100 मीटर का झूठ: अरावली को काग़ज़ पर छोटा करने की खतरनाक साज़िश

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Highlights
  • • 100 मीटर की परिभाषा का सच • अरावली का पर्यावरणीय महत्व • सुप्रीम कोर्ट आदेश की अनदेखी • राष्ट्रीय स्तर पर खतरा

100 मीटर की परिभाषा और अरावली संकट

अरावली पर्वत श्रृंखला आज केवल खनन या विकास का मुद्दा नहीं रह गई है, बल्कि यह भाषा, कानून और पर्यावरणीय विवेक की परीक्षा बन चुकी है। करोड़ों वर्षों से उत्तर-पश्चिम भारत की जलवायु को संतुलित रखने वाली अरावली को अब 100 मीटर की गणितीय कसौटी पर तौला जा रहा है। कहा जा रहा है—जो 100 मीटर से नीचे है, वह पहाड़ नहीं। यह तर्क केवल भ्रामक नहीं, बल्कि खतरनाक भी है।

अरावली संकट और 100 मीटर की विवादित परिभाषा

अरावली दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, जिसकी लंबाई लगभग 700 किलोमीटर है। यह थार मरुस्थल और उपजाऊ मैदानों के बीच एक प्राकृतिक दीवार की तरह काम करती रही है। लेकिन अब सरकारी समितियों द्वारा अदालतों में यह तर्क दिया जा रहा है कि 100 मीटर से कम ऊँचाई वाले हिस्से “पहाड़” की श्रेणी में नहीं आते।

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अरावली पहाड़ नहीं, तो क्या है?

यह प्रश्न भूगोल का नहीं, नीति और नीयत का है। अरावली को पहाड़ न मानने का सीधा अर्थ है—खनन, निर्माण और अंधाधुंध दोहन को कानूनी रास्ता देना। जब किसी प्राकृतिक संरचना की पहचान बदल दी जाती है, तो उसे नष्ट करना आसान हो जाता है।

अमृता देवी और पर्यावरणीय चेतना की विरासत

1730 में अमृता देवी विश्नोई और उनके 363 साथियों ने खेजड़ी वृक्षों की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उनके लिए पेड़ और पहाड़ केवल संसाधन नहीं थे, बल्कि जीवन का आधार थे। आज उसी धरती पर अरावली को काग़ज़ी परिभाषाओं में बौना किया जा रहा है—यह केवल पर्यावरण नहीं, इतिहास का भी अपमान है।

अरावली का प्रभाव—ऊँचाई नहीं, दायरा देखिए

अरावली का महत्व उसकी ऊँचाई में नहीं, बल्कि उसके पर्यावरणीय प्रभाव क्षेत्र में है।

अरावली और जलवायु संतुलन

  • भूजल संरक्षण
  • मानसून की दिशा तय करना
  • धूल-तूफानों पर रोक
  • दिल्ली-NCR की हवा को सांस लेने लायक बनाना

जहाँ अरावली बची, वहाँ पानी बचा। जहाँ कटी, वहाँ सूखा और गर्मी बढ़ी।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश और मौजूदा खतरा

सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि अरावली में खनन नहीं होगा। फिर भी 100 मीटर जैसी शर्तों के ज़रिए उसी आदेश को कमजोर करने की कोशिश हो रही है। यह विज्ञान नहीं, बल्कि सुविधाजनक भ्रम है।

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अरावली को कमजोर करना राष्ट्रीय आत्मघात क्यों है

अरावली केवल राजस्थान या गुजरात का मुद्दा नहीं है।

  • दिल्ली की जहरीली हवा
  • हरियाणा का गिरता भूजल
  • उत्तर भारत की बढ़ती गर्मी

सब सीधे अरावली से जुड़े हैं। इसे कमजोर करना पूरे देश को अस्थिर करना है।

पहाड़ नहीं, हमारी परीक्षा है

अरावली चुप रहेगी, लेकिन परिणाम बोलेगा—सूखा, बाढ़, धूल और घुटन। आज चुप रहना साझा अपराध है। अरावली को बचाना, भविष्य को बचाना है।

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