भारत ने साफ कर दिया है कि उसकी क्रिकेट टीम आगामी साल पाकिस्तान में होने वाली आईसीसी चैम्पियंस ट्रॉफी में भाग नहीं लेगी। इस तरह से उसने दुनिया को एक सख्त और स्पष्ट संदेश दे दिया है कि जब तक पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद जारी रहेगा, तब तक भारत अपने पड़ोसी मुल्क के साथ अन्य क्षेत्रों में भी सामान्य व्यवहार का दृष्टिकोण नहीं रख सकता। भारतीय क्रिकेट टीम का पाकिस्तान में क्रिकेट न खेलना एक जटिल मुद्दा है, जिसके राजनीतिक और सुरक्षात्मक दोनों पहलू हैं। आपको इस तरह के कई पिलपिले तर्क देने वाले मिल जाएँगे कि खेल को राजनीति से अलग रखना चाहिए। क्रिकेट के माध्यम से दोनों पड़ोसियों के बीच संबंध बेहतर हो सकते हैं। खेल प्रशंसकों को एकजुट करता है और सद्भावना का संदेश देता है। तो क्या हम इस काल्पनिक सद्भावना के लिये अपने लोकप्रिय खिलाड़ियों की जान खतरे में डाल दें? पाकिस्तान में आतंकवाद की घटनाएं थमने का नाम ही नहीं ले रही हैं। हाल के दौर में वहां पर दर्जनों चीनी नागरिकों और सेना के जवानों का कत्ल हो चुका है।
पाकिस्तान में कई आतंकी संगठन सरकार के खिलाफ बागी तेवर अपनाते हुए आतंकी घटनाओं को अंजाम देने में खुलेआम लगे हुए हैं। क्या इन परिस्थितियों में हमें अपनी टीम को सीमा के उस पार भेजना चाहिए? कहना न होगा कि इस तरह का कोई भी कदम बहुत महंगा पड़ सकता है। भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से राजनीतिक तनाव चल रहा है, जिसके कारण दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य नहीं हो सके, न तो होने की कोई संभावना ही दिख रही है। इसलिए, सुरक्षा चिंताएं एक महत्वपूर्ण कारण हैं, राष्ट्रहित में लिये गए इस निर्णय का! पाकिस्तान में सुरक्षा की स्थिति कभी भी स्थिर नहीं रहती। इसलिए भारतीय खिलाड़ियों की सुरक्षा को लेकर चिंता करना लाजिमी है। यह याद रखना होगा कि कुछ साल पहले पाकिस्तान में श्रीलंका की क्रिकेट टीम पर भीषण हमला लाहौर शहर में हुआ था। श्रीलंका की क्रिकेट टीम पर यह हमला 3 मार्च 2009 को हुआ था, जब लाहौर में गद्दाफी स्टेडियम के पास एक बड़े काफिले का हिस्सा श्रीलंकाई क्रिकेटरों को ले जा रही एक बस पर 12 बंदूकधारियों ने गोलीबारी की थी। क्रिकेटर पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के खिलाफ दूसरे टेस्ट के तीसरे दिन खेलने के लिए जा रहे थे। उस घटना को सारी दुनिया ने अपने टीवी सेटों और मोबाइल सेटों पर देखा था।
भारत यूं ही पाकिस्तान पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप नहीं लगाता। पाकिस्तान ने भारत पर बार-बार प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से आतंकवादी हमले किये है। पाकिस्तान ने ही 1948, 1965, 1971 और कारगिल के युद्ध शुरू किए। यह अलग बात है कि उसे हर बार कसकर मार पड़ी। पर वह तो एक नंबर का धूर्त है। उसे मार खाने में ही आनंद आता है।
हालांकि यह भी सच है कि पाकिस्तान से उत्पन्न आतंकवाद ने भारत पर गहरा प्रभाव डाला है। दशकों से, विभिन्न आतंकवादी समूहों ने भारत में कई आतंकवादी हमलों को अंजाम दिया है, जिससे बड़ी संख्या में निर्दोष लोगों की मौत हुई है और सैकड़ों को चोटें लगी हैं और बुनियादी ढांचे को व्यापक नुकसान पहुंचा है। इन हमलों के परिणामस्वरूप भारत को व्यापक आर्थिक नुकसान हुआ है। मुंबई पर हुए 2008 के आतंकवादी हमलों में हुए नुकसान का आंकलन करना मुश्किल है, क्योंकि; इसमें मानवीय और आर्थिक दोनों तरह के नुकसान शामिल हैं। मुंबई हमलों में 164 से ज़्यादा लोग मारे गए, जिसमें कई विदेशी नागरिक भी शामिल थे। सैकड़ों लोग घायल हुए, कई को गहरी चोटें आईं। उस भयावह हमलों के बाद मुंबई पहले की तरह कभी नहीं हुई। हमलों का उन लोगों पर गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा जो जीवित बचे, उनके परिवारों और समूचे शहर पर। अगर आर्थिक नुकसान की बात करें तो हमलों से संपत्ति को व्यापक नुकसान हुआ, जिसमें होटल, रेलवे स्टेशन और अन्य सार्वजनिक स्थान शामिल हैं। मरम्मत और पुनर्निर्माण की लागत का सटीक आकलन तो नहीं किया जा सकता। पर्यटन उद्योग पर भारी प्रभाव पड़ा, जिससे व्यापार में गिरावट आई और सैकड़ों की नौकरियां चली गईं। यह आर्थिक नुकसान दीर्घकालिक था। सारी दुनिया जानती है कि हमला पाकिस्तान के आतंकी संगठनों से किया था।
आईसीसी चैम्पियंस ट्रॉफी 2025 का आयोजन पाकिस्तान में होना है। भारत ने लाहौर में अपने सभी मैचों को दुबई में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया है, क्योंकि भारतीय सरकार अपनी टीम को पाकिस्तान में खेलना नहीं चाहती। भारत पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद से लड़ने और साथ ही सामान्य व्यवहार को अपनाने की दोहरी नीति नहीं अपनाना चाहता। यह पाकिस्तान को जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद के लिए अपने छद्म समर्थन को वैध बनाने की अनुमति देगा। पाकिस्तान इसलिए भारतीय टीम की भागेदारी चाहता है कि अगर उसने भाग नहीं लिया तो सारा आयोजन चौपट हो जाएगा। प्रायोजक नहीं आएंगे। जरा सोचिए कि जब पाकिस्तान चीनी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर पाता तो भारतीय टीम की क्या करेगा। चीन के सामने तो सारी पाकिस्तान सरकार कटोरा लेकर खड़ी रहती है।
पाकिस्तान में बीते अक्टूबर महीने में कराची हवाई अड्डे के पास आत्मघाती हमले में दो चीनी नागरिक मारे गए और कम से कम 10 लोग घायल हुए हैं। विस्फोट सिंध प्रांत में बिजली परियोजना पर काम कर रहे चीनी इंजीनियरों के काफिले पर हुआ था। पृथकतावादी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए), जिसने हाल के वर्षों में पाकिस्तान में विकास परियोजनाओं में शामिल चीनी नागरिकों पर बार-बार हमले किए हैं, ने कहा है कि उसने हमला किया है। इसने कहा कि उसने कराची हवाई अड्डे से आ रहे “चीनी इंजीनियरों और निवेशकों के एक काफिले” को “निशाना बनाया”। यह हमला उस वक्त हुआ है जब पाकिस्तान शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के नेताओं के शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने की तैयारी कर रहा था। यह भी याद रखा जाए कि चीनियों पर हमला उस वक्त हुआ था जब वहां इंग्लैंड की क्रिकेट टीम टेस्ट मैच खेल रही है।
जाहिर है, आतंकी हमले के कारण पाकिस्तान का यह दावा तार-तार हो गया है कि वहां हालात सामान्य हैं। बहरहाल, भारत को अपने स्टैंड पर कायम रहना चाहिए। भारत को अपनी क्रिकेट टीम किसी भी सूरत में पाकिस्तान नहीं भेजनी चाहिए।
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