बक्सर: बक्सर जिले के ऐतिहासिक किला मैदान में 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव 2024 का भव्य शुभारंभ हो गया है। शुभारंभ की शुरुआत वैदिक मंत्रोंचार के साथ सबसे पहले गणेश पूजन से हुई। इस दौरान अहिरौली मठ के मठाधीश्वर मधुसूदनाचार्य मौजूद रहे। उनके आशीर्वचन के साथ रामलीला का उद्घाटन किया गया।
रामलीला के शुभारंभ के साथ शिव सती लीला का मंचन किया गया। जिसे देखने के लिए जिले के गणमान्य लोग, महिलाएं और पुरुषों की काफी संख्या में भीड़ लगी। समिति सचिव बैकुंठ नाथ शर्मा ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि आजादी पूर्व से चली आ रही इस परंपरागत संस्कृति को रामलीला समिति ने निरंतर भव्यता प्रदान करने का प्रयास किया है और आगे भी जारी रहेगा। यह महोत्सव पूरे बिहार में प्रसिद्ध है।
दशहरा महोत्सव के तहत दिन में रासलीला और रात को रामलीला का मंचन किया जाता है। जिसमें एक तरफ श्रीकृष्ण तो दूसरी तरफ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र का साक्षात दर्शन होता है। 21 दिवसीय आयोजन के लिए वृंदावन की सुप्रसिद्ध श्रीराधा माधव रासलीला एवं रामलीला मंडली को बुलाया गया है। जिनके कलाकारों द्वारा रामलीला और रासलीला का मंचन किया जाता है।
समिति सचिव ने बताया कि पहली बार इसकी शुरुआत 109 साल पहले वर्ष 1915 में शहर के नया चौक स्थित श्रीचंद्र मंदिर में किया गया था। उस वक्त इसका आयोजन छोटे स्तर के स्थानीय कलाकारों के सहयोग से होता था। संसाधन और आधुनिक तकनीक के अभाव में श्रीचंद्र मंदिर के अलावा लीला के अलग-अलग प्रसंगों को शहर के जंगल, नदी और तालाब के समीप प्रदर्शित कर रामायण के कांड के अनुसार दिखाने का प्रयास किया जाता था।
विजयादशमी महोत्सव की शुरुआत हर साल अश्विन कृष्णपक्ष अष्टमी तिथि यानि कि जीवित पुत्रिका व्रत की रात से होती है। जिसका समापन दशहरा के तीसरे दिन भरत मिलाप और राम के राज्याभिषेक के साथ होता है। बदलते परिवेश और बढ़ती भीड़ को देखते हुए साल 1989 में इसका आयोजन श्रीचंद्र मंदिर से किला मैदान में स्थाई रूप से स्थानांतरित कर दिया गया था। जिसके बाद से अब तक इसी जगह पर इसका भव्य रूप से शुभारंभ किया जाता है।
बता दें कि वृंदावन से पधारे सर्वश्रेष्ठ रामलीला मंडल श्रीराधा माधव रासलीला एवं रामलीला मंडल के स्वामी श्रीसुरेश उपाध्याय ‘व्यास जी’ के सफल निर्देशन में 21 दिवसीय कार्यक्रम के अंतर्गत पहले दिन गणेश पूजन और शिव विवाह प्रसंग का मंचन किया गया। जिसमें दिखाया गया कि सती और भोलेनाथ ऋषि अगस्त के यहां रामकथा सुनते हैं। सती श्रीराम की परीक्षा लेने जाती है, जहां श्रीराम उनको पहचान जाते हैं और भोलेनाथ जी का समाचार पूछते हैं। जिसके बाद सती लज्जित होकर अपनी आंखें बंद कर लेती है। जहां उन्हें राम, लक्ष्मण, सीता का प्रतिबिंब दिखाई देता है।