बिहार की राजनीति में इस समय एक ही नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है— दीपक प्रकाश। बिना चुनाव लड़े बिहार सरकार में मंत्री बनाए जाने पर सियासी गलियारों में जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है। सत्ता पक्ष इसे पूरी तरह संवैधानिक प्रक्रिया बता रहा है, जबकि विपक्ष इसे राजनीतिक “जादू”, मैनेजमेंट और वंशवाद की कहानी के रूप में पेश कर रहा है।
इसी बीच जनशक्ति जनता दल के सुप्रीमो तेज प्रताप यादव ने एक ऐसा बयान दिया जिसने राजनीतिक तापमान अचानक कई डिग्री बढ़ा दिया।
- Tej Pratap on Deepak Prakash: तेजप्रताप के तंज के बाद बढ़ा राजनीतिक तूफान
- Tej Pratap on Deepak Prakash: दीपक प्रकाश पर वंशवाद के आरोप, विपक्ष हुआ और आक्रामक
- Tej Pratap on Deepak Prakash: काउंटिंग एजेंट से मंत्री बनने की कहानी ने बढ़ाया विवाद
- Tej Pratap on Deepak Prakash: क्या यह प्रशासनिक योग्यता या सियासी करिश्मा?
- Tej Pratap on Deepak Prakash: विपक्ष बनाम सत्ता—कौन जीत रहा है धारणा की लड़ाई?
- बिहार की राजनीति में नया सियासी विस्फोट
तेज प्रताप ने अपने एक्स (X) हैंडल पर लिखा—
“है ना मोदी–नीतीश का जादू?”
और फिर उन्होंने एक और तीखा तंज कसा—
“सासाराम में जमानत जब्त कराने वाले निर्दलीय प्रत्याशी नारायण पासवान के काउंटिंग एजेंट बने दीपक प्रकाश बिना चुनाव लड़े नीतीश सरकार में मंत्री बन गए… है ना मोदी–नीतीश का जादू?”

उनकी यह टिप्पणी सोशल मीडिया से लेकर सत्ता दालानों तक तेज़ राजनीतिक बहस का पावरफ़ुल कारण बन गई है।
Tej Pratap on Deepak Prakash: तेजप्रताप के तंज के बाद बढ़ा राजनीतिक तूफान
तेज प्रताप की टिप्पणी ने विपक्ष व सत्ता पक्ष के बीच एक नया टकराव खड़ा कर दिया है।
सत्ता पक्ष का कहना है कि:
• मंत्री बनाना मुख्यमंत्री का अधिकार है।
• संविधान के तहत कोई भी व्यक्ति मंत्री बनाया जा सकता है।
• शर्त बस इतनी है कि छह महीने में उसे विधानमंडल का सदस्य बनना होगा।
लेकिन विपक्ष और खासकर तेजप्रताप इसे सिर्फ संवैधानिक अधिकार भर नहीं मान रहे।
उनके अनुसार बिना चुनाव जीते किसी व्यक्ति को मंत्री बना देना सियासी करिश्मा, मैनेजमेंट और दोहरी राजनीति का उदाहरण है।
तेजप्रताप का यह तंज सिर्फ़ एक लाइन नहीं था—
यह NDA सरकार की विश्वसनीयता पर सीधा सवाल था।
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Tej Pratap on Deepak Prakash: दीपक प्रकाश पर वंशवाद के आरोप, विपक्ष हुआ और आक्रामक
विवाद में आग में घी डालने का काम तब हुआ जब यह तथ्य सामने आया कि—
• दीपक प्रकाश राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा के पुत्र हैं।
यही कारण है कि विपक्ष अब इस पूरे प्रकरण को वंशवाद से जोड़कर पेश कर रहा है।
सोशल मीडिया मीम्स, वीडियो और तंज से भरा पड़ा है, जिनमें यह सवाल पूछा जा रहा है:
“क्या बिहार में मंत्री बनने का पैमाना जनादेश नहीं, बल्कि रिश्तेदारी है?”
Tej Pratap on Deepak Prakash: काउंटिंग एजेंट से मंत्री बनने की कहानी ने बढ़ाया विवाद
सबसे बड़ा विवाद इसी बात को लेकर है कि—
• बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सासाराम सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी नारायण पासवान के काउंटिंग एजेंट दीपक प्रकाश थे।
• नारायण पासवान को कुल 327 वोट मिले।
• उनकी जमानत जब्त हो गई।
इसके बाद विपक्ष ने एक ही सवाल उठाया है—
“जिस नेता की काउंटिंग एजेंट वाली भूमिका तक सफलता नहीं दिखा सकी, वह बिना जनता के जनादेश के मंत्री कैसे बन गया?”
यह बयान बिहार की सियासत में एक भावनात्मक (sentiment-based) और तेज़ असर पैदा करने वाला सवाल बन गया।
Tej Pratap on Deepak Prakash: क्या यह प्रशासनिक योग्यता या सियासी करिश्मा?
संवैधानिक तौर पर मुख्यमंत्री को पूरा अधिकार है कि वह किसी भी व्यक्ति को मंत्री बनाएं।
लेकिन राजनीति सिर्फ कानूनी तर्कों पर नहीं चलती—
चलती है जनता की धारणा, भावनाओं, और बयानों की दिशा पर।
तेज प्रताप के तंज के बाद यह बहस और तेज हो गई है कि:
• क्या दीपक प्रकाश को मंत्री बनाना योग्यता आधारित निर्णय है?
• या यह राजनीतिक समीकरण, परिवारिक संबंधों और NDA की पॉलिटिकल स्ट्रैटेजी का हिस्सा है?
• क्या यह वास्तव में “मोदी–नीतीश का जादू” है जैसा तेजप्रताप ने कहा?
इन सवालों ने बिहार की राजनीति में नया उफान ला दिया है।
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Tej Pratap on Deepak Prakash: विपक्ष बनाम सत्ता—कौन जीत रहा है धारणा की लड़ाई?
सत्ता पक्ष इस विवाद को हल्का दिखाना चाह रहा है, लेकिन विपक्ष ने इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया है।
ट्रेन्डिंग में लगातार—
DeepakPrakash,
TejPratapAttack,
BiharPolitics
जैसे कीवर्ड चल रहे हैं।
इससे साफ है कि जनता इस मुद्दे को लेकर काफी भावुक हो रही है और लगातार चर्चा जारी है।
बिहार की राजनीति में नया सियासी विस्फोट
दीपक प्रकाश को मंत्री बनाए जाने का फैसला चाहे पूरी तरह संवैधानिक हो, लेकिन विपक्ष इसे राजनीतिक चमत्कार, जादू, और राजनीतिक प्रबंधन बताकर जनता की धारणा को अपनी तरफ मोड़ने की कोशिश कर रहा है।
तेजप्रताप यादव का तंज इस बहस को और ज्यादा शक्ति, भावना, और गति दे चुका है।
फिलहाल बिहार की राजनीति में एक ही सवाल तैर रहा है—
“दीपक प्रकाश की एंट्री सत्ता का ‘पावर मूव’ है या विपक्ष का ‘भावनात्मक मुद्दा’?”
जो भी हो, इतना तय है कि यह विवाद अभी खत्म नहीं होने वाला।
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