नेपाल में भारी बारिश से कोसी नदी उफान पर — बिहार में बाढ़ ने मचाई तबाही
बिहार बाढ़ 2025 एक बार फिर कोसी नदी के उफान के कारण भीषण रूप ले चुकी है।
नेपाल के तराई क्षेत्र में पिछले चार दिनों से लगातार भारी बारिश हो रही है, जिससे कोसी बराज से जल निकासी की मात्रा 5 लाख 10 हजार क्यूसेक तक पहुंच गई।
नतीजतन, सहरसा जिले के नवहट्टा प्रखंड की सात पंचायतें जलमग्न हो गई हैं।
स्थानीय लोगों के मुताबिक, प्रशासन की ओर से सहायता का दावा तो हो रहा है, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई व्यवस्था नजर नहीं आ रही।
गांवों में त्राहिमाम की स्थिति बनी हुई है।

तटबंध के बीच बसे गांवों की हालत बदतर — घरों में 4 फीट तक पानी
“हर घर में पानी, हर चेहरा बेबस” – केदली गांव की तस्वीर
तटबंध के बीच बसे केदली गांव में हालात सबसे ज्यादा खराब हैं।
गांव के हर घर में 3 से 4 फीट तक पानी भर गया है।
सभी रास्ते और गलियां डूब चुकी हैं, जिससे गांव का संपर्क पूरी तरह कट गया है।
घर में रखा अनाज, कपड़े और जरूरी सामान सब पानी में बह गया है।
स्थानीय निवासी बताते हैं कि नाव, राहत शिविर या सामुदायिक रसोई जैसी कोई व्यवस्था नहीं दिख रही है।
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गांव की चम्पा देवी कहती हैं —
“कोसी में पानी बढ़ने से सब कुछ बर्बाद हो गया। तीन दिन से जैसे-तैसे जी रहे हैं। सरकार की कोई मदद नहीं मिली।”
इसी गांव के राजकुमार का कहना है कि वे बच्चों के साथ तटबंध पर शरण लिए हुए हैं, लेकिन वहां भी भोजन और आश्रय की कमी है।

प्रशासन के दावे और जमीनी सच्चाई में गहरा फर्क
नाव और राहत शिविर का दावा, लेकिन मदद गायब
प्रशासन का दावा है कि लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने के लिए पर्याप्त नावें उपलब्ध हैं और राहत शिविरों में व्यवस्था की गई है,
लेकिन सच्चाई इससे बिल्कुल अलग दिखती है।
मो. उमर फारूक ने बताया —
“न तो बाहर निकलने के लिए नाव की व्यवस्था है और न ही खाने के लिए कोई कम्युनिटी किचन। प्रशासन को तुरंत नाव और मेडिकल सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए।”
गांव के राजन कुमार ने बताया कि डुमरा से गोरपार जाने वाली सड़क पूरी तरह जलमग्न है और मवेशी घरों में फंसे हुए हैं।
उन्होंने कहा —
“बच्चों को तटबंध पर पहुंचाया है, लेकिन झोपड़ी बनाने के लिए न बांस मिला न प्लास्टिक। मदद की सख्त जरूरत है।”

कोसी नदी का कहर — बिहार के लिए फिर चेतावनी
कोसी नदी, जिसे “बिहार का शोक” कहा जाता है, एक बार फिर अपना विनाशकारी रूप दिखा रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार, अगर बारिश का दौर इसी तरह जारी रहा तो सहरसा, सुपौल और मधेपुरा के और भी इलाकों में जलभराव बढ़ सकता है।
इस स्थिति में आपात राहत दल और सेना की मदद जरूरी मानी जा रही है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस बार की बाढ़ ने कोरोना काल जैसी निराशा और भय का माहौल पैदा कर दिया है।
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निष्कर्ष — राहत से पहले राहत की उम्मीद
बिहार बाढ़ 2025 ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि आपदा आने पर सबसे ज्यादा परीक्षा आम जनता की होती है।
जहां प्रशासन के दावे कागजों पर मजबूत दिखते हैं, वहीं गांवों में लोगों की चीखें और बेबसी असली तस्वीर बयां करती हैं।
कोसी नदी का यह कहर सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि प्रशासनिक तैयारियों की पोल खोलता आईना भी है।
अब देखने वाली बात यह है कि सरकार कब तक सुनने से ज्यादा करने पर ध्यान देती है।
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