Bhumihar Brahmin or Bhumihar: सरकारी काग़ज़ों में पहचान पर बवाल, सवर्ण आयोग में अटका फ़ैसला

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सरकारी दस्तावेज़ों में ‘भूमिहार’ या ‘भूमिहार ब्राह्मण’ को लेकर बहस
Highlights
  • • ‘भूमिहार’ या ‘भूमिहार ब्राह्मण’ पर विवाद • सवर्ण आयोग की दो बैठकें रहीं बेनतीजा • 1931 जनगणना और ऐतिहासिक दस्तावेज़ बने आधार • विरोधी पक्ष ने पेश किए सामाजिक तर्क • अंतिम फैसला राज्य सरकार के हाथ में

बिहार की राजनीति और सामाजिक विमर्श में एक बार फिर पहचान और इतिहास को लेकर बहस तेज हो गई है। सवाल सीधा है लेकिन असर गहरा—सरकारी दस्तावेज़ों में ‘भूमिहार’ लिखा जाए या ‘भूमिहार ब्राह्मण’?
यह मुद्दा अब बिहार के सवर्ण आयोग के पाले में है, लेकिन अब तक हुई दो बैठकों के बाद भी कोई ठोस निर्णय नहीं निकल पाया है। अगर तीसरी बैठक भी निष्कर्षहीन रही, तो यह मामला सीधे राज्य सरकार के स्तर पर निर्णय के लिए चला जाएगा।

यह विवाद केवल शब्दावली तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके केंद्र में सामाजिक पहचान, ऐतिहासिक संदर्भ और प्रशासनिक मान्यता का सवाल जुड़ा हुआ है।

Bhumihar Brahmin or Bhumihar: विवाद की शुरुआत कैसे हुई?

सरकारी रिकॉर्ड में लंबे समय से ‘भूमिहार’ शब्द का इस्तेमाल होता रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में भूमिहार समाज के कुछ संगठनों ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई। उनका कहना है कि केवल ‘भूमिहार’ लिखना अधूरी और भ्रामक पहचान प्रस्तुत करता है।

इन संगठनों का तर्क है कि भूमिहार वास्तव में ब्राह्मण जाति का ही हिस्सा हैं और विशेष रूप से अयाचक ब्राह्मण की श्रेणी में आते हैं। ऐसे में सरकारी दस्तावेज़ों में ‘भूमिहार ब्राह्मण’ लिखा जाना चाहिए, ताकि ऐतिहासिक और सामाजिक पहचान स्पष्ट हो सके।

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Bhumihar Brahmin or Bhumihar: सवर्ण आयोग तक कैसे पहुँचा मामला?

Bhumihar Brahmin or Bhumihar controversy Bihar
सरकारी दस्तावेज़ों में ‘भूमिहार’ या ‘भूमिहार ब्राह्मण’ को लेकर बहस

इस विवाद के औपचारिक रूप लेने के बाद बिहार के सामान्य प्रशासन विभाग ने 10 अक्टूबर 2025 को सवर्ण आयोग को एक आधिकारिक पत्र लिखा। पत्र में आयोग से यह मार्गदर्शन मांगा गया कि—

क्या सरकारी दस्तावेज़ों में अब ‘भूमिहार’ की जगह ‘भूमिहार ब्राह्मण’ लिखा जाना चाहिए?

इसके बाद सवर्ण आयोग ने इस विषय पर 21 नवंबर और 8 दिसंबर को दो बैठकें कीं। हालांकि दोनों बैठकों में लंबी चर्चा हुई, लेकिन किसी एक निष्कर्ष पर सहमति नहीं बन सकी।

Bhumihar Brahmin or Bhumihar: समर्थकों के तर्क क्या हैं?

‘भूमिहार ब्राह्मण’ शब्द के समर्थन में कई ऐतिहासिक और सामाजिक तर्क दिए जा रहे हैं—
• 1931 की जनगणना में ‘भूमिहार ब्राह्मण’ शब्द का उल्लेख
• पुराने भूमि अभिलेखों और दस्तावेज़ों में यही शब्दावली
• अयाचक ब्राह्मण परंपरा का हवाला
• धार्मिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों में ब्राह्मण पहचान

समर्थकों का कहना है कि प्रशासनिक रिकॉर्ड में सही शब्द न होने से समुदाय की ऐतिहासिक पहचान कमजोर पड़ती है और आने वाली पीढ़ियों में भ्रम पैदा होता है।

Bhumihar Brahmin or Bhumihar: विरोधी पक्ष की आपत्तियां

वहीं इस मांग का विरोध करने वाला पक्ष भी अपने तर्क मजबूती से रख रहा है। विरोधियों का कहना है कि—
• भूमिहारों का पारंपरिक पेशा पुरोहिताई नहीं, बल्कि खेती-बाड़ी रहा है
• ब्राह्मण समाज में जनेऊ संस्कार बचपन में होता है, जबकि भूमिहारों में यह विवाह के समय होता है
• सामाजिक संरचना और ऐतिहासिक व्यवहार में अंतर स्पष्ट है

उनका मानना है कि प्रशासनिक दस्तावेज़ों में बदलाव से नई सामाजिक जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।

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Bhumihar Brahmin or Bhumihar: तीसरी बैठक क्यों है अहम?

सवर्ण आयोग ने दोनों पक्षों से लिखित साक्ष्य और ऐतिहासिक दस्तावेज़ मांगे थे, जो अब आयोग के पास पहुंच चुके हैं। अब अगली बैठक में इन्हीं साक्ष्यों के आधार पर फैसला लेने की कोशिश की जाएगी।

अगर तीसरी बैठक में भी सहमति नहीं बनती, तो आयोग के भीतर मतदान के जरिए राय तैयार की जा सकती है। हालांकि, आयोग की सिफारिश बाध्यकारी नहीं होगी।

Bhumihar Brahmin or Bhumihar: आयोग अध्यक्ष ने क्या कहा?

सवर्ण आयोग के अध्यक्ष महाचंद्र सिंह ने इस पूरे मुद्दे को “विवाद” मानने से इनकार किया है। उनका कहना है कि—
• आयोग के सामने कोई टकराव नहीं
• यह केवल तथ्यों और तर्कों पर आधारित चर्चा
• अंतिम फैसला राज्य सरकार को ही लेना होगा

उन्होंने स्पष्ट किया कि सवर्ण आयोग की भूमिका केवल नीतिगत सुझाव देने तक सीमित है।

Bhumihar Brahmin or Bhumihar: एक शब्द, कई मायने

स्पष्ट है कि यह मसला सिर्फ़ एक शब्द का नहीं है। यह पहचान, इतिहास और सियासत के उस त्रिकोण से जुड़ा है, जहां प्रशासनिक निर्णय सामाजिक बहस में बदल जाते हैं। बिहार की राजनीति में ऐसे मुद्दे पहले भी केवल काग़ज़ी फैसलों तक सीमित नहीं रहे हैं।

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