आरके सिन्हा की तस्वीर
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अमित शाह राजधानी में अपने साउथ ब्लॉक के दफ्तर में जब काम करते होंगेतब उनके जेहन में भी देश के पहले उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री सरदार पटेल का ख्याल अवश्य आता होगा। लौह पुरुष सरदार पटेल नें भी इसी साउथ ब्लॉक  में बने गृह मंत्री कार्यालय से ही से देश की आंतरिक सुरक्षा को एक नई दिशा दी थी। वे भी बोलने में कम और काम करने में अधिक यकीन करते थे। अमित शाह का एक गुण यह भी है कि वे किसी अनावश्यक विवाद को खत्म करने में देर नहीं करते। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शायद सोचा होगा कि वे अमित शाह को देश का भावी प्रधानमंत्री बताकर एक विवाद खड़ा कर देंगे। पर उनकी यह मंशा सफल नहीं हुईक्योंकि अमित शाह ने साफ कर दिया कि नरेन्द्र मोदी ही 2029 तक देश के प्रधानमंत्री बने रहेंगे।

 अमित शाह ने पहले भाजपा के संगठन में रहते हुए और फिर केन्द्रीय गृह मंत्री के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। भाजपा  अध्यक्ष रहते हुए उनके संगठनात्मक कौशल को सबने देखालेकिन जो लोग उन्हें गुजरात के दिनों से जानते थेवे बहुत हैरान नहीं हुए।  फिर, 2019 मेंवह केंद्रीय गृह मंत्री बनेऔर इसके साथ ही शुरू हुआ कई बड़े फैसलों को लेने का दौर। पिछले पांच वर्षों मेंअमित शाह ने आंतरिक सुरक्षा को नया रूप दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की देखरेख में भारतीय दंड विधान (आईपीसी)दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और साक्ष्य अधिनियम को बदला गया। अमित शाह मानते हैं कि कोई भी कानून 50 साल के बाद पुराना हो जाता है। 1860 से 2023 तक आईपीसीसीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम में कोई परिवर्तन नहीं हुआ था ।

 आपको याद होगा जब जब भारत अपना 75वां स्वाधीनता दिवस मना रहा था, तब प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले की प्राचीर से पांच संकल्प किए थे। नए आपराधिक कानून उनमें से एक को पूरा करते हैं। सरकार ने नए कानूनों को भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम नाम दिया है। गृह मंत्री के रूप में अमित, शाह को प्रधानमंत्री का विश्वास और पूरा भरोसा प्राप्त है। वास्तव में, जब कोई राजनीतिक या सरकारी मुद्दा प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष लाया जाता है, तो कहा जाता है कि वह उस व्यक्ति से अमित शाह से भी सलाह लेने के लिए कहते हैं।

2019 मेंगृह मंत्री बनने के तीन महीने बादअमित शाह संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के सरकारी कदम में सबसे आगे थे। इसके लिए कुशल राजनीतिक सूझबूझ की आवश्यकता थी। उन्हें प्रधानमंत्री मोदी का पूरा समर्थन हासिल था। चार साल बादसुप्रीम कोर्ट ने फैसले की वैधता को बरकरार रखाजो कि भाजपा ने भारत के अंतिम एकीकरण में सबसे बड़ी बाधा के रूप में देखा था।

 अमित शाह 2019 के नागरिकता संशोधन अधिनियम ( सीएए)   की पीछे प्रेरक शक्ति भी रहे हैंजिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अफगानिस्तानबांग्लादेश और पाकिस्तान के उत्पीड़ित हिंदूसिखबौद्धजैनपारसी और ईसाई – जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश कर चुके हैं – उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाए। लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद आशंका थी कि  सीएए को विपक्ष मुद्दा बनायेगा। पर यह नहीं हुआ। इसकी बेशक एक बड़ी वजह यह रही कि अमित शाह देश के मुसलमानों को भरोसा देता रहे कि सीएए कानून का उनसे कोई लेना-देना है। याद करें कि राजधानी के शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ महिलाओं ने लंबा धरना दिया था। धरने देने वाली महिलाएं कह रही थीं कि सीएए के बहाने मुसलमानों को प्रताड़ित किया जाएगा। धरना कोविड के फैलने के कारण सरकार ने सख्ती से बंद करवा दिया था। उस समय धमकी दी जा रही थीकि सीएए के खिलाफ धरना फिर शुरू होगा। पर यह नहीं हुआ। गृह मंत्री अमित मोदी बार-बार मुसलमानों को भरोसा देते रहे कि सीएए से उन्हें घबराने की कोई वजह नहीं है। इसका सकारात्मक असर हुआ। जब केन्द्र सरकार ने सीएए की पिछली 11 मार्च को अधिसूचना जारी की तो एक बार लगा  कि इसका विरोध होगा।  पर कहीं कुछ नहीं हुआ। लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले सीएए की अधिसूचना के बाद उम्मीद थी कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल सीएए को लागू करने के मसले को लोकसभा चुनाव में उठाएंगे।  सीएएएनआरसी और धारा 370 जैसे मुद्दे काँग्रेस के घोषणापत्र से ही गायब हैं। सीएए पर दिल्ली से शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन देश के अन्य हिस्सों में फैल गया था और जल्दी ही यह हिंदू- मुस्लिम विवाद में बदला था। दिल्ली में सार्वजनिक संपत्ति को खूब नुकसान पहुंचाया गया और विरोध प्रदर्शन हिंसक भी हुए थे। एक लोकतांत्रिक देश में हर मुद्दे पर विरोध का अधिकार हैलेकिन क्या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का भी हक है। जबकि विधेयक में पहले दिन से कहा गया था कि यह केवल उन शरणार्थियों पर लागू किया जाएगा जो “धर्म के आधार पर उत्पीड़न के कारण भारत में शरण लेने के लिए मजबूर थे।

 खैरअमित शाह की सरपरस्ती में आंतरिक आतंकवाद का खतरा भी कम हुआ है। इस्लामिक स्टेट का उदयपहले सीरिया और बाद में अफगानिस्तान मेंचरमपंथी प्रवृत्ति वाले कई युवाओं को विदेशी जमीन में युद्ध लड़ने के लिए देश से बाहर जाते हुए देखा गया। इससे 2014 में कट्टरपंथ और ऑनलाइन ब्रेनवॉशिंग के नए खतरों के बारे में चिंता पैदा हुई थीलेकिन गृह मंत्रालय और खुफिया एजेंसियां आज इनसे निपटने के लिए बेहतर तरीके से तैयार हैं।

छत्तीसगढ़बिहार और झारखंड के नक्सल प्रभावित राज्यों मेंसुरक्षा बल धीरे-धीरे उन क्षेत्रों में वापस आ रहे हैं जिन्हें कभी रेड जोन माना जाता था। लोकसभा चुनाव  2024 के प्रचार के दौरान गृह मंत्री अमित शाह  ने कहा है कि  नक्समलवाद के खिलाफ हमारी जंग जारी रहेगी। लोकसभा चुनावों से ठीक पहले नक्स लियों पर एक बहुत बड़ा ऑपरेशन हुआऐसा पिछले साल दिसंबर महीने में भी देखने को मिला था। अमित शाह कह रहे हैं  कि भाजपा के कमिटमेंट में कोई बदलाव नहीं आया है। फिर वो चाहेनक्सुलवाद के खिलाफ हो या आतंकवाद के खिलाफ। आतंकवाद और नक्सदलवाद लोकतांत्रिक तरीके नहीं हैं और इन्हें  समाप्ति कर देना चाहिए। 

(लेखक  वरिष्ठ संपादकस्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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