जैसी उम्मीद थी मोदी -3 का बजट वैसा ही आया। निर्मला सीतारमण ने अपने सातवें बजट के प्रावधानों में लोकसभा चुनाव के दौरान उठे मुद्दों पर पूरा ध्यान दिया वहीं सत्ता के मित्रों की मांगों (जरूरतों) का भी मान रखा। बिहार और आंध्र में विशेष पैकेज को लेकर खुशियां मनाई जा रही हैं तो विपक्ष इसे सरकार बचाओ और भेदभाव वाला बजट बताकर आलोचना कर रहा है।
पीएम नरेन्द्र मोदी पर लगते रहे सूट बूट की सरकार के आरोपों को भौंथरा करने की वित्तमंत्री ने पूरी कोशिश की। सरकार गरीबों के साथ खड़ी भले ही नहीं दिखी हो अमीरों का हाथ झटकते हुए दिखने में उसने कोताही नहीं बरती। उल्टे विदेशी कंपनियों के लिए राहत के कदम उठाकर बड़े धन्नासेठों के सामने चुनौतियां खड़ी करने की दिशा में सरकार ने कदम बढाया है।
बाजार फिसला, फिर संभला
डिवीडेंट पर टैक्स लगाना शेयर बाजार को जरा भी नहीं भाया। नतीजा यह कि जैसे- जैसे वित्तमंत्री बजट के पन्ने पलटती रहीं बाजार का रुख लाल निशान की ओर तेजी से बढ़ता रहा। दिन भर बाजार में खासी उथल-पुथल देखने को मिली। सेंसेक्स कभी रेड तो कभी ग्रीन जोन में नजर आया। कैपिटल गेन्स टैक्स को लेकर हुए ऐलान के बाद तो सेंसेक्स 1200 अंक तक फिसल गया। वित्त मंत्री ने जैसे ही कैपिटल गेन्स टैक्स का जिक्र किया, तो सेंसेक्स और निफ्टी भरभराकर टूट गए। बीएसई के सेंसेक्स ने तो 12 अंकों का गोता लगा दिया, वहीं एनएसई का निफ्टी-50 इंडेक्स 400 अंक से ज्यादा बिखर गया। हालांकि, मार्केट बंद होते-होते अच्छी रिकवरी भी हुई। फिर भी दोनों इंडेक्स लाल निशान पर बंद हुए।
ऐसी ही है मोदी की कार्यशैली
एनडीए सरकार के गठन के साथ ही कहा जाने लगा था कि सरकार दो बैशाखियों पर टिकी है। मोदी की कार्यशैली में झुकना या समझौता है ही नहीं। एक दिन पहले ही नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को साफ साफ शब्दों में विशेष दर्जा की मांग को ठुकरा दिया गया और जब बजट आया तो दोनों मित्र दलों के लिए खजाने के दरवाजे खोल दिए गए। सत्ता का बड़प्पन भी रह गया और साथियों की मांग भी पूरी हो गई। तुम भी खुश और हम भी ख़ुश की तर्ज पर जलने वाले जला करें। सरकार वैसे भी दस साल तक प्रतिपक्ष के आरोपों को जरा भी तरजीह नहीं देने की नीति पर चलती रही है। अबकी बार प्रतिपक्ष मजबूत होकर उभरा है। इसलिए लोकसभा में नई परिस्थितियों को झेलने की तैयारी में सरकार को रहना होगा। बजट पर हंगामा के आसार दिख रहे हैं।अलबत्ता नीतीश और नायडू दोनों बजट प्रावधानों से खुश हैं और मोदी तथा वित्तमंत्री का आभार मान रहे हैं।
सरकार ने महंगाई को स्वीकारा!
बजट का एक बड़ा संदेश यह है कि महंगाई और बेरोज़गारी को सरकार ने स्वीकार कर लिया है। इस मुद्दे पर राहुल -अखिलेश की जोड़ी सरकार को कदम कदम पर घेरती रही है। उनकी बातों का मतदाता पर असर भी हुआ। बजट प्रावधानों में रोजगार, कौशल प्रशिक्षण, महिलाओं, इंफ्रास्ट्रक्चर, कृषि को प्राथमिकता वाले 9 क्षेत्रों में शामिल किया गया है। 4 करोड़ नौकरियां देने, एक करोड़ बेरोजगारों को कौशल प्रशिक्षण के अवसर देने और 2 लाख महिलाओं को रोजगार के अवसर मुहैया कराने जैसे कुछ अच्छे और स्वागत योग्य कदम उठाए गए हैं। कौशल प्रशिक्षण इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि आर्थिक सर्वे में यह पाया गया कि देश के 49 फीसदी ग्रेजुएट काम करने के लिए फिट नहीं हैं। युवाओं के पास डिग्री तो है पर हुनर नहीं है। कुछ प्रश्न अधूरे हैं जिनके उत्तर सरकार को खोजने होंगे। 500 बड़ी कंपनियों में एक करोड़ लोगों को कौशल प्रशिक्षण देने की घोषणा की गई है। इस हिसाब से एक कंपनी में पांच हजार से अधिक प्रशिक्षुओं को समायोजित किया जाना कितना व्यवहारिक है? यह आने वाला समय ही बताएगा।
विकसित भारत की कल्पना
अमृत काल की छाया में 2047 तक विकसित भारत की कल्पना के साथ लाए गए बजट में आयकर में थोड़ी राहत छोटे टैक्स पेयर को दी गई है। 3 लाख तक की आय कर मुक्त रहेगी। 7 लाख तक की आय पर 5 फीसदी कर देना होगा जबकि पहले यह सीमा 6 लाख थी। इससे नौकरी पेशा वर्ग की जेब में पैसा बचेगा। एक गणना के अनुसार आयकर की तीन स्लैबों में आने वाले वेतनभोगियों को क्रमशः 650, 867 और 1517 रुपए की हर महीने की बचत होगी।
मध्यमवर्ग को क्या मिला?
सवाल यह है कि बजट में लगभग 50 करोड़ मीडियम क्लास को क्या मिला? दस साल क्या पिछले 20 साल के अंतराल को देखिए। सबसे अधिक टेक्स देने वाले मीडियम क्लास के लिए कुछ नहीं हुआ। मजे की बात यह है कि यह एसा क्लास है जो हर परिस्थिति में समय काट लेता है। हर परिस्थिति को झेल लेता है। टैक्स स्लैब में बदलाव से 17,500 रुपए की बचत इस बार इसी क्लास पर है। जीएसटी का बोझ भी सबसे ज्यादा इसी नौकरी पेशा वर्ग पर पड़ता रहा है। बीते वित्त वर्ष की बात करें तो यह कहा जा सकता है कि कर से प्राप्त आय का 90 हिस्सेदारी गरीब और मध्यम वर्ग की है। अमीर तो सकल कर संग्रह का 10 फीसदी ही चुकाते हैं।
डूबते स्टार्टअप को बूस्ट
बजट में सभी वर्ग के निवेशकों के लिए ‘एंजेल टैक्स’ खत्म करने का प्रस्ताव है। बता दें कि वर्ष 2023-24 में 34,848 स्टार्ट अप बंद हुए हैं। इसे देखते हुए स्टार्ट अप को बढ़ावा दिए जाने की उम्मीद पहले से की जा रही थी। शेयर की अतिरिक्त कीमत को इनकम माना जाता है और इस इनकम पर टैक्स लगता है। इसे ही एंजेल टैक्स कहा जाता है। इसे इस तरह समझ सकते हैं कि जब कोई स्टार्टअप किसी निवेशक से पैसा जुटाती है और निवेश की राशि स्टार्टअप के शेयरों के उचित बाजार मूल्य से अधिक हो, तो ऐसे में उस स्टार्टअप को एंजेल टैक्स चुकाना पड़ता है। इस टैक्स को इसलिए लाया गया था ताकि काले धन को ऐसे निवेश की मदद से सफेद न बनाया जा सके।
जो कमाएगा वो टेक्स भरेगा
विदेशी पूंजी को आकर्षित करने के लिए विदेशी कंपनियों पर कॉर्पोरेट कर की दर को 40 से घटाकर 35 प्रतिशत करने का भी प्रस्ताव है। लोंग टर्म और शॉर्ट टर्म को भी नए सिरे से परिभाषित किया गया है। लोंग टर्म पर टेक्स बढ़ाने के पीछे सरकार की सोच यह बताई जा रही है कि जो कमाएगा वह टेक्स भी चुकाएगा। सोने, चांदी और प्लेटिनम पर टेक्स कम करने के बाद बाजार में सोने की कीमतें गनीचे आने को भी शुभ संकेत माना जा रहा है।
किसान संतुष्ट क्यों नहीं बजट में कोई स्पष्टता नहीं है। बजट प्रावधानों से किसान खुश क्यों नहीं हैं? किसानों की मुख्य मांग एमएसपी की रही है। यह जानने के लिए राकेश टिकैत की बात सुनना चाहिए- ‘बजट दिल्ली के कागजों में ठीक लगता होगा लेकिन ग्रामीण पृष्ठभूमि में ठीक नहीं है। इसका ज्यादा लाभ किसानों को नहीं होगा। कंपनियों को जरूर लाभ होगा। जो आर्गेनिक और नेचुरल फार्मिंग की बात भी वो भी को कंपनी, संस्था लेगी और वह कहेगी कि हम किसानों को ओर्गेनिक खेती करना सिखाएंगे।’ किसानों की आय करमुक्त है। छोटे और मझौले किसानों के लिए तो यह ठीक है लेकिन करोड़ों और अरबों की आय वाले किसानों को आखिर कर छूट की क्या आवश्यकता है। यही नहीं किसानों को मिलने वाली कर राहत का लाभ गैर किसान भी उठा लेते हैं। देश के अनेक धन्ना सेठ, फिल्म स्टार और राजनीतिक नेता भी कृषि भूमि के मालिक हैं और टेक्स राहत के हकदार बन बैठे हैं।