Muslim Leadership Jihad Controversy: मदनी बनाम ओवैसी पर उठे बड़े सवाल, ‘जिहाद’ के नैरेटिव से क्यों भड़का मुस्लिम समाज?

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मदनी बनाम ओवैसी विवाद से गर्माई मुस्लिम नेतृत्व की बहस
Highlights
  • • मदनी परिवार के नए बयानों से मुस्लिम राजनीति में हड़कंप • ओवैसी के सीमांचल उभार से बदलते समीकरण • कांग्रेस और जमीयत की पुरानी राजनीति पर सवाल • ‘जिहाद’ शब्द के राजनीतिक उपयोग पर विवाद • मुस्लिम लीडरशिप के भीतर वर्चस्व की खुली लड़ाई

Muslim Leadership Jihad Controversy: चाचा–भतीजा मदनी की बयानबाज़ी ने क्यों बढ़ाया सियासी तूफ़ान?

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद मुस्लिम लीडरशिप पर अचानक उठी हलचल, मदनी परिवार के विवादित बयानों और ओवैसी के उभार को लेकर आज नई सियासत की तस्वीर सामने आ रही है। Muslim Leadership Jihad Controversy सिर्फ एक बयान का मामला नहीं है — यह उस लंबे राजनीतिक संघर्ष का प्रतिनिधित्व करती है जिसमें मुस्लिम समाज की स्वतंत्र राजनीतिक आवाज़ को हमेशा नियंत्रित करने की कोशिश की गई है।

अरशद मदनी के बयान कि — “मुसलमान अमेरिका में मेयर बन सकता है, लेकिन भारत में कुलपति नहीं बन सकता” — ने पहले ही बहस छेड़ दी थी। इसके तुरंत बाद महमूद मदनी ने कहा — “जब-जब ज़ुल्म बढ़ेगा, तब-तब जिहाद होगा।”
दोनों बयानों को जोड़कर देखा जाए तो सवाल उठता है कि आख़िर चाचा–भतीजे के ‘ज़मीर’ को अचानक क्या हुआ?

Muslim Leadership Jihad Controversy: बिहार चुनाव के परिणामों ने कैसे बदले समीकरण?

बिहार चुनाव में कांग्रेस का लगभग सफ़ाया और RJD की बुरी हार ने मुस्लिम राजनीति का पुराना ढाँचा हिला दिया। जमीयत-उलमा हिंद, जो दशकों से कांग्रेस के सबसे वफादार सहयोगी की तरह चलती रही, पहली बार खुद को राजनीतिक रूप से ‘अप्रासंगिक’ महसूस कर रही है।
लेकिन असली झटका उन्हें तब लगा जब ओवैसी सीमांचल में उभरकर राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गए।

Muslim Leadership Jihad Controversy: मदनी बनाम ओवैसी पर उठे बड़े सवाल, ‘जिहाद’ के नैरेटिव से क्यों भड़का मुस्लिम समाज? 1

नेशनल मीडिया के पैनल हों या राजनीतिक बहस — हर जगह ओवैसी–ओवैसी की चर्चा होने लगी।
यह बात उस जमात को कैसे रास आती जो मुस्लिम लीडरशिप पर एकाधिकार चाहती है?

महमूद मदनी ने तो साफ कहा —
“भारत में हम किसी मुस्लिम लीडरशिप को पनपने नहीं देंगे।”
यह बयान किसी आतंकवाद पर नहीं, बल्कि एक उभरते मुस्लिम नेता पर था — यह अपने आप में इस Muslim Leadership Jihad Controversy की जड़ है।

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Muslim Leadership Jihad Controversy: सिब्बल का हमला और पुराने आरोप फिर सामने

कपिल सिब्बल भी मैदान में कूद पड़े और बोले —
“ओवैसी ने मुसलमानों के मुक़दमात नहीं लड़े।”
जबकि सच्चाई यह है कि बाबरी से लेकर तीन तलाक़ तक बड़े फैसले कांग्रेस शासन में हुए — तब जमीयत की आवाज़ क्यों नहीं उठी?
वक़्फ़ से लेकर यूनिवर्सिटी तक, मदनी खेमे का रिकॉर्ड क्या कहता है?

Muslim Leadership Jihad Controversy: मदनी खेमे पर सबसे बड़ा सवाल — जिहाद कहाँ था जब ज़ुल्म चरम पर था?

अगर ‘जिहाद’ का अर्थ संघर्ष है, तो सवाल पूछना जरूरी है:
क्या बाबरी मस्जिद का गिरना ज़ुल्म नहीं था?
क्या आज़म खान पर कार्रवाई ज़ुल्म नहीं है?
क्या अलफलाह यूनिवर्सिटी पर कार्रवाई ज़ुल्म नहीं?

मोहम्मद बदरुद्दीन अजमल, जो असम में बड़ी मुस्लिम नेतृत्व के रूप में उभरे, उन्हें खुद अरशद मदनी ने जमीयत से निकाल दिया — सिर्फ इसलिए कि वे कांग्रेस लाइन से अलग चल रहे थे।

तो फिर जिहाद किसके लिए? किसके खिलाफ? किसके इशारे पर?

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Muslim Leadership Jihad Controversy: असली लड़ाई मुस्लिम समाज के अंदर ही नेतृत्व की है

इस पूरे विवाद का असल दर्द यह है कि:
मुस्लिम समाज के भीतर जब भी कोई स्वतंत्र नेतृत्व उभरने की कोशिश करता है —
या तो उसे ‘कट्टर’, ‘विभाजनकारी’ या ‘समुदाय विरोधी’ बता दिया जाता है,
या उस पर ‘जिहाद’ जैसे शब्दों का राजनीतिक खेल शुरू हो जाता है।

आज यह विवाद सिर्फ मदनी बनाम ओवैसी नहीं —
यह मुस्लिम समाज की आंतरिक सत्ता-लड़ाई का बड़ा अध्याय है।

Muslim Leadership Jihad Controversy: आख़िरी सवाल — जिहाद? या राजनीतिक वर्चस्व का संघर्ष?

महमूद मदनी कहते हैं —
“जब ज़ुल्म बढ़ेगा तब जिहाद होगा।”
लेकिन ज़ुल्म की उनकी परिभाषा क्या है?
कहाँ मापते हैं वे ज़ुल्म? इंच-टेप से या राजनीतिक सुविधा से?

दूसरी ओर ओवैसी, अजमल या अन्य क्षेत्रीय मुस्लिम नेता अपने-अपने क्षेत्रों में सामाजिक-राजनीतिक नेतृत्व मजबूत कर रहे हैं।

तो असल बहस यह है कि:
क्या मुस्लिम समाज को अपनी राजनीतिक नेतृत्व चुनने की आज़ादी है — या उसकी बागडोर हमेशा कुछ संगठनों के हाथों में रहेगी?

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