बिहार की नई राजनीतिक करवट से विकास और सुरक्षा की मिलेगी गारंटी

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कमलेश पांडेय (वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक)

बिहार विधानसभा चुनाव 2025, कई मायने में राष्ट्रीय और सूबाई राजनीति को प्रभावित करेगा, क्योंकि 2026 में पश्चिम बंगाल और 2027 में उत्तरप्रदेश में भी विधान सभा चुनाव होने हैं। यही नहीं, पूर्वी भारत की सुरक्षा को भी यह चुनाव सुनिश्चित करेगा। इस चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की रीति-नीति, कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन का अंतर्कलह और मशहूर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की नवस्थापित पार्टी जनसुराज द्वारा उठाए हुए मुद्दे गहरा असर डालेंगे।
वहीं, एआईएमआईएम और अन्य छुटभैये दलों की कोशिशें मतदाताओं के मनोमिजाज पर क्या रंग जमाएंगी और अपने साइलेंट मतदान ट्रेंड से वो क्या गुल खिलाएंगे, इसका पता तो 14 नवंबर को ही पता लग पायेगा, क्योंकि राजनीतिक रूप से यह प्रदेश बहुत ही जागरूक प्रदेश है। महंगाई और बेरोजगारी से जूझ रहे आम बिहारियों के दिल मे अब सामाजिक न्याय से भी ज्यादा हिंदुत्व की लहरें उफान मार रही हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि इस्लामिक देशों और चीन-अमेरिका के सहयोग से बनने वाले ‘ग्रेटर बंगलादेश’ से शांतिप्रिय बिहार भविष्य में गुजरात, राजस्थान, पंजाब और जम्मूकश्मीर की तरह ही युद्ध भूमि भी बन सकता है।
बिहार के लोगों को यह भी पता है कि उनके पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जिन अल्पसंख्यकों की राजनीति कर रहे हैं, उससे बंगलादेश का षड्यंत्र सफल हो या न हो, लेकिन पूर्वी भारत निकट भविष्य में रक्तरंजित भी हो सकता है। इसलिए विकसित, समृद्ध और ज्ञान की संस्कृति की रक्षा के लिए बिहार वासी कुछ ठोस व कड़ा निर्णय भी ले सकते हैं। उन्हें पता है कि इंडिया गठबंधन के राजद, कांग्रेस, भाकपा माले, वीआईपी, वामपंथी दलों की विचारधारा भी पाकिस्तान-बंगलादेश की सरकारों से काफी मिलती जुलती है। इसलिए यदि इन्हें नहीं रोका गया तो संभव है कि भविष्य में ये लोग बिहार को भी उसमें शामिल करवा दें।
ऐसा इसलिए कि टीवी स्क्रीन और सोशल मीडिया पर इंडिया गठबंधन के नेताओं के जो हिन्दू विरोधी बयान और कार्यप्रणाली सामने आती रहती है, इससे बिहार के मतदाता अपने राज्य के भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं। बीते वर्षों में उन्होंने महसूस किया है कि राज्य में जंगलराज (2000-2005) का पर्याय बन चुका राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद का कुनबा और उनके सरदार तेजस्वी यादव, पूर्व उपमुख्यमंत्री जनता दल यूनाइटेड के नेता व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सहयोग से ब्रेक के बाद सत्ता में आ जाते हैं, इसलिए इसबार ऐसा रणनीतिक मतदान किया जाए कि ऐसी किसी सियासी बात की संभावना भी नहीं बचे।
बिहार से जुड़े सूत्र बताते हैं कि सूबे में भाजपा के अलावा जनसुराज का प्रदर्शन अच्छा हो सकता है, क्योंकि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की कारगुजारियों से प्रबुद्ध बिहारी बहुत ही नाराज चल रहे हैं और ग्राम स्तर पर वह नए बिहार का निर्माण करने के लिए एक मुहिम चला रहे हैं। यह गैर धार्मिक और गैर जातीय मुहिम है, जिसका मकसद बिहार के विकास और किसी भी अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र से बिहार की सुरक्षा की बात उनके एजेंडे में है। यही वजह है कि राष्ट्रवादी भाजपा और उसके सहयोगियों के अलावा जनसुराज के प्रत्याशियों की ओर वे करवट ले रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि आपसी दांवपेंच से परेशान एनडीए के नेताओं और बिखरे या कई सीटों पर आपस में ही नूराकुश्ती करने वाले इंडिया गठबंधन के नेताओं के अलावा जो नया विकल्प मौजूद है, उसे ही इस बात मजबूत विपक्ष की जिम्मेदारी मिलने लायक जनसमर्थन दे दिया जाए, इससे राष्ट्रवादी सरकार के बनने और जनहित के मुद्दे पर उसे सक्रिय करने की गारंटी मिल जाएगी। इसलिए सच कहूं तो राजनीतिक अहंकार और बुद्धिजीवियों की बिखरी टंकार के बीच बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की चुनावी लड़ाई दिलचस्प होने जा रही है।
जैसे-जैसे चुनाव प्रचार जोर पकड़ेगा, बुद्धिजीवियों की निर्दलीय और सर्वदलीय राजनीतिक मुहिम तेज होती जाएगी। सीट बंटवारे में जो कलह दिखाई दी, उसके पीछे भी इन्हीं बुद्धिजीवियों के हाथ की खबरें हैं। खासकर कांग्रेस के लिए नई राजनीतिक जमीन तैयार करने वाले बुद्धिजीवी तो इस बात पर अड़े हुए हैं कि किसी भी कीमत पर अपने दूरगामी राजनीतिक हितों से समझौता नहीं करना है। इससे स्पष्ट है कि यूपी में जो गलती 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव किये थे, 2025 में वही गलती दुहराकर तेजस्वी यादव भी सियासी रूप से अप्रासंगिक हो जाएंगे। स्पष्ट है कि बिहार की नई राजनीतिक करवट से विकास और सुरक्षा दोनों की गारंटी मिलेगी।

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