Bihar Politics में इस समय सबसे चर्चित विषय है—मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का वह फैसला, जिसने बिहार की सत्ता का पूरा ढांचा हिला दिया है। बिहार में गृह विभाग को हमेशा सिर्फ एक मंत्रालय नहीं, बल्कि सत्ता का असली ताज माना गया है। यह वही विभाग है जिसे नीतीश कुमार ने दशकों तक अपनी सबसे बड़ी ताक़त के तौर पर संभाले रखा। लेकिन इस बार उन्होंने इस ताज को स्वयं उतारकर भाजपा को सौंप दिया।
यह सिर्फ एक फैसला नहीं—एक राजनीतिक संदेश है, एक सत्ता-समीकरण का संकेत है, और एनडीए के भीतर नई शक्ति-व्यवस्था की उद्घोषणा है।
गृह विभाग: नीतीश की ‘क्राउन ज्वेल’, अब भाजपा के हाथ में
बिहार की राजनीति में यह बात किसी से छिपी नहीं कि नीतीश कुमार ने अपने कार्यकाल में गृह विभाग को हमेशा अपनी पकड़ में रखा।
कानून-व्यवस्था, पुलिस तंत्र, खुफिया नेटवर्क—सब पर सीधा नियंत्रण मुख्यमंत्री के पास रहता था।
इसीलिए इसे नीतीश की “क्राउन ज्वेल” कहा गया।
लेकिन 2025 में पहली बार उन्होंने यह “हीरा” अपने हाथ से निकालकर डिप्टी सीएम और भाजपा नेता सम्राट चौधरी को सौंपा है।
यह बदलाव साफ़ बताता है कि बिहार में सत्ता का असली केंद्र अब दो हिस्सों में बंट रहा है—
• प्रशासनिक कमान नीतीश के पास
• और सुरक्षा, पुलिस, खुफिया और गृह ढांचा सम्राट चौधरी के पास
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एनडीए के भीतर शक्ति-संतुलन बदल रहा है
इस फैसले को सिर्फ विभागों का बंटवारा कहना गलत होगा।
यह असल में एनडीए के अंदर भाजपा के बढ़ते कद का सीधा संकेत है।
पहली बार राजनीतिक हलकों में खुलकर कहा जा रहा है कि—
“जेडीयू की तुलना में भाजपा अब अधिक प्रभावी साझेदार बनकर उभर रही है।”
गृह विभाग भाजपा को दिए जाने का अर्थ है कि बिहार की सत्ता-समीकरण की धुरी अब सिर्फ मुख्यमंत्री आवास से नहीं घूमेगी, बल्कि सम्राट चौधरी के सरकारी आवास से भी चलेगी।
सम्राट चौधरी का बढ़ता कद: सत्ता का नया पावर सेंटर

गृह विभाग का मिलना किसी सामान्य मंत्री को जिम्मेदारी देने जैसा नहीं है।
यह संदेश है कि सम्राट चौधरी अब—
• पुलिस
• सुरक्षा
• खुफिया
• प्रशासनिक तंत्र
सभी के मूल नियंत्रण बिंदु पर होंगे।
यह सीधा संकेत है कि भाजपा अब सिर्फ सहयोगी दल नहीं, बल्कि सत्ता की प्रमुख धुरी बनने जा रही है।
चुनाव प्रचार के दौरान गृह मंत्री अमित शाह के बयान—
“सम्राट को जिताइए, बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी”
की सियासी भविष्यवाणी अब हकीकत में बदल चुकी है।
नीतीश कुमार की नई रणनीति: राजनीतिक पुनर्संरचना की पटकथा
यह फैसला नीतीश कुमार की बदलती राजनीतिक सोच को भी दिखाता है।
दो दशक तक हर अहम विभाग अपने पास रखने वाले नीतीश अब—
• रोज़मर्रा के प्रशासनिक बोझ से खुद को हल्का कर रहे हैं
• भाजपा के साथ शक्ति-साझेदारी को नई दिशा दे रहे हैं
• और गठबंधन राजनीति में एक नया मॉडल पेश कर रहे हैं
यह कदम बताता है कि नीतीश कुमार राजनीतिक भविष्य को ध्यान में रखकर भाजपा को अधिक स्पेस देने के लिए तैयार हैं।
यह स्पेस मजबूरी भी हो सकती है… और रणनीति भी।
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2025: बिहार की राजनीति में सबसे बड़ा परिवर्तन
1967 और 1971 के बाद अब तीसरी बार ऐसा हुआ है कि गृह विभाग मुख्यमंत्री से अलग किसी अन्य नेता को सौंपा गया है।
और इस बार यह बदलाव सिर्फ ऐतिहासिक नहीं—रणनीतिक भी है।
गृह विभाग भाजपा के पास जाने का सीधा अर्थ है कि—
• बिहार की सत्ता में भाजपा पहले से मजबूत भूमिका निभाएगी
• सम्राट चौधरी का कद बढ़ा है
• और राज्य की राजनीति में शक्ति-संतुलन का बड़ा बदलाव दर्ज हुआ है
बिहार की सत्ता अब दो धुरों पर चलेगी
समग्र रूप से देखें तो यह फैसला बिहार की सियासी कहानी में एक टर्निंग पॉइंट है।
नीतीश कुमार ने सत्ता का अपना सबसे कीमती विभाग भाजपा को देकर यह संदेश दे दिया है कि आगामी राजनीतिक यात्रा में दोनों दलों की भूमिकाएँ स्पष्ट रूप से बदलेंगी।
बिहार Politics में यह बदलाव आने वाले दिनों में कई नए समीकरण बनाएगा—
और शायद कई पुराने ढांचे ढहा भी देगा।
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