बिहार इन दिनों भारतीय राजनीति का हॉटस्पॉट बना हुआ है। राज्य के विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण का मतदान संपन्न हो चुका है। पहले दौर में 121 सीटों के उम्मीदवारों का भाग्य ईवीएम में बंद हो गया है।
राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी के अनुसार, 64.64% मतदाताओं ने मतदान किया — जो बीते ढाई दशक में सबसे ऊंचा प्रतिशत है। यह भारी मतदान बताता है कि बिहार की जनता इस बार बदलाव या मजबूती के मूड में है।
भारी मतदान का संकेत — सत्ता विरोधी लहर या नीतीश के समर्थन की मुहर?
भारी मतदान को लेकर राजनीतिक परंपरा रही है कि यह अक्सर सत्ता विरोधी लहर का प्रतीक होता है।
इसलिए तेजस्वी यादव की अगुवाई वाले महागठबंधन के नेताओं में नई ऊर्जा है।
उन्हें उम्मीद है कि बिहार इस बार भी मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को रोक सकता है।
हालांकि इतिहास बताता है कि यह धारणा हर बार सही नहीं बैठती — 2010 और 2016 में पश्चिम बंगाल में भी भारी मतदान के बावजूद ममता और नीतीश सत्ता में लौटे थे।
बिहार में भी वैसा ही संकेत दिख रहा है। अगर एनडीए को जीत मिलती है तो राज्य भी गुजरात और मध्य प्रदेश की तरह बीजेपी का स्थायी गढ़ बन सकता है।
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बिहार की जीत से केंद्र की राजनीति तक का समीकरण जुड़ा
बिहार चुनाव के नतीजे केवल राज्य तक सीमित नहीं हैं।
अगर एनडीए भारी जीत दर्ज करता है तो यह मोदी सरकार को और मजबूती देगा।
इसके साथ ही जनता दल यूनाइटेड (JDU) और तेलुगू देशम पार्टी (TDP) जैसे सहयोगी दलों का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।
चंद्रबाबू नायडू, जो राजनीति में केंद्र की मदद से राज्य चलाने के अनुभवी नेता हैं, बिहार की जीत को अपने लिए भी लाभदायक मानते हैं।
उन्होंने पहले संयुक्त मोर्चा, फिर वाजपेयी सरकार से सहयोग के बदले बड़ा फायदा उठाया था।
बिहार की जीत उन्हें केंद्रीय सहयोग से और ताकत दिला सकती है।
नीतीश कुमार की आखिरी पारी पर टिकी निगाहें

अगर बिहार में एनडीए को जीत मिलती है, तो नीतीश कुमार का कद और बढ़ेगा।
लेकिन अगर हार होती है, तो जेडीयू और बीजेपी के रिश्ते में खटास आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
नीतीश के खेमे में यह धारणा भी है कि पार्टी की हार बीजेपी के कारण होती है।
इसलिए, अगर एनडीए को झटका लगता है, तो नीतीश का मन भविष्य में अलग राह चुनने को प्रेरित कर सकता है।
बिहार की महिला मतदाताओं ने रचा नया इतिहास
इस चुनाव की सबसे बड़ी विशेषता रही महिलाओं की जबरदस्त भागीदारी।
मतदान केंद्रों पर महिलाओं की लंबी कतारें इस बार भी देखने को मिलीं।
2020 में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 59.6% था, जबकि पुरुषों का 54.7%।
इस बार भी आंकड़े इसी दिशा की ओर इशारा करते हैं।
नीतीश सरकार द्वारा हाल ही में महिलाओं को 10,000 रुपये की सहायता राशि और 1,100 रुपये की मासिक पेंशन ने महिला वोटरों को प्रभावित किया है।
बिहार की राजनीति में महिलाएं अब निर्णायक भूमिका निभा रही हैं —
अगर सत्ता बदलती है, तो उसका श्रेय महिलाओं को जाएगा,
और अगर सत्ता बचती है, तो वह भी महिलाओं की वजह से।
जातीय समीकरणों से ऊपर उठता बिहार या वही पुराना ढर्रा?
बिहार जातीय राजनीति का केंद्र रहा है, लेकिन इस बार हालात कुछ अलग नजर आए।
प्रशांत किशोर ने अपने अभियान के जरिये राजनीति को मुद्दों और विकास की ओर मोड़ने की कोशिश की।
हालांकि अंत में जातीय और धार्मिक गोलबंदी ने फिर अपना असर दिखाया।
तेज प्रताप यादव, जिन्होंने नया दल “जनशक्ति जनता दल” बनाया है,
वैशाली जिले की महुआ सीट से चुनाव मैदान में हैं और अपनी परिपक्व छवि से चर्चा में हैं।
वहीं सीमांचल इलाकों में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM भी पूरी ताकत से जुटी है।
उनकी सभाओं में भीड़ उमड़ रही है, जो बताती है कि ओवैसी सीमांचल में फिर प्रभाव दिखा सकते हैं।
चिराग पासवान की भूमिका और एनडीए का समीकरण
पिछले चुनाव में चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोला था,
जिससे जेडीयू सिर्फ 43 सीटों पर सिमट गई थी।
उनके उम्मीदवारों को 23 लाख वोट मिले थे।
लेकिन इस बार चिराग एनडीए के साथ हैं और नीतीश के समर्थन में प्रचार कर रहे हैं।
उनके 29 उम्मीदवार मैदान में हैं — अब देखना है कि उनका प्रदर्शन कैसा रहता है।
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महागठबंधन की फजीहत और अंदरूनी खींचतान
महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस, राजद और वीआईपी (मुकेश सहनी) के बीच भारी विवाद हुआ।
दरभंगा की गौराबौराम सीट पर राजद उम्मीदवार के पक्ष में संतोष साहनी की उम्मीदवारी वापस लेना पड़ा।
इससे जनता में यह संदेश गया कि विपक्ष अब भी एकजुट नहीं हो पाया है।
करीब एक दर्जन सीटों पर “दोस्ताना लड़ाई” ने महागठबंधन की साख को और नुकसान पहुंचाया।
यह बिहार की पारंपरिक राजनीति का एक और प्रमाण है,
जहां बाहुबलियों और वंशवाद का प्रभाव अब भी गहरा है।
बिहार का जनादेश महिलाओं और नीतीश पर निर्भर
बिहार चुनाव का असली परिणाम कुछ भी हो,
लेकिन इतना तय है कि इस बार की लड़ाई का केंद्र नीतीश कुमार हैं।
विपक्ष भी उन्हीं पर हमला कर रहा है, और बीजेपी भी उनके नेतृत्व की बात कर रही है।
अगर एनडीए जीतता है तो यह जीत महिलाओं और नीतीश की नीति की होगी।
अगर सत्ता बदली तो यह भी महिलाओं के निर्णायक वोटों की देन मानी जाएगी।
इस चुनाव की सबसे बड़ी खासियत यह है कि बिहार का मतदाता परिपक्व हो चुका है —
और अब वह जाति से ऊपर उठकर विकास, स्थिरता और सम्मानजनक विदाई का फैसला करेगा।
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