सुरेंद्र किशोर
(पदमश्री से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार )
सत्ता पलट के तत्काल बाद बांग्लादेश में अगस्त , 2024 में हुई व्यापक सांप्रदायिक हिंसा और महिला उत्पीड़न का असर भारत के बहुसंख्यक मतदाताओं के वैसे हिस्से पर भी पड़ रहा है जो पहले भाजपा के वोटर नहीं थे। गत साल बांग्ला देश में जेहादियों के हाथों हिन्दू महिला-पुरुष की भीषण प्रताड़नाओं के दृश्य टी.वी.चैनलों पर देखने के बाद भारत के मतदाताओं के एक और हिस्से का मूड बदल गया लगता है।
इसीलिए सन 2024 के लोक सभा चुनाव और बाद के कुछ विधान सभाओं के चुनावों के रिजल्ट में साफ फर्क दिखाई पड़ा–सिर्फ झारखंड को छोड़कर।यहां तक कि उप चुनावों पर भी बांग्ला देश का असर रहा। 5 अगस्त, 2024 को बांग्ला देश में तख्ता पलट हुआ । वहां के जेहादी लोग हिन्दुओं खास कर उनकी महिलाओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसक व पशुवत हो उठे। जैसा मध्य युग में जेहादियों ने भारत में अत्याचार किए और जो कुछ सन 1990 में कश्मीर में हुआ,वही सब कुछ बांग्ला देश में हुआ और रुक रुककर अब भी हो रहा है।अब तो भारत के कुछ हिस्सों से भी ऐसी बर्बरताएं हो रही हैं जहां आबादी का अनुपात बदल गया है।
आप पूछेंगे कि धर्म के नाम पर ऐसा अत्याचार तो सदियों से हो रहा है।अब अंतर क्या आया है ? अंतर यह हुआ कि बांग्ला देश में सन 2024 में हिन्दुओं के साथ हुए अमानवीय कुकृत्यों को भारत के लोगों ने खासकर हिन्दुओं ने अपने टी.वी.चैनलों पर अपनी आंखों से देखा। नब्बे के दशक में जो कुछ कश्मीर में हुआ था,उसके दृश्य तो लोगों ने टी.वी.चैनलों पर सजीव नहीं देखे थे। मध्य युग में हुए जेहादी अत्याचारों की कहानियों से संबंधित इतिहास को कांग्रेस सरकार ने इस तरह पेश किया ताकि मुगल शासक अधिक क्रूर न लगें।
यहां तक कि नवंबर, 2024 में बिहार में जिन चार विधान सभा सीटों पर उप चुनाव हुए,उन सभी चार सीटों पर राजग की जीत हुई। चार में से तीन सीटों पर सन 2020 में राजद-माले उम्मीदवार विजयी हुए थे। बिहार में राजद-माले से कोई सीट छीन लेना कोई मामूली बात नहीं मानी जाती । नवंबर, 2024 में जिन कुछ अन्य राज्यों में विधान सभाओं के उप चुनाव हुए,उनमें भी अपेक्षाकृत काफी अधिक सीटें राजग को मिलीं,यहां तक कि यू.पी.में भी राजग ने कमाल किया जबकि 2024 के लोक सभा चुनाव में यू.पी.में राजग की बुरी तरह हार हुई थी। इस फर्क को समझिए।
ए.के.एंटोनी की सलाह को नजरअंदाज करने का नुकसान
सन 2014 के लोक सभा चुनाव में भारी पराजय के बाद सोनिया गांधी ने एंटोनी से कहा था कि आप चुनाव में कांग्रेस की हार के कारणों पर रपट बनाइए।
एंटोनी ने रपट बनाई। और सोनिया गांधी को दे दिया। उसमें अन्य कारणों के साथ- साथ यह भी लिखा गया था कि ‘मतदाताओं को, हमारी पार्टी अल्पसंख्यक (मुसलमानों)की तरफ झुकी हुई लगी जिसका हमें नुकसान हुआ।’ पर कांग्रेस हाईकमान ने एंटोनी की इस बात को नजरअंदाज कर दिया। न सिर्फ नजरअंदाज कर दिया,बल्कि इस बीच काग्रेस अल्पसंख्यकों के बीच के अतिवादियों के साथ पहले से अधिक घुलमिल गई है।इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि कांग्रेस कभीरों के बल पर सन 2047 तक भारतहामिद अंसारी पी.एफ.आई.की महिला शाखा के समारोह में शामिल होने के लिए 23 सितंबर, 2017 में कोझीकोड गए थे । पी.एफ.आई.के राजनीतिक संगठन एस.डी.पी.आई.का पिछले के पिछले कर्नाटका विधान सभा चुनाव में कांग्रेस से तालमेल हुआ था । दूसरी ओर, राहुल गांधी लोक सभा में कहते हैं–जो लोग खुद को हिन्दू कहते हैं ,वे लोग चौबीसों घंटे हिंसा -हिंसा हिंसा, नफरत -नफरत -नफरत करते रहते हैं। अब आप ही बताइए कि यह भाषण सुनकर कोई बहुसंख्यक समाज क्या सोचेगा ?
खबर है कि केरल के अधिकतर मुस्लिम वोट पी.एफ.आई.के प्रभाव में है।संकेत है कि वहां कांग्रेस अगला विधान सभा चुनाव आसानी से जीत कर सरकार बना सकती है। कांग्रेस पूरी तरह मुस्लिम वोट पर निर्भर हो गयी है। देश भर में इसकी प्रतिक्रिया तो स्वाभाविक है, केरल में चाहे जो हो। सोशल मीडिया के विस्फोट के इस दौर में गांव- गांव तक लोगों को मालूम होता रहता है कि कौन दल क्या कर रहा है और कौन दल क्या नहीं कर रहा है। कौन दल देश और उनके हक में है और कौन दल हक में नहीं है। इसलिए चुनाव आयोग पर हमला करने मात्र से कांग्रेस का कोई भला होने वाला नहीं है।
पुनश्चः
अपने निधन के कुछ ही समय पहले मधु लिमये ने ‘द हिन्दू’ में लेख लिखकर कहा था कि सुधरी हुई कांग्रेस ही इस देश को बचा सकती है। उनका आशय यह था कि कांग्रेस देश भर में फैली है और सेक्युलर छवि वाली है।सांप्रदायिक एकता कायम रख पाएगी। कांग्रेस से ऐसी भोली उम्मीद मधु लिमये ने की थी।
पर अब परलोक में संभवतः वे पछता रहे होंगे कि उन्होंने गलत उम्मीद की थी।