Bihar Election 2025: मोकामा में जनसुराज कार्यकर्ता की हत्या, टेकारी में प्रत्याशी पर हमला — लोकतंत्र पर बड़ा सवाल

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Highlights
  • • मोकामा में जनसुराज कार्यकर्ता दुलारचंद यादव की हत्या • टेकारी में हम प्रत्याशी अनिल कुमार पर गोलीबारी और पथराव • महुआ में तेज प्रताप यादव को ग्रामीणों ने खदेड़ा • 3 दिन में 3 हमलों से चुनावी माहौल में दहशत • लोकतंत्र पर उठे गंभीर सवाल, प्रशासन की भूमिका पर बहस

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे अंतिम चरण की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे राज्य का चुनावी माहौल तनावपूर्ण और हिंसक होता जा रहा है। बीते तीन दिनों में तीन बड़े हमले हुए हैं, जिन्होंने पूरे राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मोकामा, टेकारी और महुआ की घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि इस बार का चुनाव सिर्फ वोटों की लड़ाई नहीं, बल्कि शक्ति-प्रदर्शन और प्रतिशोध की जंग बन चुका है।

मोकामा में जनसुराज कार्यकर्ता की हत्या — गोली और गाड़ी से कुचलकर मौत

पटना से सटे मोकामा विधानसभा क्षेत्र में गुरुवार को जनसुराज पार्टी के कार्यकर्ता दुलारचंद यादव की निर्मम हत्या कर दी गई। जानकारी के मुताबिक, पहले उनके पैर में गोली मारी गई, और जब वे जमीन पर गिर गए तो उन्हें गाड़ी से कुचल दिया गया। घटनास्थल पर ही उनकी मौत हो गई।

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, यह विवाद तब शुरू हुआ जब जनसुराज पार्टी के काफिले की गाड़ीजदयू प्रत्याशी अनंत सिंह के काफिले से टकरा गई। मामूली टक्कर से शुरू हुआ झगड़ा कुछ ही मिनटों में घातक हिंसा में बदल गया। कहा जा रहा है कि इस झगड़े की परिणति में दुलारचंद यादव को अपनी जान गंवानी पड़ी।

यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की मौत नहीं, बल्कि चुनावी हिंसा की भयावह तस्वीर पेश करती है — जहां लोकतंत्र की गरिमा को गोलियों और पहियों के नीचे कुचला जा रहा है।

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टेकारी में हम पार्टी के प्रत्याशी पर हमला — बचकर भागे, टूटा हाथ

इस घटना से एक दिन पहले, गया जिले के टेकारी विधानसभा क्षेत्र में भी हिंसक हमला हुआ। यहां हम (Hindustani Awam Morcha) पार्टी के प्रत्याशी और मौजूदा विधायक अनिल कुमार पर चुनाव प्रचार के दौरान पथराव और गोलीबारी की गई।

अनिल कुमार ने बताया कि वे गांव में प्रचार के लिए गए थे, तभी अचानक हमला हो गया। उन्हें भागकर अपनी जान बचानी पड़ी, लेकिन इस दौरान उनका हाथ टूट गया। कई वाहनों के शीशे तोड़ दिए गए, और सुरक्षा बलों को स्थिति नियंत्रण में लाने में काफी समय लगा।

अनिल कुमार ने आरोप लगाया कि यह हमला हत्या की साजिश थी। घटना के बाद वे अस्पताल में भर्ती हैं और उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है।

महुआ में तेज प्रताप यादव को खदेड़ा गया — सत्ताधारी दल में भी असंतोष

टेकारी और मोकामा की घटनाओं से पहले, महुआ विधानसभा क्षेत्र में भी चौंकाने वाला दृश्य देखने को मिला। यहां से चुनाव लड़ रहे तेज प्रताप यादव (पूर्व मंत्री और लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे) को स्थानीय राजद समर्थकों ने ही एक गांव से खदेड़ दिया। तेज प्रताप को भागकर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करनी पड़ी

यह घटना न केवल आंतरिक असंतोष को उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि राजनीतिक वफादारियां किस तेजी से बदल रही हैं। यह इस बात का भी संकेत है कि चुनावी जमीन पर नियंत्रण और अनुशासन दोनों ही कमजोर पड़ चुके हैं।

चुनावी हिंसा — लोकतंत्र की आत्मा पर वार

मोकामा, टेकारी और महुआ की ये तीनों घटनाएँ इस बात का प्रतीक हैं कि चुनावी राजनीति अब संवाद की नहीं, दबाव की भाषा बोल रही है

जहाँ कभी चुनाव बहस, विचार और विकास पर केंद्रित होते थे, वहीं अब वे खून, बदले और भय का प्रतीक बन गए हैं।

इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि बिहार में चुनाव अब केवल वोट का संघर्ष नहीं, बल्कि जीवन और सम्मान की जंग बन चुके हैं। जब उम्मीदवार खुद सुरक्षित नहीं, तो आम मतदाता के लिए भयमुक्त मतदान का वातावरण कैसे संभव होगा?

हिंसा के पीछे जातीय और स्थानीय प्रतिद्वंद्विता

विश्लेषकों के अनुसार, इन हिंसक घटनाओं के पीछे जातीय तनावस्थानीय वर्चस्व की लड़ाई और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का गहरा असर है।

कई इलाकों में विकास कार्यों की कमी और जनता की नाराजगी ने इस बार हिंसक विरोध का रूप ले लिया है।

अक्सर ऐसे माहौल में विपक्षी गुट या स्थानीय दबंग माहौल को भड़काने में भूमिका निभाते हैं। जब हार का डर बढ़ता है, तो कई दल लोकतांत्रिक नियमों के बजाय हिंसात्मक तरीकों से दबाव बनाने लगते हैं।

अपराधी पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशी और कमजोर प्रशासन

बिहार की राजनीति में अपराध और सत्ता का गठजोड़ नया नहीं है।

जब प्रत्याशी या उनके समर्थक आपराधिक पृष्ठभूमि से आते हैं, तो चुनावी माहौल में हिंसा की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।

मोकामा क्षेत्र लंबे समय से बाहुबलियों के प्रभाव के लिए जाना जाता रहा है।

इस बार भी जब चुनाव आयोग की पूरी प्रशासनिक मशीनरी मैदान में है, तब भी कानून-व्यवस्था की कमजोरी साफ दिखाई दे रही है। यह स्थिति न सिर्फ प्रशासन की सामर्थ्य पर सवाल उठाती है, बल्कि लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर भी चोट करती है।

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लोकतंत्र के लिए चेतावनी की घंटी

बिहार में हाल की घटनाएँ केवल राजनीतिक हिंसा नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा पर गहरा प्रहार हैं।

जहाँ मतदाता को निर्भय होकर वोट देने का अधिकार है, वहीं अब गोलियों और गाड़ियों की रफ्तार उस अधिकार को कुचल रही है।

यह स्थिति चुनाव आयोग और राज्य प्रशासन दोनों के लिए गंभीर चुनौती है।

जरूरत है कि हिंसा पर तत्काल रोक लगे और ऐसा वातावरण बने जिसमें बिहार के लोग भयमुक्त और निष्पक्ष मतदान कर सकें।

लोकतंत्र का आधार तभी मजबूत होगा जब मतदान का मैदान रक्तरंजित नहीं, विचारों से भरा होगा।

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