बिहार में क्यों जीती एनडीए ?

5 Min Read

सुरेंद्र किशोर
(पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार )
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 सितंबर, 2025 को बिहार में मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 10-10 हजार रुपए देने के निर्णय की घोषणा की थी । 6 अक्तूबर, 2025 को चुनाव आयोग ने यह घोषणा की कि बिहार विधान सभा के चुनाव के लिए दो चरणों में वोट डाले जाएंगे। यानी, चुनाव की घोषणा के कई दिन पहले 10 हजार देने की घोषणा हुई थी। चूंकि लाखों महिलाओं के खातों में पैसे जाने थे, इसलिए बैंकों के जरिए मनी ट्रांसफर योजना चुनाव की तारीख घोषित हो जाने के बाद भी जारी रही। ध्यान रहे कि चुनाव की घोषणा के बाद सरकार कोई नई लाभ योजना घोषित नहीं कर सकती।लेकिन पहले से जो योजना जारी है,उसे बंद कर देने का कोई नियम नहीं है। सवाल है कि क्या सिर्फ इस 10 हजारी योजना ने राजग को बिहार में विजयी बना दिया ?
तथ्य इसके विपरीत हैं। बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं। 2024 के चुनाव में राजग ने इन में से 30 सीटों पर विजय हासिल की। तब तक तो कोई 10 हजारी योजना नहीं थी ? नवंबर, 2024 में बिहार विधान सभा की 4 सीटों पर उप चुनाव हुए थे। इनमें से तीन सीटें पहले इंडी गठबंधन के पास थीं। सन 2020 के आम चुनाव में वहां उनकी विजय हुई थी। पर, नवंबर, 2024 के उप चुनाव में चारों सीटें राजग जीत गया । यानी, राजग ने इंडी गठबंधन से एक दो नहीं, बल्कि तीन सीटें छीन लीं। तीन में से 2 सीटें राजद के पास और एक सीट माले के पास थी। तब तक यह माना जाता था कि राजद और माले से सीटें छीनना कठिन काम है। याद रहे नवंबर, 2024 में भी कोई 10 हजारी योजना नहीं थी।
इस देश के तथाकथित सेक्युलर दल एक राजनीतिक घटनाक्रम और उसके व्यापक असर को नजरअंदाज कर रहे हैं। वह है बांग्लादेश में तख्ता पलट और उसके ठीक बाद से वहां हो रहे गैर मुस्लिमों के साथ मध्यकालीन जुल्म । धर्मान्तरण का दबाव। क्या कारण है कि अगस्त, 2024 में बांग्लादेश में हुए तख्तापलट के बाद झारखंड विधान सभा चुनाव को छोड़कर भारत के किसी भी चुनाव में राजग की ही जीत होती रही है ? केरल जैसे राजग के लिए कठिन प्रदेश में भी कल पत्थर पर दूब उग आई।क्या कारण है ?
शेख हसीना को अपदस्थ करने के बाद बांग्ला देश के जेहादियों ने वहां के गैर मुसलमानों खासकर निरीह हिन्दुओं व खासकर महिलाओं के साथ जो भीषण अत्याचार-अनाचार-बलात्कार किये,कर रहे हैं ,उससे भारत का बहुसंख्यक समाज सतर्क हो गया है। इस देश के कुछ राजनीतिक दलों के प्रति उनका रुख बदल रहा है। याद रहे कि उन दृश्यों को भारतवासियों ने अपने टी.वी.चैनलों पर देखे थे। उससे पहले कश्मीर या मध्य युग के ऐसे दृश्य को देखने का अवसर नहीं मिला था।उन दिनों की जघन्य कहानियों को भी तोड़ मरोड़ कर भारत में बेईमान इतिहासकारों ने पेश किया है।
राजग विरोधी दलों ने इस बीच मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण का जारदोर विरोध करके अपने आपको उन लोगों के बीच नंगा कर दिया जो लोग जान चुके हैं कि वैसा अभियान काम मुस्लिम घुसपैठियों को भारत में बनाये रखने के लिए किया जा रहा है।ताकि कुछ लोगों को उनके वोट मिल सकें। वोट चोर ,गद्दी छोड़ का नारा जितना भी लगाओ, सब जानते हैं कि इक्के दुक्के गड़बड़ियों को छोड़ दें तो कोई वोट चोरी नहीं हुई है। बिहार के किसी मतदाता ने यह आरोप नहीं लगाया कि एस.आई.आर के जरिए मेरा नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया।

कान खोल कर सुन लो
सच तो यह है कि मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम का जो भी दल विरोध कर रहे हैं, उनका चुनावी भविष्य अब अनिश्चित हो गया है। बिहार में तो वैसे दलों का लगभग सफाया ही हो गया।उनमें से कई के डायनासोर बन जाने का खतरा है। 2014 के लोक सभा चुनाव के बाद ए.के.एंटोनी समिति ने यह कहा था कि कांग्रेस इसलिए हार गई क्योंकि जनता को लगा कि कांग्रेस मुसलमानों की ओर झुकी हुई है। एंटोनी की सलाह पर ध्यान देकर संतुलन अपनाने की जगह आज कांग्रेस ने मुसलमानों के अतिवादी तत्वों से पूरी तरह साठगांठ कर ली है। इसलिए कांग्रेस वहीं जीत पाएगी जहां के मुस्लिम वोट चुनाव के लिए निर्णायक होंगे।

Share This Article