Kunal Singh
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पटनाः भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनहित के मुद्दों पर न तो कोई राय-मशवरा करते हैं और न ही बातचीत के लिए समय देते हैं। कई दिनों से सरकार के तुगलकी फरमान के खिलाफ राज्य में जीविका कार्यकर्ताओं का आंदोलन चल रहा है लेकिन सरकार के पास उनकी मांगों को सुनने तक का समय नहीं है। महागठबंधन की ही सरकार के दौरान आशाकर्मियों के लिए 2500 रु. न्यूनतम मानदेय पर सहमति बनी थी, लेकिन आज तक वह लागू नहीं हो सका। इसपर भी सरकार बात करने को तैयार नहीं है।

आज पूरे बिहार में बाढ़ की तबाही है। सरकार को तो खुद पहल करके सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए थी और राहत, फसल क्षति मुआवजा और बाढ़ के स्थाई समाधान पर बातचीत करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा उसका कोई विचार नहीं है। भूमि सर्वे गरीबों को उजाड़ने का अभियान बन रहा है। भूदान, सीलिंग, सिकमी बटाईदार सबों के लिए यह आफत बना हुआ है। यहां तक कि बंटवारा और दाखिल खारिज न होना, कागजात की कमी आदि अनेक कारणों से यह अन्य लोगों के लिए भी तबाही का कारण बना हुआ है। जबतक इससे जुड़े तमाम मामले हल नहीं होते, इसपर रोक लगाने की जरूरत है।

कुणाल ने कहा कि पूरे बिहार में स्मार्ट मीटर एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। हर कोने से इसपर रोक की मांग उठ रही है, लेकिन सरकार चुपी साधे हुए है। अतः भाकपा-माले मांग करती है कि राज्य के उपुर्यक्त सवालों पर तत्काल सर्वदलीय बैठक और विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाए।

वहीं, माले विधायक दल के नेता का. महबूब आलम ने कहा कि हमने मुख्यमंत्री से इन मसलों पर कई बार बातचीत के लिए समय मांगा, लेकिन अब तक निराशा ही हाथ लगी है। अतः उपर्युक्त मुद्दों पर माले विधायक दल ने आगामी 4 अक्टूबर को राजभवन मार्च निकालने का फैसला किया है। हम बिहार के राज्यपाल से मांग करने जाएंगे कि वह सरकार को सूबे के ज्वलंत सवालों पर सर्वदलीय बैठक और विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का दबाव बनाए।

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