- Advertisement -

किशनगंज: बांग्लादेश में रह रहे हमारे रिश्तेदार (हिंदू परिवार) ग्रुप में रह रहे हैं। अपनी सुरक्षा को लेकर वे डरे हुए हैं। बहनों का घर से निकलना मुश्किल हो गया है। वहां मंदिरों में हमले हो रहे हैं। हम सरकार से अपील करते हैं, जैसे हमें भारत आने दिया उन्हें भी आने दिया जाए। ये कहना है बांग्लादेश से भारत लौटे शरणार्थी प्रिय रंजन का। करीब 55 साल पहले किशनगंज जिले में नेपालगढ़ कॉलोनी बसाई गई। पहले यहां नेपाल से आए 2-3 परिवार रहते थे, इस वजह से नाम नेपालगढ़ कॉलोनी पड़ा। बाद में खाली जमीनों पर बांग्लादेश से जान बचाकर आए हिंदू शरणार्थियों को बसाया गया।

शुरुआत 67 परिवारों से हुई थी। अब यहां 200 से ज्यादा परिवार रहते हैं। इलाके में सभी हिंदू ही हैं। हिंदू शरणार्थियों की वजह से इस इलाके को रिफ्यूजी कॉलोनी भी कहते हैं।
शहर के बीचों बीच बसी इस कॉलोनी की सड़कें ठीक-ठाक हैं। एक स्कूल भी है, जिसमें कॉलोनी के बच्चे पढ़ते हैं। कई मंदिर भी हैं।

प्रिय रंजन ने बताया कि बांग्लादेश में उनके चाचा, दो बेटे, बेटी सभी डरे हुए हैं। बांग्लादेश में खतियान और कमलिया में सभी रिलेटिव रहते हैं। उनसे बात होती रहती है। उन्होंने बताया है कि यहां रहना काफी मुश्किल हो जाएगा। कई स्थान पर आग भी लगा दी गई है। कई बार परिवार के लोग आसपास की झाड़ियों में छिप जाते हैं। अगर प्रदर्शनकारी आ जाते हैं तो भागने के लिए तैयार रहते हैं। वहां पर छात्र आंदोलन हो रहा, लेकिन उनके बीच असामाजिक तत्व हैं। खासकर हिंदुओं को टारगेट किया जा रहा, मंदिरों को जलाया जा रहा। हमारी बहनों का कॉलेज जाना दुश्वार हो गया है। घर से नहीं निकल पा रहे। सभी इतने डरे हैं कि ग्रुप बनाकर बाहर निकल रहे हैं।

नेपालगढ़ में रहने वाले एक और शख्स शक्ति दत्त रिटायर्ड टीचर हैं। उनकी उम्र 70 साल है। उनके ममेरे ममेरे भाई बांग्लादेश में रहते हैं। बहुत दिनों से उनसे कोई कॉन्टैक्ट नहीं हो रहा है। वहां फिर से दंगा भड़का है, जिससे मैं दुखी हूं।

कमोबेश यही बातें हीरा लाल ने भी कहीं। उनकी किताबों की दुकान है। उन्होंने बताया, ‘वहां हमारे रिश्तेदारों पर अत्याचार हो रहा है। सरकार को उनकी मदद करनी चाहिए। उनको चुन-चुनकर मारा जा रहा है। बांग्लादेश हमारा पड़ोसी देश है। हम लोगों ने ही प्रयास कर उनको आजाद कराया है। उनके सुख-शांति से रहने की व्यवस्था की गई है। आज हम लोगों की कौम पर ही अत्याचार हो रहा है।

हीरा लाल आगे कहते हैं, बांग्लादेश में हर बार कोई भी सरकार आती है, हिंदुओं पर ही अत्याचार होता है। हिंदुओं को पलायन करना पड़ता है। हम लोग भारत सरकार से उनकी सुरक्षा की मांग कर ही रहे हैं। बांग्लादेश सरकार से भी रिक्वेस्ट करते हैं कि हिंदुओं पर वहां अत्याचार न हो। 82 साल की शोलोबाला भट्टाचार्य अब ज्यादा बोल नहीं पाती हैं। टूटी-फूटी बंगाली में बात करती हैं। बताती हैं कि उनका जन्म भी तब के पूर्वी पाकिस्तान (आज बांग्लादेश) में हुआ था। कई रिश्तेदार आज भी बांग्लादेश में रहते हैं।

शोलोबाला कहती हैं, ‘हम लोग तब 12-13 साल के रहे होंगे, तब मेरे पिता पूरे परिवार के साथ अचानक भागते हुए भारत आए थे। कई साल तक हम लोग अलग-अलग कैंप में रहे। फिर इंदिरा गांधी की सरकार ने हम लोगों को यहां किशनगंज में जमीन दी। अब हम लोग यहां अपना घर बनाकर रहते हैं।’

बांग्लादेश में अजान होती है, तो उसकी आवाज हमारे घर तक आती है। हमारे यहां के लोगों की शादियां बांग्लादेश में हुई हैं। पहले तो हम चोरी-छुपे इधर से उधर आना-जाना भी करते थे, लेकिन बीते 20 दिनों से हालात बदल चुके हैं। मौजूदा वक्त में कोई बांग्लादेश जाने का सोच भी नहीं सकता’ ये बात कहते हुए साहिब की आंखों में आंसू और डर दोनों नजर आते हैं। वे पश्चिम बंगाल के उत्तर-दिनाजपुर जिले में आने वाली कुकरौधा बॉर्डर के नजदीक रहते हैं। बांग्लादेश में चल रही हिंसा का सबसे ज्यादा असर बॉर्डर के नजदीक रहने वाले इन्हीं लोगों की जिंदगी पर पड़ रहा है। क्योंकि इनका बांग्लादेश से रोटी-बेटी का नाता है।

- Advertisement -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here