बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, राजनीतिक हलचल और तेज होती जा रही है। चुनाव आयोग कभी भी तारीखों की घोषणा कर सकता है और इसी कड़ी में सियासी दलों ने अपने-अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। इसकी झलक पार्टी के रणनीतिकार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लगातार हो रहे बिहार दौरों से साफ झलक रही है।
अमित शाह 27 सितंबर को एक बार फिर बिहार आ रहे हैं, जहां वे अररिया, सारण और वैशाली जिलों में बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं से मुलाकात करेंगे। इन बैठकों में केवल स्थानीय नेता ही नहीं, बल्कि आसपास के जिलों से भी पदाधिकारी शामिल होंगे। माना जा रहा है कि शाह इस बार संगठन को ज़मीनी स्तर पर और मजबूत बनाने तथा बूथ स्तर तक रणनीति को धार देने पर जोर देंगे।
🔹 पांच जोन की चुनावी तैयारी
बीजेपी ने बिहार चुनाव को लेकर राज्य को पांच जोन में बांटकर रणनीति तैयार की है। प्रत्येक जोन में अलग-अलग जिलों को शामिल किया गया है ताकि हर इलाके की स्थानीय समस्याओं और समीकरणों को ध्यान में रखकर चुनावी तैयारी की जा सके। शाह 18 सितंबर को पहले ही डेहरी ऑन सोन और बेगूसराय में 20 जिलों के नेताओं के साथ बैठक कर चुके हैं।
27 सितंबर को उनका यह दौरा शेष तीन जोन की समीक्षा बैठकों के लिए होगा। यानी, अररिया, सारण और वैशाली में होने वाली चर्चाएं अब तक की रणनीति का सार और आगे की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएंगी।
🔹 दस दिनों में दूसरा दौरा
महज दस दिनों में अमित शाह का यह दूसरा बिहार दौरा है। इससे पहले 3 सितंबर को भी उन्होंने दिल्ली में बिहार भाजपा नेताओं के साथ चुनावी तैयारियों की समीक्षा की थी। लगातार बैठकों और यात्राओं से यह साफ है कि बीजेपी इस बार बिहार चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।
🔹 क्यों अहम है यह दौरा?
बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों, स्थानीय मुद्दों और गठबंधन की गणित पर आधारित होती है। बीजेपी की कोशिश है कि एकजुट होकर कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया जाए और विपक्ष के मुकाबले ठोस रणनीति बनाई जाए। अमित शाह का यह दौरा पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने और चुनावी मोर्चे पर मजबूती दिखाने के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है।
🔹 नतीजा क्या हो सकता है?
विशेषज्ञों का मानना है कि अमित शाह के लगातार बिहार दौरे न सिर्फ संगठन की मजबूती का संकेत हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि बीजेपी ने पहले से ही चुनावी मोर्चा संभाल लिया है। महागठबंधन जहां सीट शेयरिंग और नेतृत्व को लेकर उलझा हुआ दिख रहा है, वहीं बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट करने और ज़मीनी रणनीति पर अमल करने में जुटी है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि अमित शाह की यह चुनावी कवायद बिहार की सियासी तस्वीर को किस हद तक प्रभावित करती है। लेकिन इतना तो तय है कि 2025 का चुनावी दंगल अब पहले से ज्यादा रोमांचक और हाई-प्रोफाइल होने वाला है।