Thirupparankundram Karthigai Deepam Controversy: पहाड़, मंदिर और परंपरा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
तमिलनाडु के मदुरै ज़िले में स्थित थिरुप्परंकुन्ड्रम पहाड़ी केवल एक भौगोलिक स्थल नहीं, बल्कि सदियों पुरानी धार्मिक परंपरा का केंद्र रही है। यहां स्थित अरुलमिगु सुब्रमण्या स्वामी मंदिर का निर्माण 6वीं शताब्दी में पांड्य राजाओं ने करवाया था। यह मंदिर तमिल हिंदू परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
- Thirupparankundram Karthigai Deepam Controversy: पहाड़, मंदिर और परंपरा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- Thirupparankundram Karthigai Deepam Controversy: दरगाह का निर्माण और विवाद की शुरुआत
- Thirupparankundram Karthigai Deepam Controversy: अदालतों के फैसले और अस्थायी प्रतिबंध
- Thirupparankundram Karthigai Deepam Controversy: आज़ादी के बाद भी टकराव
- Thirupparankundram Karthigai Deepam Controversy: 2024–25 में तनाव चरम पर
- Thirupparankundram Karthigai Deepam Controversy: कोर्ट का आदेश और सरकार की अवहेलना
- Thirupparankundram Karthigai Deepam Controversy: जज पर महाभियोग का सवाल
- Thirupparankundram Karthigai Deepam Controversy: अयोध्या बनाम तमिलनाडु का फर्क
इसी पहाड़ी पर कार्तिगई दीपम पर्व के अवसर पर एक पत्थर के स्तंभ दीपथून पर दीप जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह परंपरा मंदिर से जुड़ी धार्मिक आस्था और अधिकार का प्रतीक रही है।
Thirupparankundram Karthigai Deepam Controversy: दरगाह का निर्माण और विवाद की शुरुआत
इस पहाड़ी के पास सिकन्दर बदुशा के नाम से एक दरगाह का निर्माण सन 1690 में किया गया। यानी यह दरगाह मंदिर के निर्माण के लगभग एक हजार वर्ष बाद अस्तित्व में आई।
विवाद की शुरुआत वर्ष 1915 में हुई, जब दरगाह प्रबंधन ने वहां एक मंडप बनाने की कोशिश की। मंदिर पक्ष ने कलेक्टर के समक्ष दस्तावेज़ों के साथ यह साबित किया कि वह भूमि मंदिर की संपत्ति है। मामला अदालत पहुंचा।
Thirupparankundram Karthigai Deepam Controversy: अदालतों के फैसले और अस्थायी प्रतिबंध
1920–1930 के बीच अदालतों ने यह स्पष्ट किया कि दीपथून मंदिर की संपत्ति है। हालांकि, कानून-व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर उस समय यह व्यवस्था दी गई कि दीपक पहाड़ी के आधे रास्ते या उचिपिल्लैयार मंदिर के पास जलाया जाए, न कि दीपथून पर।
महत्वपूर्ण बात यह थी कि यह फैसला अल्पकालिक और केवल शांति बनाए रखने के उद्देश्य से था। उसी दौर की प्रिवी काउंसिल ने सभी खाली स्थानों को मंदिर की संपत्ति मानते हुए मालिकाना हक भी मंदिर को दिया।
इसके बावजूद विवाद समाप्त नहीं हुआ।
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Thirupparankundram Karthigai Deepam Controversy: आज़ादी के बाद भी टकराव

भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी यह विवाद चलता रहा। 1996 में हाईकोर्ट ने भी वही रुख अपनाया, जो पहले की अदालतें अपना चुकी थीं—दीपथून मंदिर की संपत्ति है।
इसके बावजूद 2014 और 2017 में जयललिता की पार्टी की सरकार ने हलफनामा देकर कहा कि वहां दीप जलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि इससे दंगा हो सकता है।
Thirupparankundram Karthigai Deepam Controversy: 2024–25 में तनाव चरम पर
दिसंबर 2024 में दरगाह परिसर में मियां अबू ताहिर द्वारा जानवर की कुर्बानी दी गई। हिंदू संगठनों में आक्रोश फैलना स्वाभाविक था, क्योंकि उनके लिए पूरा क्षेत्र मंदिर परिसर का हिस्सा माना जाता है।
फरवरी 2025 में हिंदू संगठनों ने अतिक्रमण और मांसाहार को लेकर फिर आवाज़ उठाई।
3 नवंबर 2025 को मंदिर के कार्यकारी अधिकारी ने दीपथून पर दीप जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया। यहां यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि तमिलनाडु में सभी मंदिर राज्य सरकार के प्रत्यक्ष नियंत्रण में हैं।
Thirupparankundram Karthigai Deepam Controversy: कोर्ट का आदेश और सरकार की अवहेलना
मामला अदालत पहुंचा। 1 दिसंबर 2025 को जस्टिस स्वामीनाथन ने आदेश दिया कि राम रविचंद्रन सहित 10 भक्तों को दीपथून पर कार्तिगई दीपम जलाने की अनुमति दी जाए। कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए CISF की मदद लेने को भी कहा गया।
इसके बावजूद राज्य सरकार ने दंगों का हवाला देकर आदेश लागू नहीं किया। पुलिस ने भक्तों को रोक दिया।
सरकार ने इसी हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में अपील की, लेकिन वहां भी जस्टिस जयचंद्रन और जस्टिस रामकृष्णन ने एकल पीठ के फैसले को बरकरार रखा।
अब स्टालिन सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी है।
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Thirupparankundram Karthigai Deepam Controversy: जज पर महाभियोग का सवाल
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि सत्तारूढ़ डीएमके और सहयोगी दलों ने लोकसभा में जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव ला दिया।
हैरानी की बात यह है कि डिवीजन बेंच के दोनों जजों—जिन्होंने वही फैसला दिया—उनके नाम इस प्रस्ताव में शामिल नहीं हैं। सवाल उठता है कि अगर फैसला गलत है, तो सिर्फ एक जज को ही क्यों निशाना बनाया गया?
महाभियोग के लिए न्यूनतम 100 सांसदों के हस्ताक्षर चाहिए थे। 107 सांसदों के हस्ताक्षर वाला पत्र लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को सौंपा गया। हस्ताक्षरकर्ताओं में डीएमके, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (उद्धव गुट), शरद पवार गुट, कम्युनिस्ट पार्टियां और ओवैसी की पार्टी के सांसद शामिल हैं।
Thirupparankundram Karthigai Deepam Controversy: अयोध्या बनाम तमिलनाडु का फर्क
अयोध्या में सदियों पुराने विवाद के बाद अदालत के फैसले को उत्तर प्रदेश सरकार ने विधिपूर्वक लागू किया। मंदिर निर्माण हुआ और एक पत्थर तक नहीं उछला।
वहीं तमिलनाडु में अपेक्षाकृत सीमित दायरे के मामले में भी अदालत का फैसला लागू नहीं हो पा रहा। जबकि CISF तैनाती का विकल्प भी मौजूद था।
यह सवाल खड़ा करता है—क्या यह वाकई कानून-व्यवस्था का डर है, या फिर राजनीतिक इच्छा-शक्ति की कमी?
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