वैदिक कालीन शिक्षा का आधुनिक शिक्षा पर प्रभाव विषय पर सेमिनार का आयोजन
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हरनौत: स्थानीय आरपीएस कॉलेज में इतिहास विभाग ने शुक्रवार को ‘वैदिक कालीन शिक्षा का आधुनिक शिक्षा पर प्रभाव’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। इस दौरान मुख्य अतिथि के रूप में बख्तियारपुर स्थित नुनुवती जगदेव सिंह कॉलेज के प्रो. प्रणब कुमार, प्रो. अपराजिता एवं प्रो. मुकेश कुमार मौजूद रहे। कार्यक्रम के अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ उपेंद्र कुमार सिंह के द्वारा किया गया, जबकि मंच संचालक रवि कुमार ने किया। इस दौरान आरपीएस कॉलेज के प्रो. रेणु कुमारी, प्रो. सुरेंद्र प्रसाद, प्रो. नवरतन कुमार सहित अन्य वक्ताओं ने अपने-अपने विचार रखा। छात्रों को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि वैदिक कालीन शिक्षा का मतलव वेद के समय की शिक्षा जो 15 सौ ईसा पूर्व से 5 सौ ईसा पूर्व तक माना जाता है। वैदिक कालीन शिक्षा व्यापक एवं सर्वांगीण विकास के लिए थी जिससे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त होता था। इससे चरित्र निर्माण होता था। वैदिक कालीन शिक्षा से ही समाज का सर्वांगीण विकास हो सकता है। वैदिक कालीन शिक्षा से नैतिकता का निर्माण होता है। जिससे व्यक्ति सही -गलत, धर्म -अधर्म, अच्छा- बुरा के बीच का अंतर समझ सकता है। जबकि आधुनिकता की ओर बढ़ने से धीरे-धीरे समाज में दूरियां बढ़ गई है। ऐसे में एक बार पुनः सभी लोगों को दयानंद सरस्वती की बात याद आती है।

वेदों की ओर लौट चलें। आधुनिक शिक्षा व्यावसायिक शिक्षा बन गयी है। वैदिक कालीन शिक्षा से ही लोग बुद्ध के रास्ते पर चलेंगे, नहीं तो सब के सब अंगुलिमाल डाकू बन जाएंगे। मित्र हो तो सुदामा जैसा, भाई हो तो भरत जैसा, की बात करते हैं, लेकिन अपने में आत्मसात नहीं करते हैं। जिसे करने की आवश्यकता है। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ उपेंद्र कुमार सिन्हा ने कहा कि वैदिक कालीन शिक्षा के समय ऋषि मुनि व छात्र अनुशासन में रहते थे। लेकिन आधुनिक काल में अनुशासन नहीं है। भारत में नालंदा, विक्रमशिला एवं तक्षशिला जैसे पुराने विश्वविद्यालय थे। उस समय देश-विदेश के भी विद्यार्थी वहां शिक्षा ग्रहण करते थे। छात्र एवं शिक्षकों में एक बेहतर संबंध रहता था, जो आज नहीं है। वैदिक कालीन शिक्षा लेकर ही हम देश को एक सूत्र में बांध सकते हैं। जो आज के लिए जरूरी है।

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