बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब अंतिम दौर की ओर बढ़ रहा है, और जैसे-जैसे चुनावी पारा चढ़ रहा है, वैसे-वैसे राजनीतिक तापमान भी बढ़ता जा रहा है। नेताओं के भाषणों में जोश है, वादों में मिठास है, लेकिन जनता के चेहरों पर उम्मीद और संशय दोनों साफ दिखाई दे रहे हैं। किसी अज्ञात शायर की यह पंक्तियाँ — “ये क्या कि सूरज पे घर बनाना और उस पे छांव तलाश करना” — आज की बिहार की राजनीति पर पूरी तरह सटीक बैठती हैं।
कांग्रेस और महागठबंधन की नई रणनीति — ‘चेहरे की राजनीति’ में तेजस्वी और सहनी की जोड़ी
महागठबंधन ने लंबी चर्चा और गहमागहमी के बाद आखिरकार तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री उम्मीदवार और मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम फेस घोषित कर दिया है। इस घोषणा के साथ ही बिहार की राजनीति में हलचल मच गई है। ओवैसी की पार्टी ने ‘मुस्लिम डिप्टी सीएम’ का मुद्दा उठाकर नई बहस को जन्म दे दिया है।
एनडीए नेताओं ने इस पर तीखा कटाक्ष करते हुए कहा — “बिहार में मुख्यमंत्री पद की वैकेंसी ही नहीं है।” वहीं मुकेश सहनी ने पलटवार किया, “बीजेपी को जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं।
राहुल गांधी और कांग्रेस की रणनीति पर सवाल — देरी से बने फैसले और घटती पकड़

कांग्रेस ने अपने स्तर पर तेजस्वी के समर्थन का ऐलान तो किया, लेकिन समय की देरी ने उनके उत्साह पर ग्रहण लगा दिया।
अशोक गहलोत और लालू यादव की बैठक के बाद सीएम फेस तय हुआ, पर राहुल गांधी की सक्रियता फिर भी नदारद रही।
राजनीतिक पंडित मानते हैं कि राहुल को यह चुनाव पार्टी में नई जान फूंकने का मौका दे सकता था, लेकिन उन्होंने यह मौका गंवा दिया।
वहीं, कांग्रेस के कई स्थानीय नेताओं ने अपनी नाराजगी जाहिर की है कि “दिल तो मिले लेकिन दिलों की दूरी अब भी बनी हुई है।”
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एनडीए का मास्टरस्ट्रोक और जातीय समीकरण की सियासत
एनडीए ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव अभियान को पूरी मजबूती से आगे बढ़ाया है।
हालांकि विपक्ष बार-बार सवाल उठा रहा है कि क्या बीजेपी चुनाव के बाद नीतीश को मुख्यमंत्री बनाएगी।
गृह मंत्री अमित शाह के बयान — “बिहार में मुख्यमंत्री की सीट खाली नहीं है” — ने इस बहस को एक झटके में खत्म कर दिया।
एनडीए ने महिलाओं को आकर्षित करने के लिए 75 लाख महिलाओं के लिए 10,000 रुपये ट्रांसफर योजना की घोषणा की है, जिसे ‘एनडीए का मास्टरस्ट्रोक’ कहा जा रहा है।
वहीं, महागठबंधन का दावा है कि सत्ता में आने पर वे हर घर से एक व्यक्ति को नौकरी देंगे।
जाति और धर्म की सियासत पर फोकस — ‘लड्डू और कद्दू’ का पोस्टर बना चर्चा का विषय
बिहार की राजनीति में जाति और धर्म हमेशा निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
एनडीए ने पोस्टर जारी कर ‘लड्डू और कद्दू’ के प्रतीक से तंज कसा कि महागठबंधन ने मल्लाह समाज को डिप्टी सीएम का ‘लड्डू’ दिया, जबकि 18% मुस्लिम आबादी को ‘कद्दू’ यानी खाली हाथ छोड़ दिया।
बिहार में लगभग 50 सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, और यही वजह है कि यह बहस और भी तीखी हो गई है।
महागठबंधन का डैमेज कंट्रोल और ‘चार डिप्टी सीएम’ का वादा
एनडीए के तंज के बाद महागठबंधन ने जवाबी रणनीति अपनाई। उन्होंने कहा कि सत्ता मिलने पर चार डिप्टी सीएम बनाए जा सकते हैं — हर वर्ग और धर्म से एक-एक।
तेजस्वी यादव ने कहा कि वे “सभी वर्गों का सम्मान और समान प्रतिनिधित्व” सुनिश्चित करेंगे।
इस बयान से चुनाव में नया मोड़ आ गया है क्योंकि अति पिछड़े वर्ग (EBC) के 36% वोटों पर अब सबकी नजरें टिकी हैं।
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नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच मुद्दों की जंग

नीतीश कुमार लगातार आरजेडी के ‘जंगलराज’ की याद दिला रहे हैं, जबकि तेजस्वी बेरोजगारी, पलायन और अपराध के मुद्दे पर एनडीए सरकार को घेर रहे हैं।
तेजस्वी का नारा — “हर घर से एक नौकरी” — युवाओं को आकर्षित कर रहा है।
वहीं, नीतीश अपने अनुभव और विकास योजनाओं के दम पर जनता का भरोसा जीतने की कोशिश में हैं।
दोनों नेताओं की रणनीति साफ है — एक ओर भावनात्मक अपील, दूसरी ओर विकास और सुरक्षा का वादा।
14 नवंबर होगा बिहार का ‘निर्णायक दिन’

14 नवंबर को जब चुनाव परिणाम आएंगे, तभी तय होगा कि जनता किस पर भरोसा करती है —
वादों पर, चेहरों पर या अनुभव पर।
जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने भले ही राघोपुर से नामांकन वापस ले लिया हो, लेकिन उनकी मौजूदगी अब भी कई समीकरणों को प्रभावित कर रही है।
बिहार की सियासत इस बार सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि भरोसे की परीक्षा भी है।
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