Indigo Flight: हवाई यात्रा बनी त्रासदी, यात्रियों का भरोसा टूटा
बीते पांच–छह दिनों में भारत के प्रमुख हवाई अड्डों पर जो दृश्य सामने आए, उन्होंने यह साबित कर दिया कि हवाई यात्रा जिसे आराम और शान की सवारी कहा जाता है, वह बदइंतजामी का सबसे दर्दनाक उदाहरण भी बन सकती है। लगेज अंदर और पैसेंजर बाहर, इस वाक्य ने हजारों यात्रियों की पीड़ा को एक साथ समेट दिया। दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े और व्यस्त हवाई अड्डों पर रेलवे प्लेटफॉर्म से भी बदतर हालात देखने को मिले। भूखे-प्यासे यात्री, घंटों का इंतजार, कोई सूचना नहीं, कोई समाधान नहीं—यह सब एविएशन सेक्टर में निजीकरण और एकाधिकार की त्रासदी को उजागर करता रहा।
असहाय यात्रियों की दर्दनाक तस्वीरें
हवाई अड्डों पर जो दृश्य कैमरों में कैद हुए, वे किसी मानवीय संकट से कम नहीं थे।
बेंगलूरु की एक बेटी अपने पिता का अस्थि कलश हाथ में लेकर रोती हुई कहती है—उसे दिल्ली जाना था, वहां से हरिद्वार जाकर पिता की अस्थियां विसर्जित करनी थीं, लेकिन फ्लाइट रद्द हो गई। कोई यह बताने वाला नहीं कि अगली उड़ान कब मिलेगी।
इंडिगो की खिड़की पर एक छोटी बच्ची चीख रही थी—“मेरा एग्जाम है!”
पीछे से एक मां सुबक रही थी—“मेरा बेटा बीमार है!”
एक बुजुर्ग दम्पति हाथ थामे आंसू बहा रहे थे—कोई पोंछने वाला नहीं।
एक नाइजीरियाई महिला रिफंड के लिए इस कदर परेशान हुई कि वह खिड़की पर चढ़ गई।
कहीं माता-पिता बेटी की शादी में नहीं पहुंच सके, तो कहीं हनीमून पर गया जोड़ा अपने ही रिसेप्शन में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से शामिल हुआ।
किसी का पासपोर्ट लगेज के साथ चेक-इन में फंस गया, और वह सात समंदर पार नौकरी जॉइन करने के लिए भटकता रहा।
इंडिगो स्टाफ बना मूक दर्शक
इस पूरे घटनाक्रम में इंडिगो का असहाय स्टाफ मूक दर्शक बना रहा। यात्रियों का आक्रोश उन्हें झेलना पड़ा, लेकिन उनके पास न जवाब था, न समाधान। कहीं-कहीं आगबबूला यात्रियों ने “इंडिगो हाय-हाय” के नारे भी लगाए, लेकिन प्रबंधन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। कोविड काल के बाद ऐसा आक्रोश पहली बार हवाई अड्डों पर दिखाई दिया, लेकिन कड़वी सच्चाई यह रही कि यात्रियों से कोई पानी तक पूछने वाला नहीं था।
पहले दिन कहीं-कहीं विश्राम की व्यवस्था हुई, फिर यात्रियों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया।
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मुनाफे के आगे इंसानियत हार गई

इंडिगो वह कंपनी है जो विमान में ठंडा खाना खिलाकर सालाना करीब 400 करोड़ रुपये की बचत करती है। ऐसी कंपनी आपदा की घड़ी में मजबूर यात्रियों को खाना और होटल की सुविधा कैसे देती?
पहले दो घंटे फ्लाइट लेट बताई गई—ताकि खाना न देना पड़े।
फिर चार घंटे लेट की सूचना—ताकि होटल का इंतजाम न करना पड़े।
सर्दी में यात्री हवाई अड्डों के नंगे फर्श पर लोटने को मजबूर रहे। चौथे दिन जब इंडिगो प्रबंधन ने माफी की औपचारिकता निभाई तो यात्री चीख पड़े—“माफी नहीं, समाधान चाहिए।”
टिकट की लूट और रिफंड का संकट
जिस तरह कोविड काल में आपदा को अवसर बनाकर कालाबाजारी हुई थी, उसी तरह अब विमान कंपनियों ने जमकर मुनाफा वसूली की।
5 से 7 हजार रुपये के टिकट 50 से 70 हजार रुपये में बेचे गए।
जिनके पास पैसा था, वे किसी तरह अपने गंतव्य पहुंच गए।
जिनके पास पैसा नहीं था, वे रिफंड और लगेज के लिए खिड़की पर डटे रहे।
6 दिसंबर को नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने 8 दिसंबर की शाम 8 बजे तक रिफंड लौटाने की समय-सीमा तय की और दूरी के हिसाब से किराया निर्धारित किया, लेकिन तब तक कंपनियां भारी कमाई कर चुकी थीं।
2500 उड़ानें रद्द, रेलवे को आना पड़ा आगे
सिर्फ पांच दिन में 2500 से ज्यादा उड़ानें रद्द हो जाना इस संकट की भयावहता को दिखाता है। हालात इतने बिगड़े कि आखिरकार यात्रियों के लिए रेलवे का तंत्र पसीजा।
स्पेशल ट्रेनें और बसें चलाई गईं, सुपरफास्ट ट्रेनों में अतिरिक्त बोगियां लगाई गईं।
इंडिगो का दबदबा और स्टाफ की कमी
इंडिगो 434 विमानों के जरिए रोज 2300 उड़ानों में 3.8 लाख यात्रियों को ढोने वाली भारत की सबसे बड़ी विमान कंपनी है।
बाजार में उसकी हिस्सेदारी 64 फीसदी है।
एयर इंडिया की हिस्सेदारी 26 फीसदी, अकासा की 5 फीसदी और स्पाइसजेट की 3 फीसदी है।
पायलटों और क्रू मेंबर की भारी कमी के बावजूद कंपनी काम चला रही थी। खाली पद भरने के लिए इंडिगो को एक साल का समय दिया गया, लेकिन पद खाली ही रहे।
नए रोस्टर और सुरक्षा पर सवाल
1 जुलाई से तीन चरणों में नया रोस्टर लागू हुआ।
इसमें पायलट और क्रू मेंबर के साप्ताहिक अवकाश के घंटे 36 से बढ़ाकर 48 कर दिए गए।
नाइट लैंडिंग की सीमा भी घटाई गई।
यह सब यात्रियों की सुरक्षा के लिए जरूरी था।
लेकिन स्टाफ की कमी के चलते उड़ानें रद्द होने लगीं और जब इंडिगो ने हाथ खड़े कर दिए, तो इन नियमों के अनुपालन को तीन महीने बढ़ा दिया गया।
पायलट संगठनों का कड़ा विरोध
इंडिगो पर पेनल्टी लगाने के बजाय उसे राहत देने का एयरलाइन पायलट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ALPA) और फेडरेशन ऑफ इंडियन पायलट्स एसोसिएशन (FIP) ने कड़ा विरोध किया है।
दोनों संगठनों ने इसे यात्रियों की सुरक्षा से सीधा खिलवाड़ बताया है।
उन्होंने सवाल उठाया है कि जब 1 नवंबर से नियम लागू थे, तो दिसंबर में ही यह संकट क्यों पैदा हुआ?
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जानबूझकर संकट पैदा करने के आरोप
इंडिगो पर यह भी आरोप लग रहे हैं कि नए नियमों से राहत पाने के लिए जानबूझकर इस संकट को पैदा किया गया, ताकि कंपनी और अन्य एयरलाइंस को नियमों के पालन से छूट मिल जाए।
अब हाई-लेवल जांच कमेटी इन सभी पहलुओं की जांच करेगी।
क्या यात्रियों के दर्द का कोई हर्जाना है?
करीब 163 हवाई अड्डों पर 10 लाख से ज्यादा यात्रियों ने जो मानसिक, शारीरिक और आर्थिक पीड़ा झेली, उसका कोई हर्जाना क्या संभव है?
जांच से दूध का दूध और पानी का पानी हो भी जाए, लेकिन जो टॉर्चर यात्री झेल चुके हैं, उसकी भरपाई कैसे होगी?
भारत के एविएशन सेक्टर में यह संकट केवल उड़ानों के रद्द होने की कहानी नहीं है, बल्कि यह निजीकरण, एकाधिकार, स्टाफ की कमी, सुरक्षा नियमों में ढील और मुनाफाखोरी की भयावह तस्वीर है।
अब सबकी निगाहें हाई-लेवल जांच पर टिकी हैं।
भविष्य में ऐसा संकट दोबारा न आए, इसके लिए कड़े नियम, सख्त निगरानी और यात्रियों के अधिकारों की ठोस सुरक्षा बेहद जरूरी है।
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