RK Sinha, Founder SIS, Former member of Rajya Sabha, at his residence, for IT Hindi Shoot. Phorograph By - Hardik Chhabra.
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अभी एक महीना भी नहीं हुआ और देश की राजधानी में हुए एक दर्दनाक अग्निकांड को भुला दिया गया है। पिछली 25 मई को जिस दिन दिल्ली में लोकसभा चुनावों के लिए वोटिंग हुई थी उसी दिन ईस्ट दिल्ली के विवेक विहार के एक निजी अस्पताल में भीषण आग लगने के कारण सात नवजात शिशुओं की मौत हो गई थी। जैसा कि हमारे यहां होता आ रहा है- घटना के बाद नेताओं की तरफ से अफसोस जता दिया गयास्थानीय प्रशासन ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का वादा कर दिया और कुछ गिरफ्तारियां भी हो गईं। यह सब कुछ दिनों तक चला और फिर दुनिया अपनी रफ्तार से चलने लगी और फिर एक तरह से अगले हादसे तक के लिए सब कुछ सामान्य हो गया। हमारी नींद तो किसी हादसे के बाद ही खुलती है और पुन: हम कुंभकर्णी निद्रा में चले जाते हैं ।

क्या हम इतने भयावह हादसे को लेकर पूरी तरह से संवेदनहीन हो चुके हैंलगता तो यही है। अगर इस तरह की स्थिति न होती तो इतनी जल्दी विवेक विहार में हुई त्रासदी पर अफसोस जताना बंद न हो जाता। यह तो मानना ही होगा कि भारत में स्वास्थ्य सेवाएं तेजी से निजी हाथों में चली जा रही हैं। मतलब प्राइवेट अस्पताल खुलते ही चले जा रहे हैं। तंग गलियों में चलने वाले गंदे क्लीनिकों से लेकर पॉश कोरपोरेट इलाकों में अस्पतालें चल रहे हैं। ये ही देश में 70 फीसद तक जनता को स्वास्थ्य  सुविधाएं दे रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार अब 25-30 करोड़ लोगों को ही स्वास्थ्य सेवाएं दे रही है। जब इतने बड़े स्तर पर प्राइवेट क्षेत्र हेल्थ सेक्टर को देखने लगा हैतो क्या इस पर किसी का नियत्रंण हैविवेक विहार की घटना साबित करती है कि इन प्राइवेट अस्पतालों पर किसी को कोई खास नियंत्रण नहीं हो रहा है। जिस दो मंजिला बेबी डे केयर सेंटर में आग लगी वहां नवजात शिशुओं का इलाज और देखरेख एक आयुर्वेदिक डॉक्टर करता था। अब   आप समझ सकते हैं कि हमारे यहां स्वास्थ्य सेवाओं की हालत कितनी पतली हो चुकी है। आग लगने के कारण सेंटर में भर्ती 12 नवजात में से सात ने दम तोड़ा। इसमें से कुछ झुलस गए थे तो कुछ नवजात ऑक्सीजन सपोर्ट हटने से जीवित नहीं रह पाए। 

मुझे ईस्ट दिल्ली के सोशल वर्कर जितेन्द्र सिंह शंटी बता रहे थे कि सेंटर में ऑक्सीजन सिलेंडर फटने से आग ने फौरन विकराल रूप ले लिया। सिलेंडर केयर सेंटर से दूर दूर जाकर गिरे। स्थानीय लोगों को लगा कि भूकंप आ गया है। शंटी और उनके साथियों ने आग बुझाने और घायलों को अस्पताल पहुंचाने में दिन-रात एक कर दी थी।

 हमारे यहां अस्पतालों में आग लगने के कारण लगातार बड़े हादसे होते रहे हैं। 2011 में कोलकाता के एएमआरआई अस्पताल में आग लगने से 90 लोगों की मौत हो गई थी। अप्रैल 2021 मेंकोविड-19 महामारी के चरम परमुंबई के पास विजय वल्लभ अस्पताल में आग लगने से 13 मरीजों की मौत हो गई थी। उसी वर्षमुंबई में फिर से सनराइज अस्पताल में आग लगने से 11 मरीजों की मौत हो गई। 2022 मेंजबलपुर के न्यू लाइफ मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में आग लगने से आठ मरीजों की मौत हो गई और 2016 में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज में आग लगने से 50 मरीजों की मौत हो गई। अपना इलाज कराने आए रोगियों का जलकर मरने के मामलों को सुनकर पत्थर दिल इंसान का भी दिल दहल जाता है। सवाल यह है कि निजी अस्पतालों में होने वाले हादसों पर कब लगाम लगेगीदिल्ली के अधिकांश निजी अस्पताल गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज और बिस्तर उपलब्ध कराने में भी विफल रहते हैंजबकि यह उनके निर्माण के समय दी गई जमीन के बदले में गरीब मरीजों का मुफ्त इलाज कानूनी आवश्यकता है। अगर देश की राजधानी में ऐसा हो सकता हैतो हम छोटे शहरों और कस्बों की स्थिति की केवल कल्पना ही कर सकते हैं। अस्पतालों में आग लगने का सामान्य कारण आम तौर पर खराब इमारत संरचनाजिसमें भागने का कोई रास्ता नहीं होताआसपास के क्षेत्र में ज्वलनशील तरल पदार्थ और गैसों की उपस्थिति और अनुचित भंडारण औरसबसे महत्वपूर्णअग्नि सुरक्षा मानक संचालन प्रोटोकॉल की कमी है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि आग लगने पर अग्नि शमन गाड़ियाँ तक इन इमारतों तक पहुँच तक नहीं सकते 

  अगर बात अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं स हटकर करें तो क्या कोई 3 दिसम्बर,1995 को मंडी डबवाली (हरियाणा) और 13 जून,1997 को राजधानी के उपहार सिनेमाघर में लगी आग की घटनाओं को भूल सकता है? मंडी डबवाली में डीएवी स्कूल में चल रहे सालाना आयोजन में 360 अभागे लोग, जिनमें स्कूली बच्चे अधिक थे, स्वाह हो गए थे। हालांकि, कुछ लोगों का तो यहां तक दावा है कि मृतकों की तादाद साढ़े पांच सौ से भी अधिक थी। उधर उपहार में लगी भयंकर आग के चलते 59 जिंदगियां आग की तेज लपटों की भेंट चढ़ गईं थीं। जैसा कि हमारे देश में होता चला आ रहा है और न जाने कब तक होगा, हादसों के बाद जांच के आदेश दे दिए जाते हैं। हालांकि, जांच रिपोर्ट आने के बाद उसे कोई देखता भी नहीं है। उसकी सिफारिशें धूल चाटती रहती हैं। हादसों में शिकार हुए मृतकों के परिजनों और घायलों को कुछ मुआवजा दे दिया जाता है । 

इस बीचपिछले लगभग ढाई दशकों से बंद उपहार सिनेमा परिसर को फिर से खोलने का पटियाला हाउस कोर्ट आदेश दिया है। उपहार में जो कुछ हुआ थाउसके बाद बहुत सारे दिल्ली वाले सिनेमा घरों से दूर हो गए थे। उस भयानक हादसे से सारा देश दहल गया था। उस मनहूस शुक्रवार को बॉर्डर फिल्म देखने आए करीब पांच दर्जन लोग दम घुटने या जलने के कारण मारे गए थे। तब से उपहार बंद था। पिछले कुछ समय पहले मुझे उसके अंदर का डरावना नजारा देखने का मौका मिला था। वहां पर जली सीटें,राख के ढेरचिप्स के पैकेटपेप्सी की बोतलें यहां-वहां पड़ी थीं। यह सब उस दिन की यादें ताजा करवा रही थे जब इधर मौत के आगे इंसान बेबस था। उस शाम बेसमेट में लगे ट्रांसफार्मर में अचानक से लगी आग की लपटें और धुआं काल बन कर आए थे।  इधर हाल के दिनों में देश भर से आग लगने के मामले सामने आ रहे हैं। इनमें मासूम जान गंवा रहे हैं। क्यों संबंधित सरकारी महकमे देखते नहीं और सख्ती नहीं बरतते ताकि आग लगने के हादसे होने थम जाएं ?

(लेखक  वरिष्ठ संपादकस्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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