बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की हलचल अब सीट शेयरिंग की तीव्र टकराव में बदलती जा रही है। जहां NDA और INDIA दोनों गठबंधन चुनावी समीकरण सेट करने में जुटे हैं, वहीं सीट बंटवारे को लेकर पेंच अभी तक खुल नहीं पाया है। विशेष रूप से BJP-JDU गठबंधन में छोटे दलों की नाराज़गी, माँझी-कुशवाहा की मांगें और संघीय दबाव सियासी कुंडली को और जटिल बना रहे हैं।
सीट शेयरिंग की वर्तमान स्थिति
चिराग पासवान ने शुरुआत में 40 सीटों की मांग उठाई थी, लेकिन अब कहा जा रहा है कि वे 35 सीटों तक समझौता करने को तैयार हैं, जबकि NDA उन्हें अभी भी 25 सीटों तक की पेशकश ही कर रहा है। 
उधर, उपेंद्र कुशवाहा की नाराज़गी ने हवा में सवाल खड़े कर दिए हैं — उनकी मांगें बढ़ी हुई हैं और वो गठबंधन टूटी नज़र आ रही कहानियों को हवा देने की स्थिति में हैं। 
इस बीच, मांझी की ओर से भी दबाव है कि उन्हें “सम्मानजनक हिस्सेदारी” दी जाए, नहीं तो वे गठबंधन से दूरी बनाने की चेतावनी दे चुके हैं। 
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NDA अंदरूनी मतभेद & मांझी-कुशवाहा की मांगें
रुझानों से यह साफ दिखता है कि JDU और BJP को सीटें कम करनी पड़ सकती हैं ताकि सहयोगी दलों की मांगें पूरी की जा सकें। 
मुश्किल यह है कि छोटे दल जैसे कुशवाहा और मांझी अब नामीकरणों और अभी घोषित नीतियों को देखकर आशंकित हो गए हैं कि वे “पहले से तय सीटों” को ही स्वीकार करेंगे।
उपेंद्र कुशवाहा के घर में नाराज़गी इतनी बढ़ी कि गठबंधन टूटने तक की बातें सामने आई हैं। 
विनोद तावड़े क्या कह रहे हैं?

बीजेपी के वरिष्ठ नेता विनोद तावड़े और ऋतुराज सिंहा ने कुशवाहा को मना लेने की पूरी कोशिश की है। बंद कमरे की चर्चाओं के बाद विनोद तावड़े का बयान आया कि गठबंधन को बचाने की चाह है और सीटें “समझौते के दायरे” में आने चाहिए।
उन्होंने कहा है कि सीट शेयरिंग पर मतभेद हैं, मगर हल संभव है — यह गठबंधन को तोड़ने की स्थिति नहीं है।
उनका तर्क यह है कि कुशवाहा को असंतुष्टि जताने की जगह गठबंधन की मजबूती समझनी चाहिए, और यह समय रणनीति एवं संयम का है।
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क्या गठबंधन बचेगा? सीट बंटवारे का इतिहास एवं संकट
बीते चुनावों में छोटे दलों को अपेक्षा से कम हिस्सेदारी मिली है, जिससे लगातार नाराज़गी बढ़ी है।
NDA के भीतर पहले से ही LJP (Ram Vilas), HAM, RLM जैसे दलों ने मांगें बढ़ाई हैं।
इन्हीं दबावों के चलते BJP और JDU दोनों के लिए सीटें कम करने का मार्ग खुलता दिख रहा है। अगर कुशवाहा और मांझी अपनी मांगों पर अड़े रहें, तो NDA में दरार आ सकती है।
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