जनगणना इसलिए जरूरी है
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जनगणना इसलिए जरूरी है 1
पत्रलेखा चटर्जी

हम वर्ष 2024 का आधा पड़ाव पार कर चुके हैं। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार अपने तीसरे कार्यकाल के लिए सत्ता में वापसी कर चुकी है। लेकिन हर दस वर्ष में होने वाली जनगणना को लेकर अब तक कोई बात नहीं की जा रही। अंतिम बार जनगणना 2011 में हुई थी। भारत ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भी जनगणना करवाई थी, लेकिन 1981 से हर दस वर्ष में शुरू हुए जनगणना के क्रम को वर्ष 2020 में कोरोना महामारी के कारण स्थगित करना पड़ा। लेकिन, आश्चर्य की बात यह है कि चार साल बीत जाने के बावजूद हमारे पास अब भी जनगणना कराने के लिए समय नहीं है।

बांग्लादेश और ब्राजील ने अपनी अंतिम जनगणना 2022 में संपन्न कराई थी। अमेरिका और चीन, तो चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी अपनी जनगणना 2020 में ही करवा चुके हैं। जनगणना के माध्यम से ग्रामीण स्तर तक देश के लोगों की संख्या और जनसांख्यिकीय व सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं की जानकारियां बड़े स्तर पर जुटाई जाती हैं।

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ माइग्रेशन ऐंड डेवलपमेंट, केरल से संबंधित दो प्रतिष्ठित जनसांख्यिकीविद एस. इरुदया राजन और यूएस मिश्रा ने हाल ही में टिप्पणी की, कि दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत में जनसंख्या की गणना वास्तविक नहीं है। दरअसल, भारत की जनसंख्या के ज्यादातर अनुमान दशकों पुराने आंकड़ों पर आधारित हैं। भारत जब तक अपनी समुचित जनगणना नहीं करा लेता, तब तक हमारे पास सिर्फ अनुमान ही होंगे। जनगणना में देरी के पीछे जो भी कारण हों, लेकिन जनगणना के आंकड़ों की कमी एक गंभीर मसला है। यह न केवल शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं के लिए नुकसानदेह है, बल्कि जनगणना के आंकड़ों में देरी की वजह से कल्याणकारी कार्यक्रमों का क्रियान्वयन भी प्रभावित होता है। जैसा राजन और मिश्रा भी इंगित करते हैं कि ‘सटीक जनसंख्या और जनसांख्यिकीय संरचना को जानना महत्वपूर्ण है, ताकि हम बेहतर नीतियों का मसौदा तैयार कर सकें।’

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) 2013 के अंतर्गत देश के करीब 81.35 करोड़ लोगों को 31 दिसंबर, 2028 तक मुफ्त राशन दिया जाएगा। यह राशन 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार दिया जा रहा है। सरकार के 2019 के बयान के आधार पर देश की 67 फीसदी आबादी यानी 80 करोड़ लोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के हकदार हैं। स्वतंत्र शोधकर्ताओं का अनुमान है कि मौजूदा समय में करीब 92 करोड़ लोग इस दायरे में आने चाहिए। अद्यतन जनसांख्यिकी आंकड़े मिलने पर एनएफएसए को लाभ मिलेगा। यह बात उन अज्ञात लाभार्थियों पर भी लागू होती है, जो राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत वृद्धावस्था पेंशन के तहत मिलने वाली वित्तीय सहायता से वंचित हैं।

जनगणना के नवीनतम आंकड़े नहीं होने की कई चुनौतियां हैं। एक शोधकर्ता का कहना है कि यदि हमें बच्चों का टीकाकरण करना है, आंगनवाड़ी कहां खोलनी है या पीडीएस में कितने परिवारों को शामिल करना है, तो इसके लिए जनगणना की जरूरत है। यही जनसंख्या के आंकड़ों का एकमात्र स्वतंत्र स्रोत है, जिससे प्रशासन और गांव स्तर तक आबादी की विशेषताओं, जैसे-आयु, लिंग, परिवार का आकार आदि की जानकारी मिलती है। कई शोधकर्ताओं ने इस ओर ध्यान दिया है कि प्रशासनिक आंकड़े इस बात पर निर्भर करते हैं कि सरकारी तंत्र किन लोगों तक पहुंच पाया। ऐसे में, पक्षपात की आशंका बनी रहती है। यह तथ्य जननीति के लिए स्वतंत्र और पूर्ण जनगणना की मांग को स्पष्ट करता है।

हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि सरकार और उसकी विभिन्न एजेंसियों ने हाल के वर्षों में कोई देशव्यापी सर्वे नहीं किया है। इनमें 2022-23 का वार्षिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस), घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस/एमपीसीई), 2020 की नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) के तहत जन्म और मृत्यु के पंजीकरण का वार्षिक सर्वेक्षण और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2019-21 का एनएफएचएस-5) किए गए हैं। लेकिन जनगणना के नवीनतम आंकड़ों के बिना यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि किसको सबसे ज्यादा मदद की जरूरत है। उम्मीद है कि नई गठबंधन सरकार इस ओर ध्यान देगी।

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