बिहार में 2862 हत्याएं, देश में दूसरा स्थान | NCRB रिपोर्ट 2023 ने कानून-व्यवस्था पर खड़े किए गंभीर सवाल

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Highlights
  • • NCRB रिपोर्ट 2023 में बिहार में कुल 2862 हत्याएं दर्ज हुईं। • हत्या के मामलों में बिहार देश में दूसरे स्थान पर रहा। • महिलाओं के खिलाफ अपराध के 22952 मामले दर्ज, जिनमें 902 रेप और 14371 अपहरण शामिल। • दलित और आदिवासी वर्ग पर अपराध के 7178 केस दर्ज, सामाजिक असमानता उजागर। • निजी दुश्मनी, जमीन विवाद और पारिवारिक कलह हत्या के सबसे बड़े कारण। • दहेज हत्या के 91 मामले, प्रेम प्रसंग और आर्थिक विवादों से सैकड़ों हत्याएं। • राजनीतिक और सांप्रदायिक कारणों से हत्या के मामले बेहद कम (केवल 2 राजनीतिक हत्या)। • 2001 से 2023 तक बिहार में हत्या के मामलों में उतार-चढ़ाव जारी रहा। • 2023 में हत्या के मामलों में हल्की गिरावट, लेकिन अपराध दर अभी भी चिंताजनक। • अपराध दर 2023 में 277.5 प्रति लाख आबादी, जो पिछले साल से थोड़ी ज्यादा। • कांग्रेस और विपक्ष ने सरकार पर लगाया कानून-व्यवस्था फेल होने का आरोप। • वरिष्ठ पत्रकारों का कहना – बिहार में अपराध का सबसे बड़ा कारण जमीन विवाद। • NCRB रिपोर्ट चुनाव से पहले बिहार की राजनीति में बनेगी बड़ा मुद्दा। • जनता के बीच सरकार पर अपराध रोकने की कड़ी चुनौती।

बिहार की राजनीति और समाज में अपराध हमेशा एक मुख्य विमर्श का विषय रहा है। अब नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) ने अपनी 2023 की रिपोर्ट जारी की है, जिसने एक बार फिर राज्य की कानून-व्यवस्था और अपराध के ग्राफ पर सवाल खड़े कर दिए हैं। रिपोर्ट में भले ही हत्या के मामलों में हल्की गिरावट दिखाई गई हो, लेकिन अपराध का दायरा और महिलाओं व कमजोर वर्गों के खिलाफ हिंसा अब भी बिहार के माथे पर गहरी चिंता की लकीरें छोड़ रही है।

बिहार हत्याओं में दूसरे नंबर पर

रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में बिहार में 2862 हत्याएं दर्ज की गईं। यह आंकड़ा पूरे देश में बिहार को हत्या के मामलों में दूसरे स्थान पर ला खड़ा करता है। 2022 की तुलना में मामूली कमी जरूर दर्ज हुई है (2930 से घटकर 2862), लेकिन यह गिरावट इतनी बड़ी नहीं कि इसे गुड गवर्नेंस का मॉडल कहा जा सके।

हत्याओं के पीछे प्रमुख कारण

व्यक्तिगत दुश्मनी: 703 हत्याएं

जमीन-संपत्ति विवाद: 500 हत्याएं

पारिवारिक झगड़े: 345 हत्याएं

प्रेम संबंधी विवाद: 259 हत्याएं

आर्थिक लाभ: 238 हत्याएं

पैसों के विवाद: 160 हत्याएं

दहेज विवाद: 91 हत्याएं

राहत की बात यह है कि राजनीतिक और सांप्रदायिक हत्याओं की संख्या बेहद कम रही – केवल 2 राजनीतिक कारणों से और 1 सांप्रदायिक विवाद से हत्या हुई।

महिलाओं और कमजोर वर्गों पर बढ़ते अपराध

2023 में बिहार में महिलाओं के खिलाफ 22,952 अपराध दर्ज हुए। इनमें

• 902 बलात्कार,

• 14,371 अपहरण के मामले शामिल हैं।

इसके अलावा दलितों और आदिवासियों के खिलाफ 7178 अपराध दर्ज हुए, जो सामाजिक असमानता और भेदभाव की गंभीर तस्वीर पेश करते हैं।

अपराध का उतार-चढ़ाव (2001–2023)

• 2001: 3643 हत्याएं

• 2007: 3034 तक गिरावट

• 2012: फिर उछाल, 3566 मामले

• 2019: लगातार 3000+

• 2020: 3150

• 2021: 2799

• 2022: 2930

• 2023: 2862

यानी पिछले कुछ वर्षों में अपराध के ग्राफ में धीमी गिरावट जरूर दिखी है, लेकिन अपराध अब भी बिहार की बड़ी पहचान बना हुआ है।

अपराध दर भी चिंता का विषय

• 2013: 183.7

• 2016: 281.9 (सबसे ज्यादा)

• 2019: 224

• 2022: 277.1

• 2023: 277.5

यह स्पष्ट करता है कि अपराध दर में गिरावट की बजाय अनियमित बढ़ोतरी हो रही है।

जमीन विवाद – सबसे बड़ी चुनौती

वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी मानते हैं कि बिहार में अधिकांश हत्याओं के पीछे जमीन और संपत्ति विवाद सबसे बड़ा कारण है। शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि ने इन विवादों को और बढ़ा दिया है। कई बार छोटे-छोटे बंटवारे और स्वामित्व के झगड़े खूनी संघर्ष का रूप ले लेते हैं।

राजनीतिक बयानबाज़ी तेज

सत्तारूढ़ एनडीए: मामूली गिरावट को अपनी उपलब्धि बताएगा।

विपक्ष (कांग्रेस): महिलाओं और दलितों पर बढ़ते अपराध को बड़ा मुद्दा बना रहा है।

• कांग्रेस प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने कहा – बीजेपीजेडीयू सरकार ने बिहार को अपराध का अड्डा बना दिया है। जनता असुरक्षितहै और अपराधी बेखौफ।

न्याय व्यवस्था पर सवाल

रिपोर्ट यह भी दिखाती है कि कई छोटे अपराध दर्ज ही नहीं होते और बिहार में अपराधियों को सजा दिलाने की दर बेहद कम है। धीमी न्यायिक प्रक्रिया के चलते लोग खुद ही “न्याय” करने की कोशिश करते हैं, जो और बड़ा अपराध बन जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि समय पर न्याय और त्वरित सजा ही अपराध पर अंकुश लगा सकती है।

NCRB रिपोर्ट 2023 ने साफ कर दिया है कि बिहार में अपराध के ग्राफ में मामूली गिरावट के बावजूद अपराध अब भी गहरी समस्या बना हुआ है।

जहाँ जमीन विवाद, व्यक्तिगत दुश्मनी और महिलाओं पर अपराध सबसे बड़ी चुनौती बने हैं, वहीं चुनावी मौसम में यह रिपोर्ट सियासी दलों के लिए हथियार साबित होगी। असली सवाल यही है कि क्या यह रिपोर्ट केवल राजनीति का हिस्सा बनेगी या फिर सरकार अपराध नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाएगी?

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