Bihar Election 2025: 121 सीटों पर रक्तरंजित सियासत — बाहुबली बनाम लोकतंत्र की निर्णायक लड़ाई

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“बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मोकामा से शुरू हुआ बाहुबली बनाम लोकतंत्र का संघर्ष अब पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन गया है।”
Highlights
  • • बिहार चुनाव में फिर उभरी बाहुबली राजनीति की छाया • मोकामा हत्या कांड से गरमाया चुनावी माहौल • सभी दलों ने 40% से अधिक दागी प्रत्याशी उतारे • योगी आदित्यनाथ की 50 रैलियों से NDA को उम्मीद • पहले चरण में 121 सीटों पर 6 नवंबर को मतदान • 14 नवंबर को आएंगे नतीजे, तय होगा लोकतंत्र बनाम बाहुबल का भविष्य

बदलते चेहरों के बावजूद नहीं बदला बिहार का सियासी रक्त चरित्र

सरकारें बदलीं, चेहरे बदले, लेकिन बिहार का सियासी रक्त चरित्र नहीं बदला। सियासत के स्वार्थ और सत्ता की भूख ने बाहुबली संस्कृति को पोषित किया।
हर चुनाव के साथ यह संस्कृति किसी न किसी रूप में फिर से सिर उठाती रही है।
आज जब NDA ‘15 साल के जंगलराज’ की बात कर मतदाता को साधने में जुटा है, वहीं नीतीश कुमार के “मंगलराज” पर भी अक्टूबर के महीने में चुनावी हिंसा के छींटे पड़े।
खून-खराबे की घटनाओं के बाद इलाकों में जातीय गोलबंदी की चर्चा तेज है।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार राजनीति और अपराध के रिश्ते पर कहा था —

“पहले नेता चुनाव जीतने के लिए बाहुबलियों का सहारा लेते थे, फिर बाहुबलियों ने सोचा कि जब हमारी मदद से नेता जीतते हैं, तो हम ही क्यों न चुनाव लड़ें।”

यही वह मोड़ था जहां से राजनीति और अपराध का गठजोड़ शुरू हुआ।
हिन्दी पट्टी के दो बड़े राज्य — बिहार और उत्तर प्रदेश, इस संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित रहे हैं।

1957 से शुरू हुआ बूथ कब्जाने का सिलसिला, 90 के दशक तक नेताओं में बदले दबंग

Bihar Election 2025: 121 सीटों पर रक्तरंजित सियासत — बाहुबली बनाम लोकतंत्र की निर्णायक लड़ाई 1

बिहार में राजनीति के अपराधीकरण की शुरुआत 1957 में हुई, जब बैलट पेपर चुनावों में बूथ कब्जाने की प्रवृत्ति शुरू हुई।
दबंगों ने प्रत्याशियों को जिताने-हराने का खेल शुरू किया।
90 के दशक तक आते-आते दबंग खुद ही चुनावी मैदान में उतर गए।
राजनीतिक दलों ने उन्हें टिकट देकर वैधता का वस्त्र पहना दिया।

इन बाहुबलियों ने गरीबों की मदद और अमीरों से लूट की ‘रॉबिन हुड शैली’ अपनाकर जनता के बीच अपनी जगह बनाई।
समाज के पिछड़े और शोषित वर्ग ने डर के साथ-साथ इन्हें “रक्षक” के रूप में भी स्वीकार किया।
लोग अपनी समस्याएं लेकर इनके ‘दरबारों’ में पहुंचते और तुरंत समाधान पाते थे।

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जातीय गोलबंदी और सियासी गठजोड़ ने बढ़ाया रक्तरंजित असर

जब राजनीति जाति और धर्म केन्द्रित हुई, तब अपराधी गठजोड़ ने नया रूप ले लिया।
सियासी प्रतिद्वंद्वियों और जातीय टकरावों ने निर्दोषों के खून से बिहार की धरती को लाल किया।
लालू सरकार के समय मंत्री ब्रजबिहारी प्रसाद की हत्या ने पूरे राज्य को झकझोर दिया।
यह घटना बिहार की राजनीतिक हिंसा की सबसे भयावह मिसाल बनी।

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने जहां अपराधी-माफिया नेटवर्क पर बुलडोजर चलाकर नियंत्रण पाया,
वहीं बिहार में सियासी रक्त चरित्र की दबी चिंगारी अब फिर ज्वाला बनती दिख रही है।

मोकामा हत्याकांड से गरमाया माहौल — दलों के दागी उम्मीदवारों का दबदबा

मोकामा में जन सुराज प्रत्याशी के समर्थक दुलारचंद यादव की हत्या ने बिहार चुनाव के माहौल को हिला दिया।
बाहुबली नेताओं के बीच फिर से संघर्ष की आशंका जताई जा रही है।
मोकामा का आम नागरिक खामोश है, लेकिन समर्थकों में तनाव और नाराजगी दोनों स्पष्ट है।
इसी बीच सीवान में एक एएसआई की गला रेतकर हत्या ने प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए।

तेजस्वी यादव ने सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा —

“कौन है जो अपराधियों को संरक्षण दे रहा है?
चुनाव आचार संहिता के बावजूद हथियार लेकर लोग घूम रहे हैं — आखिर किनके?”

आंकड़े बताते हैं — सभी दलों में दागियों की फौज

एडीआर (ADR) की रिपोर्ट के मुताबिक पहले चरण की 121 सीटों पर लगभग हर पार्टी ने दागी प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है:
• आरजेडी – 76%
• कांग्रेस – 65%
• जेडीयू – 39%
• बीजेपी – 65%
• एलजेपी – 54%
• जन सुराज पार्टी – 44%
• सीपीआई (माले) – 93%

इन आंकड़ों से साफ है कि “बाघ के आगे बकरी नहीं उतारी जा सकती” की सोच अब हर दल में गहराई तक बैठ गई है।
जब बाहुबली आमने-सामने होंगे, तो नतीजों का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं।

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बुलडोजर बाबा की मांग तेज — योगी आदित्यनाथ के नाम पर चुनावी रणनीति

बिहार चुनाव के पहले चरण से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, और योगी आदित्यनाथ की रैलियों की जोरदार तैयारी है।
“बुलडोजर बाबा” योगी आदित्यनाथ बिहार में माफिया राज खत्म करने के प्रतीक बन चुके हैं।

वे जब मंच से कहते हैं कि “मैंने यूपी में माफिया मिटाया है”, तो जनता इसे अनुभव के तौर पर मानती है।
अक्टूबर में 50 रैलियों का कार्यक्रम तय है, जिनका मकसद न सिर्फ अपराध पर चोट करना बल्कि हिन्दू मतों का एकीकरण भी है।
योगी का मंत्र “बटेंगे तो कटेंगे” पहले कई राज्यों में असरदार साबित हुआ —
महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में उनकी रैलियों से 65% से 95% तक की स्ट्राइक रेट देखने को मिली।

अब देखना यह है कि बिहार की जनता बाहुबलियों के सिर पर विजयश्री का ताज सजाती है या बुलडोजर नीति पर मुहर लगाती है।

पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को होना है और नतीजे 14 नवंबर को सामने आएंगे।
बिहार का यह चुनाव तय करेगा कि लोकतंत्र की जीत होती है या बाहुबल का बोलबाला बरकरार रहता है।

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