बिहार में एक उपमुख्यमंत्री हैं विजय कुमार सिन्हा, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है। अपने तीखे तेवर और कड़क प्रशासनिक अंदाज़ के कारण वे हमेशा चर्चा में रहते हैं। वर्तमान में वे राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के मंत्री हैं—एक ऐसा विभाग जिसे बिहार में सबसे “कमाऊं” विभाग कहा जाता है। लेकिन यही कमाई अब विभाग की सबसे बड़ी परेशानी बन गई है।
राजस्व विभाग में अमीन से लेकर अंचल कार्यालयों में बैठे सीओ और उनके ऊपर के अधिकारी तक भ्रष्टाचार की दरिया में गोते लगाते रहे हैं। घूस, सुविधा शुल्क और फाइल रोकने-चलाने का खेल वर्षों से चलता आ रहा है। ऐसे में विजय कुमार सिन्हा का यह कहना कि “घूस नहीं लेना है, जनता मालिक है”—पूरे सिस्टम के लिए झटका बन गया है।
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग और भ्रष्टाचार की जड़ें
बिहार में शायद ही कोई विभाग हो जो भ्रष्टाचार से अछूता हो, लेकिन राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग को कमाई के मामले में सबसे आगे माना जाता है। जमीन से जुड़ा हर काम—दाखिल-खारिज, रसीद, म्यूटेशन, नक्शा—घूस के बिना आगे बढ़े, ऐसा मानना लोगों को असंभव लगता था।
“लटकाओ, भटकाओ, फिर खींचो” का पुराना फार्मूला
सिस्टम का अलिखित नियम था—फाइल लटकाओ, जनता को भटकाओ और अंत में नकदी खींचो। इसी फार्मूले पर वर्षों से काम चलता रहा। लेकिन विजय कुमार सिन्हा ने साफ कह दिया कि यह मॉडल अब नहीं चलेगा।
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विजय कुमार सिन्हा का सख्त संदेश और संघी सोच
विजय सिन्हा ठेठ संघी माने जाते हैं। संघ की शाखा में “आरमह:” करते-करते यहां तक पहुंचे हैं। उनके लिए घूस लेना सिर्फ अपराध नहीं, पाप है। उन्होंने अधिकारियों से दो टूक कहा—आप सेवक हैं, स्वामी बनने की कोशिश मत कीजिए। विभाग का स्वामी मंत्री होता है और मंत्री का स्वामी जनता।
“जनता परेशान हुई तो आप भी परेशान होंगे”
मंत्री का यह बयान विभागीय अधिकारियों को सीधा संदेश था कि अब जनता को डराकर काम नहीं चलेगा। काम तेजी से करना होगा, घूस नहीं लेनी होगी।
जन कल्याण संवाद शिविर और ऑन-स्पॉट समाधान
विजय कुमार सिन्हा जिले-जिले घूमकर भूमि सुधार जन कल्याण संवाद शिविर लगा रहे हैं। इन शिविरों में लोगों की वर्षों से लटकी समस्याओं का मौके पर समाधान किया जा रहा है।
जनता खुश, अधिकारी नाराज़
जनता इसलिए खुश है क्योंकि बिना घूस दिए उनका काम हो रहा है। लेकिन बाबू और साहब इसलिए नाराज़ हैं क्योंकि उनकी “डेली कमाई” बंद हो गई है। पहले रोज जेब भरकर घर जाते थे, अब खाली जेब लौटना पड़ रहा है। कमाई भी गई और रुआब भी।
राजस्व सेवा संघ की चिट्ठी और अफसरशाही की बेचैनी
राजस्व सेवा संघ ने इस मुद्दे को संसदीय भाषा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक पहुंचाया है। संघ ने मंत्री की कार्यशैली को “तमाशाई शासन शैली” बताया और कहा कि सार्वजनिक मंचों पर अधिकारियों को अपमानित किया जा रहा है।
रिश्वत को जायज ठहराने की कोशिश
संघ का तर्क है कि सीओ पर काम का बोझ ज्यादा है। असल में यह काम के बोझ की आड़ में रिश्वत को जायज ठहराने की कोशिश है। संदेश साफ है—अगर हमारी कमाई बंद होगी तो बाकी विभागों की भी होनी चाहिए।
इतिहास, चेतावनी और सत्ता का संतुलन
बिहार का इतिहास गवाह है कि अफसरशाही की लॉबी कितनी ताकतवर रही है। चारा घोटाले से लेकर एक्साइज किंग तक, अधिकारियों ने मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों तक को प्रभावित किया है।
राजनीति में “धीरे-धीरे चलने” की नसीहत
बिहार की राजनीति में कहा जाता है—“दूल्हा धीरे-धीरे चल ससुर गलिया।” सत्ता संतुलन समझना जरूरी होता है। अधिकारी मुख्यमंत्री के बेहद करीबी माने जाते हैं। कब मंत्री का विभाग बदल दिया जाए, कोई नहीं जानता।
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भ्रष्टाचार लॉबी बनाम मंत्री—लड़ाई निर्णायक मोड़ पर
इसके बावजूद विजय कुमार सिन्हा ठोक कर कह चुके हैं कि वे दबाव में आने वाले नहीं हैं। वे गीदड़ भभकियों से डरने वाले नहीं हैं। साफ है कि यह लड़ाई अभी तेज होगी।
जीतेगा सिस्टम या सुधार?
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग में जो चल रहा है, वह सिर्फ एक विभाग की कहानी नहीं है। यह सवाल है कि भ्रष्टाचार की लॉबी जीतेगी या राजनीतिक इच्छाशक्ति। जनता की नजरें अब इसी पर टिकी हैं।
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