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हरियाणा में 5 अक्टूबर को होने वाले चुनाव में राज्य की करीब एक तिहाई विधानसभा सीटें महत्वपूर्ण हो सकती हैं। 2019 के चुनावों में ये 32 सीटें कम अंतर से जीती गई थीं, जो इस बार भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन ना हो पाने के बाद हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से 32 सीटें महत्वपूर्ण हो जाती हैं। इन 32 सीटों पर पिछले चुनाव में जीत का अंतर 10,000 वोटों से भी कम था। इस चुनाव में भाजपा के पूर्व सहयोगी जननायक जनता पार्टी ने चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व वाली आजाद समाज पार्टी (कांशी राम) के साथ गठबंधन किया है। वहीं आईएनएलडी ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया है। इससे विपक्षी वोटों का और बिखराव हो सकता है और भाजपा को फायदा हो सकता है, जिसने 2019 के चुनावों में इन 32 में से 15 सीटें जीती थीं।

आप पार्टी ने यह भी साफ कर दिया कि वो हरियाणा में अकेले क्यों चुनाव लड़ना चाहती है? पार्टी को लगता है कि राज्य में उसका संगठन मजबूत हो रहा है और भाजपा की सरकार के खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी है। 10 साल की सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा भी है। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान झेलना पड़ा है। हालांकि, आंकड़ेआप पार्टी के पक्ष में नहीं है।आप पार्टी ने हरियाणा में कई बार चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नसीब नहीं हुई है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि हरियाणा मेंआप पार्टी के अकेले चुनाव लड़ने से कांग्रेस का गेम बिगड़ेगा या भाजपा के लिए हालात बदलेंगे?

गौरतलब है कि आप पार्टी ने हाल ही में लोकसभा चुनाव अपने इंडिया ब्लॉक पार्टनर कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था। कांग्रेस ने 9 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और पांच सीटों पर जीत हासिल की।आप पार्टी ने कुरूक्षेत्र सीट पर चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नसीब नहीं हुई थी।आप पार्टी ने कुरूक्षेत्र सीट पर सुशील गुप्ता को मैदान में उतारा था।आप पार्टी को 29 हजार वोटों से हार मिली। भाजपा के नवीन जिंदल को 542,175 वोट मिले।आप पार्टी के गुप्ता को 513,154 वोट मिले।आप पार्टी ने 2019 में भी विधानसभा चुनाव लड़ा था और 46 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। पार्टी को पूरे राज्य में सिर्फ 59,839 वोट मिल सके थे। इससे पहले कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने संकेत दिया था कि पार्टी विधानसभा चुनाव अकेले लड़ सकती है। कांग्रेस नेता का कहना था कि वे अपने दम पर सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ने में सक्षम हैं।

हरियाणा में इस समय भाजपा की सरकार है। इस बार भाजपा की कोशिश है कि जीत की हैट्रिक लगाई जाए। हालांकि, यह आसान नहीं है। क्योंकि लोकसभा चुनाव के नतीजों ने पार्टी को अलर्ट कर दिया है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने 5-5 सीटें जीती हैं। इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया था। 2014 में भी सात सीटें जीती थीं। यही वजह है कि इस बार के नतीजों के बाद पार्टी ने अपनी पूरी रणनीति बदल ली है और हर वर्ग को साधने का फुल प्रूफ प्लान जमीन पर उतार दिया है। सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस किया जा रहा है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ओबीसी चेहरे हैं। प्रदेश अध्यक्ष के लिए ब्राह्मण फेस मोहन लाल बड़ौली को बनाकर नया दांव खेला है। प्रदेश प्रभारी सतीश पूनिया जाट समाज से आते हैं। किसानों और युवाओं की नाराजगी भी कम करने की कोशिशें की जा रही हैं। ओबीसी के लिए क्रीमी लेयर बढ़ाने का ऐलान कर दिया है। ओबीसी जातियों की बी कैटेगरी के लिए भी नया कोटा तय कर दिया है। चुनाव से पहले इसे बड़ा दांव माना जा रहा है। हरियाणा में सबसे बड़ा वोट बैंक ओबीसी का है। हरियाणा में ओबीसी और ब्राह्मण समुदायों को मिलाकर करीब 35 फीसदी वोटर्स हैं। राज्य में 21 प्रतिशत ओबीसी मतदाता हैं। जबकि जाट मतदाता 22.2 प्रतिशत हैं। करीब 20 फीसदी दलित आबादी है।

जानकार कहते हैं कि हरियाणा में आम आदमी पार्टी के अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने से कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।आप पार्टी का उभरना कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा सकता है। विशेषकर शहरी और युवा वोटर्स को आप पार्टी अपने वोटर्स में बदल सकती है। दरअसल, शहरी और युवा भ्रष्टाचार और सुशासन के मुद्दे पर आप पार्टी की नीतियों की ओर आकर्षित हो सकते हैं। हालांकि, इससे भाजपा को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ हो सकता है। क्योंकि विरोधी वोटों का विभाजन भाजपा की जीत की संभावनाओं को बढ़ा सकता है। यह समीकरण अलग-अलग चुनाव लड़ने से बनते दिख रहे हैं।

हरियाणा में आम आदमी पार्टी का कुछ जिलों में मजबूत आधार बनता दिख रहा है। विशेषकर गुरुग्राम, फरीदाबाद, रोहतक और हिसार जैसे शहरी इलाकों में संगठन पैठ बना रहा है। पार्टी ने इन जिलों में जमीनी स्तर पर काम करते हुए स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है और मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश की है। पंचायत और जिला परिषद चुनावों में भीआप पार्टी ने इन क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया है।

इस बार लोकसभा चुनाव में जबआप पार्टी और कांग्रेस मिलकर मैदान में उतरी थी तो वोटों के मामले में भाजपा को नुकसान झेलना पड़ा है। 2019 में भाजपा का वोट शेयर 58।20% था। अब ये घटकर 46.30% हो गया है। जबकि 2019 में कांग्रेस का वोट शेयर 28।50% था, जो अब बढ़कर 43.80% हो गया है।आप पार्टी ने पिछली बार तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस बार सिर्फ एक सीट पर चुनाव लड़ा। उसके बावजूद अपना वोट शेयर 0.36% से बढ़ाकर 3.94% कर लिया। यानी गठबंधन मेंआप पार्टी के वोट शेयर में इजाफा हुआ है।
इसके अलावा, भाजपा ने हरियाणा की कुल 90 विधानसभा सीटों में से 44 सीटों पर सबसे ज्यादा वोट हासिल किए। कांग्रेस भी 42 सीटों पर ज्यादा पीछे नहीं रही। जबकि आप पार्टी चार सीटों पर आगे रही। जेजेपी और आईएनएलडी किसी भी विधानसभा क्षेत्र में आगे नहीं रहीं। जानकार कहते हैं कि लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव भी आप पार्टी और कांग्रेस मिलकर लड़ते तो भाजपा को बहुमत का आंकड़ा हासिल करने में चुनौती मिल सकती थी। लेकिन अकेले चुनाव लड़ने की स्थिति में भाजपा को बड़े नुकसान से राहत मिल सकती है। चूंकि भाजपा को राज्य में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा के रणनीतिकारों को भी लगता है कि विपक्षी दलों के बीच वोटों के विभाजन के जरिए नुकसान की भरपाई की जा सकती है।

भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों ने 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की। हालांकि, इस बार उसके सामने चुनौतियां ज्यादा हैं। राज्य में नेतृत्व परिवर्तन हुआ है। संगठन में भी नए चेहरे को जिम्मेदारी दी गई है। 10 साल हरियाणा में सरकार चलाने वाले मनोहर लाल खट्टर के पास केंद्र सरकार में बड़ी जिम्मेदारी है। किसान और पहलवानों के मुद्दे ने सरकार की मुश्किलें बढ़ाई हैं। जाटों की नाराजगी भी किसी से छिपी नहीं है। विपक्ष महंगाई-बेरोजगारी पर लगातार सरकार को घेर रहा है। कांग्रेस,आप पार्टी और अन्य क्षेत्रीय दलों को उम्मीद है कि वो इन मुद्दों के सहारे भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाएगा। दूसरी ओर भाजपा को लगता है कि कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी, इंडियन नेशनल लोकदल और आम आदमी पार्टी के बीच वोटों का बंटवारा होने से नुकसान कम होगा और बढ़त बरकरार रहेगी।

हरियाणा में जाट सबसे प्रभावशाली समुदाय है। जाट समुदाय की आबादी करीब 27 प्रतिशत है। हिसार, भिवानी, महेंद्रगढ़, रोहतक, झज्जर, सोनीपत, सिरसा, जींद और कैथल हरियाणा में जाटलैंड माने जाते हैं। जाटों में असंतोष के कारण भाजपा 2019 के विधानसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाई और पार्टी छह सीटों से पीछे रह गई। 10 विधायकों वाली जेजेपी के सहयोग से भाजपा ने दोबारा सरकार बनाई। किसानों के विरोध, अग्निपथ योजना और पहलवानों के विरोध के कारण इस बार जाटों में नाराजगी है। इसे भांपते हुए जेजेपी ने भाजपा सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है। हालांकि, आधिकारिक तौर पर लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें ना दिए जाना वजह बताया है।वहीं, कांग्रेस जाट-दलित-मुस्लिम समर्थन को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। इन तीनों वर्गों की आबादी 50 प्रतिशत है और 7-8 सीटों पर खासा प्रभाव है। कांग्रेस नेता भूपिंदर हुड्डा कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में पार्टी के वोट शेयर में करीब 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। यह स्पष्ट संकेत है कि लोगों ने कांग्रेस सरकार लाने का मन बना लिया है।

गुरुवार को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, राज्यसभा सांसद संजय सिंह, राष्ट्रीय संगठन मंत्री संदीप पाठक और प्रदेश अध्यक्ष डॉ। सुशील गुप्ता ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनाव की रणनीति बताई। उन्होंने कहा कि 20 जुलाई को बैठक होगी और हरियाणा के लिए अरविंद केजरीवाल की गारंटी लॉन्च की जाएगी।आप पार्टी का कहना था कि वो हर सीट और हर वो बूथ पर मजबूती से चुनाव लड़ेगी।

दिल्ली और पंजाब को टच करता है हरियाणा है इसी कारण आम आदमी पार्टी को इस बार ज्यादा उम्मीद दिखाती है । पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान का कहना था किआप पार्टी नेताओं ने हरियाणा के रोहतक, सोनीपत और जींद में बैठकें कीं। वहां लोगों ने कहा कि वे राज्य में ‘बदलाव’ चाहते हैं। मान का कहना था कि हरियाणा ने कांग्रेस, भाजपा और क्षेत्रीय दलों को मौका दिया लेकिन इन सभी ने राज्य को लूट लिया। लोग बदलाव चाहते हैं औरआप पार्टी को बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘आप’ एक राष्ट्रीय पार्टी है और सबसे तेजी से बढ़ती पार्टी भी है। हमारी दिल्ली और पंजाब में सरकारें हैं। हरियाणा का आधा हिस्सा दिल्ली को छूता है और दूसरा आधा पंजाब को छूता है जबकि आधा हरियाणा पंजाबी भी बोलता है।मान ने तर्क दिया, दस साल पहले किसी ने नहीं सोचा था किआप पार्टी पंजाब में बड़ी जीत दर्ज करेगी और अपने दम पर सरकार बनाएगी, लेकिन यह हकीकत हुआ। अब पार्टी उसी भावना और ऊर्जा के साथ हरियाणा चुनाव लड़ेगी। भगवंत मान की पत्नी गुरप्रीत कौर हरियाणा के कुरूक्षेत्र जिले से हैं। उन्होंने कहा, पंजाब और हरियाणा के लोगों के रिश्तेदार दोनों राज्यों में हैं। जबकि दोनों राज्यों के कुछ जिले सीमाएं साझा करते हैं। उन्होंने कहा, अरविंद केजरीवाल हरियाणा के हैं और उन्होंने देश की राजनीति बदल दी।

बाकी तो हरियाणा चुनाव के चंद महीने के बाद ही दिल्ली में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। और वहां पर आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी दुश्मन कांग्रेस ही है। ऐसे में पड़ोसी राज्य में गठबंधन के बाद दिल्ली में सत्ता के शिखर पर बैठी आम आदमी पार्टी भी दिल्ली वाला रिस्क नहीं लेता चाहती है और वो भी तब, जब इस वक्त पार्टी मुश्किलों में है। बाकी नामांकन तक कोई और बड़ा सियासी उलटफेर हो जाए, तो कुछ कहा नहीं जा सकता है। ये राजनीति है, ऐसे ही चलती है।

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