी ओर, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव अब उन वोट बैंक पर नजर गड़ाए हुए हैं जो परंपरागत रूप से नीतीश कुमार के साथ रहे हैं — यानी महिला वोटर।
तेजस्वी ने वादों की झड़ी लगाते हुए कहा है कि अगर उनकी सरकार बनी तो:
• हर महिला को प्रति माह 2,500 रुपये दिए जाएंगे,
• मां-बेटी योजना के तहत छात्राओं को सीधी सहायता मिलेगी,
• और जीविका दीदियों को 5 साल में डेढ़ लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी।
तेजस्वी के वादे आकर्षक जरूर हैं, लेकिन आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि ये योजनाएं राज्य के बजट की सीमाओं से कहीं आगे हैं।
महागठबंधन की सियासी रणनीति और महिलाओं की भूमिका
महागठबंधन ने इस बार तेजस्वी को मुख्य चेहरा बनाकर चुनावी मोर्चे पर उतारा है।
लालू प्रसाद यादव के “जंगलराज” के तंज का जवाब देने के लिए आरजेडी ने तेजस्वी की नई छवि गढ़ने की कोशिश की है।
तेजस्वी अब अपने भाषणों में कानून व्यवस्था, महिला सुरक्षा और रोजगार जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठा रहे हैं।
लेकिन सवाल यह है कि क्या महिलाएं नीतीश की 20 साल की विश्वसनीयता को छोड़कर तेजस्वी के वादों पर भरोसा करेंगी?
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एनडीए बनाम महागठबंधन: महिलाओं का वोट तय करेगा सत्ता का रास्ता
बिहार में महिलाओं का वोट चुनावी समीकरण को पूरी तरह बदल सकता है।
नीतीश कुमार को मालूम है कि महिलाओं का भरोसा ही उन्हें बार-बार सत्ता तक पहुंचाता रहा है।
दूसरी ओर, तेजस्वी यादव यह समझ चुके हैं कि 2020 में एनडीए और महागठबंधन के बीच मतों का अंतर बहुत मामूली था। इसलिए अब वो महिलाओं को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते।
2025 का चुनाव महिला मतदाताओं के इर्द-गिर्द
बिहार चुनाव 2025 इस बार महिला मतदाताओं की दिशा तय करेगा।
एक तरफ नीतीश कुमार “विकास और सुरक्षा” के एजेंडे के साथ आगे हैं, वहीं तेजस्वी यादव “रोजगार और आर्थिक सहायता” के वादों के सहारे मैदान में हैं।
अब देखना दिलचस्प होगा कि महिलाएं नीतीश के अनुभव पर भरोसा करती हैं या तेजस्वी के नए वादों पर।
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