बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के प्रांगण में Bihar News लगातार नई गवाहियाँ पेश कर रहा है। उस बीच एक अनोखी तस्वीर वायरल हुई — जिसमें राहुल गांधी जलेबी छानते नजर आ रहे हैं। इस तस्वीर ने विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Congress) के अंदरूनी हालात और साथ ही उसके गठबंधन प्रति उसकी गंभीरता को लेकर सवाल उठा दिए।
“देश में हैं या विदेश में?” — जलेबी फोटो से बढ़ा सवाल-खाना

वायरल हुई फोटो ने लगभग ऐसा ही सवाल खड़ा कर दिया है — राहुल गांधी देश में हैं या विदेश में? जलेबी छानते उनकी यह छवि, चुनाव के इतने करीब अमूमन नेताओं से जो उम्मीद की जाती है, उस शैली से हटती नजर आई। इसके चलते उन्होंने रणनीति के बजाय नज़रअंदाजी वाला रवैया अपनाया है, ऐसा आरोप विपक्ष के अंदर से ही लग रहा है।
हालांकि, कांग्रेस ने इस फोटो को अचानक छानने-खाने की “मजाकिया” स्थिति बताया हो सकती है, लेकिन राजनीतिक पटल पर यह गंभीर और संवेदनशील (sentiment) मामला बन गया है।
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बिहार में चुनाव है और मुक़ाबला महासमर का स्वरूप ले चुका है
यह कोई मामूली सीट-लड़ाई नहीं बल्कि 243-मंथन की लड़ाई है, जिसमें हर गठबंधन “एट एनी कॉस्ट” सत्ता हासिल करना चाहता है। लिखा गया है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) सत्ता पर क़ाबिज होने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है।
गृह मंत्री अमित शाह ने तीन दिन बिहार में डेरा डाले रखा — यह संकेत है कि केंद्र का दांव-पेंच इस बार बहुत गहरा है। उनका इरादा स्पष्ट-सा है कि राज्य में किसी भी हाल में सत्ता हाथ से न जाए।
महागठबंधन पर आरोप-प्रहार — कांग्रेस क्या खो रही है?
महागठबंधन के अंदर ऐसे मिसमैच और असमंजस्य उभर रहे हैं, जिनका लाभ प्रतिद्वंद्वी उठा सकता है। लेख में बताया गया है कि कांग्रेस ने दलित-पिछड़ों को साधने का वादा किया था, लेकिन टिकट-वितरण में सवर्णों की ही बहुलता रही।
– दलितों की आबादी ≈ 20 %
– सुरक्षित सीटें ≈ 40
लेकिन सवर्ण जातियों के उम्मीदवारों को 21 टिकट दिए गए। यादवों ने 37 % सीटों पर लड़ा जबकि उनका हिस्सा ≈ 14 % था।
“हाथ में संविधान लेकर घूमने से कुछ नहीं होता … धरातल पर भी उतारना पड़ता है।”
यह सारी बातें महागठबंधन के अंदर विश्वसनीयता (credibility) और संगठनात्मक दृढ़ता पर प्रश्न खड़े करती हैं।
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भाजपा को कब्र से उठने वाला अवसर ?
भाजपा ले रही है इस हालत का पूरा फायदा।
लेख में कहा गया है —
“यदि बिहार हाथ से फिसला तो केन्द्र की सत्ता भी फिसल जाएगी।”
यह कथन स्पष्ट संकेत देता है कि भाजपा के लिए बिहार सिर्फ एक राज्य नहीं, बल्कि द्वार है — जिससे बंगाल और पूर्वोत्तर तक प्रभाव फैलेगा।
राहुल गांधी को “मिस्टर इंडिया” की तरह चुनाव में गायब होना बताया गया — जबकि अमित शाह “गज़ब के मेहनती शख्स” हैं।
क्या कांग्रेस ने खुद ही गड़बड़ कर ली जीत की राह ?
लेख में यह तीखा आरोप है कि कांग्रेस ने राहुल गांधी की भूमिका को चुनाव के वक्त सही तरह से निभाया नहीं।
– राहुल ने वोट अधिकार यात्रा निकाली, लेकिन टिकट बाज़ार की बात न संभाली।
– टिकट सूची में दलितों के लिए वादा था, लेकिन सवर्णों को ही दिलाया गया।
– नेतृत्व ने ‘भूमिहार’ तक का भरोसा खोया।
“यह तैयारी नहीं, यह नज़रअंदाजी है।”
कांग्रेस के अंदर यह भावनात्मक (sentiment) अपूरणता और रणनीतिक कमजोरी हिंदुकाल बने दिख रहे हैं।
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