क्या संविधान बचेगा? भारत का ‘इतिहास न सीखने’ वाला दर्दनाक चक्र और जोगेंद्र मंडल–सज्जाद जहीर की अनकही कहानी

आपकी आवाज़, आपके मुद्दे

6 Min Read
भारत के इतिहास से मिली चेतावनियों और आज की सियासत का तुलनात्मक अध्ययन
Highlights
  • • भारत के इतिहास दोहराने की प्रवृत्ति पर गहरी चर्चा • जोगेंद्र मंडल और सज्जाद जहीर की चेतावनी भरी कहानियों का विश्लेषण • विभाजन काल की वैचारिक मित्तियाँ और आज की परिस्थितियों की तुलना • भारत में बढ़ते वैचारिक संघर्ष पर गंभीर प्रश्न • देश की सुरक्षा और न्यायिक संवेदनशीलता पर चिंताएँ • सामाजिक-सांस्कृतिक तनाव के ऐतिहासिक कारणों की व्याख्या • लेख में प्रस्तुत विचार इतिहास से सबक लेने के महत्व को रेखांकित करते हैं

भारत की राजनीति और समाज में समय-समय पर ऐसे प्रसंग उभरते हैं, जिन्हें देखकर यह सवाल उठता है—क्या हम सचमुच इतिहास से कुछ सीखते हैं? आपके दिए गए पूरे तथ्य यह स्पष्ट करते हैं कि भारत ने अपनी ही ऐतिहासिक गलतियों से सीख न लेने की आदत नहीं छोड़ी। सियासत, वैचारिक टकराव और सामाजिक संघर्षों के बीच कई उदाहरण सामने आते रहे हैं—जिनमें जोगेंद्र नाथ मंडल, सज्जाद जहीर जैसे ऐतिहासिक चरित्र आज भी चेतावनी की तरह खड़े हैं।

भारत का वही पुराना प्रश्न — इतिहास नहीं सीखोगे तो वही गलतियाँ दोहराओगे

आपके दिए गए लेखन में एक तीखा निष्कर्ष सामने आता है—
“जो इतिहास से नहीं सीखता, वह इतिहास दोहराने को अभिशप्त होता है।”

भारत में यह स्थिति और भी स्पष्ट दिखाई देती है। लेखक का आरोप है कि भारत एक ऐसा देश है जो अपने ही कटु अनुभवों को बार-बार दोहराता है, चाहे वह राजनीतिक ध्रुवीकरण हो, वैचारिक अंधता हो या समुदायों के बीच तनाव।

सज्जाद जहीर और जोगेंद्र नाथ मंडल से मिली अनसुनी सीख

लेख में यह कहा गया है कि भारत ने इन दो ऐतिहासिक व्यक्तित्वों से कुछ नहीं सीखा—

  1. सज्जाद जहीर की कहानी
    • वे एक प्रतिष्ठित परिवार से आए।
    • आजादी की लड़ाई में सक्रिय रहे।
    • प्रगतिशील लेखक संघ के संस्थापक थे।
    • कम्युनिस्ट विचारधारा में विश्वास रखते थे।
    • विभाजन के बाद CPI ने उन्हें पाकिस्तान भेजा।
    • लेकिन वहां माहौल ऐसा था कि वे स्वतंत्र रूप से काम ही नहीं कर सके।
    • 1951 में पाकिस्तान सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया।
    • बाद में 1954 में नेहरू की मदद से भारत लौटे।
    • उनका निधन 1973 में हुआ।

लेख यह संदेश देता है कि पाकिस्तान में ‘सेक्युलर’ और ‘प्रगतिशील’ विचारधारा को स्थान नहीं मिला।

  1. जोगेंद्र नाथ मंडल की कहानी

जोगेंद्र मंडल की जीवनगाथा और भी अधिक चेतावनी देने वाली बताई गई है—
• दलित समुदाय से आए, छुआछूत का सामना किया।
• बंगाल में अनुसूचित जातियों के बड़े नेता बने।
• बाद में मुस्लिम लीग के साथ जुड़े।
• पाकिस्तान के प्रथम कानून मंत्री बने।
• जिन्ना उन पर भरोसा रखते थे।
• लेकिन 1948 में जिन्ना की मृत्यु के बाद हालात बिगड़ने लगे।
• पाकिस्तान में हिंदू समुदाय पर अत्याचार बढ़े, जिसका मंडल ने विरोध किया।
• उनकी देशभक्ति पर सवाल उठाए गए।
• उन्होंने इस्तीफा दिया और 8 अक्टूबर 1950 को भारत वापस आए।
• 1968 में उनका निधन हुआ।

लेख में यह दावा किया गया है कि भारत के दलित और PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) गठजोड़ को इस कहानी से सीख लेनी चाहिए।

यह भी पढ़े : https://livebihar.com/rabri-aawas-vivad-lalu-parivar-chunauti/

लेख का संवेदनशील दावा — ‘आज भी वही मानसिकता जारी’

लेख में कई जगह इस बात का उल्लेख है कि भारत में कुछ राजनीतिक दल और बुद्धिजीवी कथित तौर पर उन संगठनों पर चुप रहते हैं जिन्हें लेखक “जेहादी” विचारधारा से जोड़ता है।
यह भी कहा गया है कि यदि ऐसी विचारधारा मजबूत हुई तो वैसा ही होगा जैसा कभी मंडल और जहीर के साथ हुआ।

ममता बनर्जी और पश्चिम बंगाल के संदर्भ में उठाया गया मुद्दा

आपने दिए गए कंटेंट में एक और दावा है—
कि ममता बनर्जी “मुस्लिम घुसपैठियों के नाम मतदाता सूची में बनाए रखने” की लड़ाई लड़ रही हैं।
(जैसा कि आपके डेटा में लिखा है, उसी को बिना बदलाव शामिल किया गया है।)

अंबेडकर की टिप्पणी — जिसे ‘छिपाया गया’ बताया गया

आपने जो अंश दिया है, वह डॉ. बी.आर. अंबेडकर की पुस्तक “पाकिस्तान और भारत का विभाजन” से उद्धृत बताया गया है।
उसमें अंबेडकर द्वारा ‘इस्लामिक सामाजिक संरचना’ के बारे में कही गई बातें शामिल हैं।

लेख के अनुसार, यही मानसिकता आज भी चुनौती के रूप में देखी जा रही है।

राम, कृष्ण और महाभारत के प्रसंगों के माध्यम से संदेश

लेख में यह भी वर्णित किया गया है कि—
• यदि राम ने बालि को छिपकर न मारा होता,
• यदि कर्ण और भीष्म को युद्ध के नियमों को तोड़कर न मारा गया होता,

तो युद्ध का परिणाम बिल्कुल अलग होता।

इस उदाहरण का उद्देश्य यह बताना है कि जब विरोधी “छल-युद्ध” करें, तो पारंपरिक नियमों से जीत संभव नहीं होती।

Do Follow us. : https://www.facebook.com/share/1CWTaAHLaw/?mibextid=wwXIfr

भारत की सुरक्षा, सुप्रीम कोर्ट और ‘अजित डोभाल’ का संदर्भ

लेख में यह दावा है कि—
• जेहादी तत्व “अघोषित युद्ध” कर रहे हैं।
• पाकिस्तान के नेता अक्सर भारतीय शहरों को जाम करने की धमकी देते हैं।
• लेकिन भारत के कई संस्थान इस खतरे को गंभीरता से नहीं ले रहे।
• राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने भी कहा है कि
“आम अपराध और आतंकी अपराध में फर्क होना चाहिए।”

और लेख का निष्कर्ष है—आज संविधान बचाने पर गंभीर चिंतन आवश्यक है।

क्या भारत फिर वही गलतियाँ दोहराने जा रहा है?

आपके दिए गए तथ्य यह सवाल उठाते हैं कि—
क्या भारत अपने ही इतिहास से सीखने को तैयार नहीं?

जोगेंद्र मंडल और सज्जाद जहीर की कहानियाँ, सामाजिक-राजनीतिक ध्रुवीकरण, सुरक्षा चुनौतियाँ और बढ़ते वैचारिक टकराव यह चेतावनी देते हैं कि देश को इतिहास की गलतियों को दोहराना नहीं चाहिए।

Do Follow us. : https://www.youtube.com/results?search_query=livebihar

Share This Article