दिल्ली की नई मुख्यमंत्री आतिशी इन दिनों चर्चा में हैं। लोग कह रहे हैं कि ये आगामी विधानसभा चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल का मास्टर स्ट्रोक है। दूसरी तरफ भाजपा उनके अंदर बिहार के जीतनराम मांझी और झारखंड के चम्पई सोरेन की आत्मा तलाश रही है। भाजपा की रणनीति को देखते हुए आतिशी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी को खाली रखा है और बगल में एक कुर्सी खुद के लिए रख कर विरोधियों को संदेश दे दिया है कि केजरीवाल के प्रति उनकी भक्ति को संदेह की निगाह से नही देखा जाए।
पहले दिल्ली सरकार में नम्बर दो का दर्जा रखने वाले मनीष सिसोदिया और बाद में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तेजतर्रार सांसद संजय सिंह को भ्र्ष्टाचार के मुकदमे में जेल भेजने के बाद भाजपा मुगालते में थी कि आम आदमी पार्टी की कमर टूट चुकी है। उन्हें उम्मीद नही थी कि 2020 में पहली बार विधयक बनी आतिशी उनके सामने रोड़ा बन कर खड़ी हो जाएगी।
आतिशी की माता तृप्ता और पिता विजय सिंह दोनो प्रोफेसर हैं। अनुकूल माहैल में उनकी शिक्षा दिल्ली के मशहूर ‘सेंट स्टीफेन कॉलेज’ से हुई। उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वो ऑक्सफोर्ड गयीं। पिता विजय सिंह को बचपन मे ही आतिशी में कुछ राजनीतिक बीज दिखे। उन्होंने बेटी का टाइटल रखा ‘मारलेने’ अर्थात मार्क्स और लेनिन को जोड़ कर बना एक नाम।
आतिशी ‘मारलेने’ ऑक्सफोर्ड की शिक्षा के बाद जब हिंदुस्तान लौटी तो कुछ समय उन्होंने मध्यप्रदेश में ‘एग्री रिसर्च’ में गुज़रे। दिल्ली से पुराना नाता था और भ्र्ष्टाचार के खिलाफ नारे दे कर पनप रही आम आदमी पार्टी ने उनको उद्वेलित किया। 2013 में एक आंशिक कार्यकर्ता के रूप में वो पार्टी से जुड़ गई।
उसके बाद अरविंद केजरीवाल के आग्रह पर आतिशी पार्टी की पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गयी। 2015 के चुनाव में आम आदमी पार्टी को अभूतपूर्व सफलता मिली। इस सफलता के बाद पार्टी के अंदर एक अशुभ घटना घटी। तीन कद्दावर नेता प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और कुमार विश्वास अरविंद केजरीवाल की कार्यपद्धति का विरोध करते हुए पार्टी से अलग हो गए। तब कहा जाता था कि आतिशी उन्ही के कैम्प की हैं लेकिन ‘पोस्ट ब्रेकेज’ आतिशी अरविंद केजरीवाल के साथ ही रही।
आम आदमी पार्टी की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में एक दिल्ली के सरकारी स्कूलों का कायाकल्प उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के नेतृत्व में हूआ लेकिन बहुत कम लोगो को मालूम है कि सरकारी स्कूलों के कायाकल्प के पीछे असली हाथ आतिशी क़ा था। पर्दे के पीछे उनके सतत प्रयास के कारण ही दिल्ली में सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता और परिणाम निजी स्कूलो से बेहतर होने लगे। आतिशी के इस प्रयास ने उन्हें आम आदमी पार्टी के अग्रणी नेताओ की श्रेणी में ला दिया। उन्हें पार्टी का प्रवक्ता बना दिया गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में आतिशी पूर्वी दिल्ली से उम्मीदवार बनी लेकिन हार गयीं। अगले साल 2020 में दक्षिण दिल्ली की कालका जी सीट से विधायक चुनी गई।
ऐसा नही है कि भाजपा की नजर आतिशी पर नही थी। पर्दे के पीछे उनकी क्षमता पर विरोधी दल निगाह बनाये हुए था। आतिशी के मारलेने टायटल को देखते हुए उन्हें ‘क्रिश्चियन’ कह कर सोसल मीडिया पर ट्रोल किया गया। बाद में मनीष सिसोदिया ने उन्हें डिफेंड करते हुए कहा कि आतिशी एक राजपूतनी है और उसका नाम आतिशी सिंह है। लेकिन ऑक्सफोर्ड में पढ़ी आतिशी खुद को जात पात से अलग रखना चाहती थी। उन्होंने ‘मारलेने’ और ‘सिंह’ दोनो टायटल छोड़ कर सिर्फ आतिशी नाम से जिंदगी को आगे बढ़ाने का फैसला किया। आतिशी को 2022 में रोहिंग्या समर्थक बता कर बदनाम करने की कोशिश की गई लेकिन स्वच्छ छवि के कारण वो हालात से उबर गयीं।
अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जब जेल में थे तो अप्रत्यक्ष तौर पर मुख्यमंत्री के कार्यो का वहन आतिशी ही कर रही थी। जेल से निकलने के बाद अरविंद केजरीवाल ने भाजपा के उस मुहिम को नाकाम करने का फैसला किया जिसमें उन पर आरोप था कि मुकद्दमे में जेल जाने के बाद भी वो कुर्सी पर चिपके रहे। उन्होंने ऐलान किया कि अब अगले विधानसभा में जीत के बाद ही वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेंगे। वर्तमान में आतिशी उनकी सबसे विश्वस्त मोहरा हैं और मुख्यमंत्री के अलावा दिल्ली सरकार की तेरह मंत्रालय सम्हाल रही हैं। फिलहाल केजरीवाल के प्रति उनकी निष्ठा जगजाहिर है लेकिन राजनीति बड़ी अजीब होती है। यहां संभावनाएं इंसान को अक्सर बदल देती है।