India Corruption Index 2024: एक रुपया चला, 15 पैसे पहुंचे—भ्रष्टाचार का वही पुराना चेहरा

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भारत में भ्रष्टाचार की सच्चाई और 2024 की रिपोर्ट

आजादी के बाद से देश में कई सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन भ्रष्टाचार की विषबेल जस की तस फलती-फूलती रही। वर्ष 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ओडिशा के सूखे प्रभावित कालाहांडी जिले में एक सार्वजनिक सभा में जो कहा था, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक लगता है —
“केंद्र सरकार दिल्ली से एक रुपया भेजती है, तो गांवों में लोगों तक सिर्फ 15 पैसे ही पहुंचते हैं।”
इस बयान का सीधा मतलब यह था कि उस समय 85 पैसे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते थे।

वक्त बदला, सरकारें बदलीं, लेकिन भ्रष्टाचार का चेहरा लगभग वही बना रहा। साल 2024 में भी भारत की स्थिति बहुत बेहतर नहीं दिखती। India Corruption Index 2024 यानी भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक में भारत का स्थान 96वां रहा है, जो 2023 में 93वां था। इतना ही नहीं, भारत का स्कोर भी 38 पर आ गया, जो पिछले साल 39 था। यह साफ दिखाता है कि सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार को लेकर धारणा और मजबूत हुई है।

Corruption in India: भ्रष्टाचार की वैश्विक रैंकिंग में भारत की स्थिति

भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक में भारत का स्थान 96वां होना दर्शाता है कि हालात अब भी चिंताजनक हैं। भारत के पड़ोसी देशों से तुलना करें तो पाकिस्तान 135वें और श्रीलंका 121वें स्थान पर है। यानी क्षेत्रीय तुलना में भले भारत थोड़ा ऊपर दिखे, लेकिन तस्वीर अभी भी संतोषजनक नहीं कही जा सकती।

डिजिटल युग में सरकार ने यह व्यवस्था बनाई कि सरकारी भुगतान सीधे लाभार्थियों के खातों में जाए, जिससे बिचौलियों की भूमिका खत्म हो सके। इससे कई स्तरों पर पारदर्शिता बढ़ी भी है, लेकिन भ्रष्टाचार करने वालों ने “तुम डाल-डाल, हम पात-पात” वाली कहावत को सच कर दिखाया। रास्ते बदले, तरीके बदले, लेकिन खेल पूरी तरह खत्म नहीं हुआ। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि इस क्षेत्र में अभी बहुत दूर तक काम किया जाना बाकी है।

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भ्रष्टाचार की जड़ें: हाई क्लास से लोअर क्लास तक

आज भ्रष्टाचार केवल बड़े अफसरों या राजनेताओं तक सीमित नहीं रह गया है। इसकी जड़ें हाई क्लास से लेकर लोअर क्लास तक फैल चुकी हैं। कमाई वाले विभागों के बाबुओं से लेकर दरबानों तक, हर स्तर पर अवैध कमाई के किस्से सुनने को मिलते हैं।

एक चर्चित मामला सामने आया, जब एक आईएएस अधिकारी का नौकर 55 करोड़ रुपए लेकर फरार हो गया। बाबुओं और हवलदारों के यहां करोड़ों रुपए की बरामदगी की खबरें आम हो चुकी हैं। जज के घर से अधजले नोट मिलने की खबर ने भी देश को चौंकाया था। समाज सेवा की शपथ लेकर राजनीति में आए कई चेहरों के यहां छापों में नोटों के पहाड़ आज भी लोगों की आंखें खोल देते हैं।

इन सबके बावजूद यह भी सच है कि आज भी ईमानदारी पूरी तरह मरी नहीं है। सिद्धांतों पर अडिग रहने वाले लोग समाज में अब भी मौजूद हैं, लेकिन उनकी संख्या कम होती जा रही है।

Corruption in India: प्रधानमंत्री का भ्रष्टाचार के खिलाफ संकल्प

15 अगस्त 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का स्पष्ट ऐलान किया था। उन्होंने कहा था —
“हमने व्यापक रूप से भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जंग छेड़ी है। इसकी कीमत मुझे और मेरी प्रतिष्ठा को चुकानी पड़ती है, लेकिन राष्ट्र से बड़ी कोई प्रतिष्ठा नहीं होती।”
उन्होंने यह भी कहा कि वह भ्रष्टाचारियों के लिए भय का वातावरण बनाना चाहते हैं।

यह बयान बताता है कि सरकार भ्रष्टाचार को लेकर अपनी सख्त नीति जारी रखने का दावा कर रही है।

भ्रष्टाचार पर सरकार का एक्शन मोड

केंद्र सरकार 2014 से ही भ्रष्टाचार के खिलाफ खुद को एक्शन मोड में बताती रही है। इस दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ED) और CBI की कार्रवाई लगातार सुर्खियों में रही।

मार्च 2022 में लोकसभा में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, 2004 से 2014 तक ईडी ने 112 ठिकानों पर छापेमारी कर 5346 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की थी। वहीं 2014 से 2022 के बीच 3010 रेड हुईं और लगभग एक लाख करोड़ रुपए की संपत्ति अटैच की गई।

रिश्वत लेना-देना दोनों अपराध

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 में 2018 में संशोधन किया गया। इसके तहत रिश्वत लेना और देना दोनों को अपराध की श्रेणी में रखा गया। अब इसके लिए 3 से 7 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।

हर साल 9 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य दुनिया भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता फैलाना है।

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Corruption in India: भ्रष्टाचार पर अर्थशास्त्रियों की राय

नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के अनुसार भ्रष्टाचार किसी एक सरकार की देन नहीं है। इसका सबसे ज्यादा असर गरीब और कमजोर वर्ग पर पड़ता है, क्योंकि उन्हें बुनियादी सुविधाओं के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है।

प्रोफेसर प्रणब बर्धन का कहना है कि भ्रष्टाचार एक “संतुलन जाल” बन जाता है, जिससे बाहर निकलना कठिन हो जाता है। वहीं विश्व बैंक के अर्थशास्त्री डैनियल कॉफमैन इसे “कानूनी भ्रष्टाचार” से भी जोड़ते हैं, जहां ताकतवर लोग अपने फायदे के लिए कानून तक बना लेते हैं।

मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा हुई

राजीव गांधी के 15 पैसे वाले बयान से लेकर India Corruption Index 2024 तक की यात्रा यह बताती है कि भ्रष्टाचार का दाग जितना धोने की कोशिश हुई, वह उतना ही चमकदार होता चला गया।

डिजिटल सिस्टम, सख्त कानून, एजेंसियों की कार्रवाई—सब होने के बावजूद भ्रष्टाचार पूरी तरह खत्म नहीं हो पाया है। यह लड़ाई अभी लंबी है और इसमें सरकार के साथ-साथ समाज की सामूहिक जिम्मेदारी भी उतनी ही जरूरी है।

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