गलत बस में बैठने वाली औरत की रोज़ की आदत
अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में हर सुबह ठीक 9:10 बजे बस नंबर 47 एक निश्चित स्टॉप पर आकर रुकती थी। उसी समय एक बूढ़ी औरत रोज़ उस बस में चढ़ती थी, जबकि वह बस अस्पताल की ओर नहीं जाती थी। ड्राइवर उसे पहचानता था, कंडक्टर उसे जानता था, लेकिन कोई भी उससे ज्यादा सवाल नहीं करता था।
ड्राइवर रोज़ वही कहता—“मां, यह बस अस्पताल नहीं जाती।”
औरत मुस्कराती, टिकट लेती और खिड़की के पास बैठ जाती।
गलत बस में बैठने वाली औरत को लोग कैसे देखते थे
बस में बैठने वाले लोग उसे देखकर अपने-अपने अंदाज़े लगाते थे। कोई कहता—उम्र का असर है। कोई कहता—भूलने की बीमारी है। कुछ लोग बस सहानुभूति दिखाकर चुप हो जाते थे।
वह औरत हर रोज़ तीन स्टॉप बाद उतरती और फिर पैदल उसी जगह लौट जाती, जहां से वह बस में चढ़ी थी। किसी को समझ नहीं आता था कि वह ऐसा क्यों करती है।
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एक सवाल जिसने सब कुछ बदल दिया
एक दिन बारिश हो रही थी। बस में भीड़ कम थी। उस दिन एक नई कंडक्टर ड्यूटी पर थी। उसने हिम्मत करके सवाल पूछ ही लिया—
“आप रोज़ गलत बस क्यों लेती हैं?”
औरत ने खिड़की से बाहर देखा। कुछ पल चुप रही। फिर धीमी आवाज़ में बोली—
गलत बस में बैठने वाली औरत का सच
“क्योंकि इस बस में हर सुबह एक आदमी बैठता था, जो पूरी यात्रा में किसी से बात नहीं करता था।”
कंडक्टर चुप हो गई।
औरत ने आगे कहा—
“वह मेरा बेटा था। वह यहीं से अपनी नौकरी पर जाता था। पांच साल पहले इसी बस में उसे दिल का दौरा पड़ा और वह चला गया।”
कुछ पल बाद वह बोली—
“अब वह नहीं आता, लेकिन इस रास्ते पर बैठकर मुझे लगता है जैसे वह आज भी काम पर जा रहा हो।”
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बस नंबर 47 की ‘शांत यात्रा’
उस दिन के बाद कुछ बदल गया। किसी नियम में नहीं लिखा गया, कोई आदेश जारी नहीं हुआ, लेकिन इंसानों ने इंसानियत से फैसला ले लिया।
अब रोज़ 9:10 बजे:
- ड्राइवर रेडियो बंद रखता है
- कंडक्टर ऊंची आवाज़ में बात नहीं करते
- बस में एक अजीब-सी शांति रहती है
बस नंबर 47 को लोग अब “शांत यात्रा” कहने लगे।
गलत रास्ता भी कभी सही हो सकता है
यह कहानी सिखाती है कि हर गलती सच में गलती नहीं होती। कभी-कभी किसी मां का गलत रास्ता भी सही होता है। क्योंकि वह रास्ता यादों, प्रेम और ममता से बना होता है।
गलत बस में बैठने वाली औरत ने यह दिखा दिया कि प्यार समय, दिशा और नियम नहीं देखता। वह बस महसूस किया जाता है।
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