महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर भूचाल की गिरफ्त में है। उपमुख्यमंत्री अजित पवार के बेटे पार्थ पवार से जुड़े पुणे जमीन सौदे ने राज्य की सियासत में हलचल मचा दी है। इस सौदे पर विपक्ष ने गंभीर भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के आरोप लगाए हैं। 40 एकड़ की सरकारी जमीन, जो दलितों के लिए आरक्षित थी, अब विवाद के केंद्र में है। विपक्ष का दावा है कि 1804 करोड़ रुपये मूल्य की यह जमीन पार्थ पवार की कंपनी को मात्र 300 करोड़ रुपये में दी गई, जिससे करोड़ों का नुकसान हुआ।
दलितों के लिए आरक्षित भूमि पर सौदा, 500 रुपये की स्टांप ड्यूटी ने उठाए सवाल
विवादित जमीन पुणे के पॉश मुंधवा इलाके में स्थित है — यह भूमि अनुसूचित जाति के महार समुदाय के लिए आरक्षित ‘वतन’ श्रेणी की है। बॉम्बे अवर ग्राम वतन उन्मूलन अधिनियम, 1958 के तहत इस तरह की जमीन को सरकार की अनुमति के बिना बेचा नहीं जा सकता। आरोप है कि पार्थ पवार की कंपनी अमेडिया होल्डिंग्स एलएलपी, जिसमें अजित पवार के भतीजे दिग्विजय पाटिल भी साझेदार हैं, ने यह जमीन खरीदी।
और तो और, 40 एकड़ की इस जमीन के सौदे में केवल 500 रुपये की स्टांप ड्यूटी अदा की गई।
कंपनी की पूंजी महज 1 लाख रुपये बताई जा रही है। बावजूद इसके, उसे आईटी पार्क और डेटा सेंटर बनाने की अनुमति दी गई। विपक्ष का आरोप है कि “सत्ता के प्रभाव” के चलते नियमों की अनदेखी की गई।
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अजित पवार का जवाब: “चुनाव आते ही आरोप लगते हैं”

इस विवाद के बीच, उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने अपने बेटे का बचाव किया है। उन्होंने कहा—
“मैं यह जानना चाहता हूं कि एक रुपये के लेन-देन के बिना कोई दस्तावेज कैसे पंजीकृत हो सकता है? जांच चल रही है और सच्चाई जल्द सामने आ जाएगी।”
अजित पवार ने यह भी कहा कि उनके खिलाफ पहले भी 70 हजार करोड़ रुपये के सिंचाई घोटाले के आरोप लगे थे, जो अब तक साबित नहीं हुए। उन्होंने कहा कि “हर चुनाव से पहले हमारे खिलाफ झूठे आरोप लगाए जाते हैं।”
जांच की कमान EOW के हाथ, कई अधिकारियों पर FIR दर्ज
पुणे पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने इस मामले की जांच अपने हाथ में ले ली है।
बावधन पुलिस स्टेशन में दर्ज FIR में कई बड़े नाम शामिल हैं —
• पुणे शहर के तहसीलदार सूर्यकांत येओले,
• धनंजय पाटिल,
• शीतल तेजवानी,
और कुल 9 लोगों को इस विवाद में आरोपी बनाया गया है।
इस घटना ने महाराष्ट्र में शिंदे-पवार गठबंधन की अंदरूनी राजनीति को भी उधेड़ कर रख दिया है।
सत्ता के भीतर की सियासी खींचतान: शिंदे बनाम पवार की ‘ठंडी जंग’
महाराष्ट्र में सत्ता के भीतर अब एक अदृश्य युद्ध चल रहा है।
एक ओर अजित पवार की एनसीपी (NCP) है, तो दूसरी तरफ एकनाथ शिंदे की शिवसेना (Shinde Sena)।
दोनों मुख्यमंत्री स्तर के नेता हैं — एक ही सत्ता में साझेदार भी और प्रतिस्पर्धी भी।
हाल में ठाणे नगर निगम के वरिष्ठ अधिकारियों की भ्रष्टाचार में गिरफ्तारी,
मुंबई पुलिस की अचानक छापेमारी,
और अब पुणे का यह भूमि घोटाला —
सब घटनाएं एक “राजनीतिक सर्पिल संरचना” की ओर इशारा करती हैं, जहां एक की पूंछ दूसरे के मुंह में है।
शिंदे और अजित दादा दोनों एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में हैं।
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पुराने घोटाले की गूंज: 70 हजार करोड़ का सिंचाई कांड फिर चर्चा में
यह नया विवाद पुराने घोटालों की याद भी ताज़ा कर गया है।
विपक्ष का कहना है कि जब अजित पवार खुद को “निर्दोष और पारदर्शी” बताते हैं, तब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि 70,000 करोड़ रुपये का सिंचाई घोटाला क्या था?
दरअसल, देवेंद्र फडणवीस ने अपने विपक्षी काल में इस घोटाले को मुद्दा बनाकर ही 2014 में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का सफर तय किया था।
लेकिन 2019 में वही फडणवीस सुबह-सुबह के शपथ ग्रहण समारोह में अजित दादा के साथ उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेते दिखे।
फिर सवाल यही — अगर सिंचाई घोटाला था, तो बीजेपी सरकार ने उन्हें क्लीन चिट क्यों दी?
और अगर नहीं था, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 के चुनाव से पहले इस घोटाले का जिक्र क्यों किया?
राजनीतिक समीकरणों की आग में फंसे अजित पवार
राजनीति के जानकार मानते हैं कि बीजेपी अब दो रास्तों पर खड़ी है —
या तो अजित पवार से माफी मांगे और उन्हें निर्दोष घोषित करे,
या फिर उन्हें पद से हटाकर निष्पक्ष जांच करवाए।
विपक्ष ने इसे “महाराष्ट्र की पारदर्शिता बनाम सत्ता के खेल” का नाम दिया है।
सवाल यही है कि क्या अजित पवार अपने पिता के समान परंपरा निभाते हुए पद छोड़कर जांच का सामना करेंगे,
या सत्ता की मजबूरी उन्हें राजनीतिक ढाल के पीछे छिपाए रखेगी?
महाराष्ट्र की सियासत का ‘सर्पिल जाल’
Delhi Blast 2025 की तरह ही, यह मामला भी दिखाता है कि भारत की राजनीति में घोटाले और सत्ता का रिश्ता कितना गहरा है।
महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार शिंदे-पवार-फडणवीस के बीच “संतुलन की रस्सी” पर चल रही है।
इस बीच जनता देख रही है —
क्या अजित दादा सच में निर्दोष हैं, या 1800 करोड़ की जमीन का यह सौदा सत्ता की ताकत का प्रतीक है?
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