भारतीय संविधान के निर्माता पर नई बहस: बी.एन. राव बनाम डॉ. आंबेडकर – सच्चाई जानिए पूरी कहानी!

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संविधान निर्माण की ऐतिहासिक बहस – दो महान मस्तिष्क, एक साझा उद्देश्य
Highlights
  • • संविधान निर्माण पर नई बहस: आंबेडकर बनाम बी.एन. राव • बी.एन. राव ने 1948 में तैयार किया था संविधान का प्रारंभिक मसौदा • संविधान निर्माण में 10 से अधिक प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका • डॉ. आंबेडकर ने दलितों और वंचितों के अधिकारों की रक्षा की • संविधान निर्माण एक सामूहिक ऐतिहासिक प्रक्रिया थी • स्वयं आंबेडकर ने राव के योगदान को सराहा था

भारत में एक नई ऐतिहासिक बहस छिड़ गई है — “भारतीय संविधान के निर्माता कौन?” क्या वास्तव में डॉ. भीमराव आंबेडकर ही इसके प्रमुख निर्माता हैं या फिर सर बेनेगल नरसिंह राव (बी.एन. राव) ने इसकी बुनियाद रखी थी?
इस सवाल ने देशभर में एक नई बौद्धिक चर्चा को जन्म दिया है। हालाँकि सच्चाई यह है कि संविधान निर्माण किसी एक व्यक्ति का काम नहीं था, बल्कि यह एक सामूहिक प्रयास था जिसमें कई मनीषियों का योगदान शामिल था।

डॉ. भीमराव आंबेडकर और बी.एन. राव — दो महान नाम, एक साझा लक्ष्य

डॉ. आंबेडकर संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे, जबकि बी.एन. राव उस समिति के मुख्य सलाहकार (Constitutional Advisor) थे।
सन 1948 में बी.एन. राव ने संविधान का एक प्रारंभिक मसौदा तैयार किया था। उनके साथ-साथ के.एम. मुंशी, अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर, और एन. गोपालस्वामी आयंगर जैसे विद्वान भी इस ऐतिहासिक यात्रा का हिस्सा थे।

वहीं, प्रेम बिहारी रायजादा ने अंग्रेजी में और वसंत कृष्ण वैद्य ने हिंदी में संविधान की हस्तलिखित प्रति तैयार की थी।
उस हस्तलिखित प्रति को नंदलाल बोस के कलात्मक चित्रों से सजाया गया था, जो आज संसद के पुस्तकालय में सुरक्षित है।

क्यों डॉ. आंबेडकर को मिला “संविधान निर्माता” का श्रेय

भारतीय संविधान के निर्माता पर नई बहस: बी.एन. राव बनाम डॉ. आंबेडकर – सच्चाई जानिए पूरी कहानी! 1

जैसे क्रिकेट टीम की जीत का श्रेय कप्तान को जाता है, वैसे ही संविधान निर्माण का श्रेय डॉ. आंबेडकर को दिया गया।
उन्होंने संविधान को दलितों, पिछड़ों और वंचित तबकों के अधिकारों के प्रति जिम्मेदार बनाया।
उनके नेतृत्व में संविधान न केवल सामाजिक न्याय का प्रतीक बना बल्कि आधुनिक लोकतंत्र की नींव भी मजबूत हुई।

लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि बाकी योगदानों को नकार दिया जाए।
बी.एन. राव ने 1935 के इंडिया एक्ट की ड्राफ्टिंग में भूमिका निभाई थी और उन्होंने कई देशों की यात्रा कर उनके संविधान का अध्ययन किया।
उनकी विद्वता के कारण ही संविधान के प्रारूप को एक वैज्ञानिक दिशा मिली।

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नेहरू और आंबेडकर की वैचारिक साझेदारी

संविधान के वैचारिक स्वरूप में जवाहरलाल नेहरू और भीमराव आंबेडकर की अहम भूमिका रही।
नेहरू लोकतंत्र को आधुनिक और विवेकपूर्ण ढांचे में रखना चाहते थे, वहीं आंबेडकर ने इसे सामाजिक समानता का आधार बनाया।
दोनों के विचारों ने भारतीय लोकतंत्र को एक स्थायी रूप दिया।

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एक व्यक्ति नहीं, एक युग का निर्माण

आज जो लोग बी.एन. राव बनाम आंबेडकर की बहस को उछाल रहे हैं, वे न तो संविधान की भावना समझते हैं और न ही इतिहास की गहराई।
संविधान किसी एक व्यक्ति की देन नहीं, बल्कि एक युग के बौद्धिक, नैतिक और राजनीतिक संघर्षों का परिणाम था।
स्वयं आंबेडकर ने भी बी.एन. राव के योगदान को स्वीकार किया था।

संविधान निर्माण की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि भारत का लोकतंत्र किसी एक व्यक्ति की नहीं — पूरे भारत की सामूहिक चेतना की देन है।

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