गणेश दत्त पाठक (वरिष्ठ स्तंभकार)
कई अवसरों पर विचार गोष्ठियों और अन्य सर्वेक्षणों में यह बात सामने आती रही है कि आज के एकल परिवार और डिजिटल तकनीक के दौर में बच्चों और युवाओं की नेतृत्व क्षमता और निर्णय लेने की काबिलियत में कमी आती जा रही हैं। हाल ही में मीडिया रिपोर्ट्स में यह बात सामने आई है कि राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद ने बिहार में एक सर्वेक्षण के दौरान पाया है कि सूबे में युवाओं की नेतृत्व क्षमता और निर्णयन कौशल में कमी देखी जा रही है। यह तथ्य बेहद चिंतनीय है। राष्ट्र के उज्जवल भविष्य के संदर्भ में यह तथ्य बेहद नकारात्मक है। इस मसले पर व्यापक विचार मंथन की आवश्यकता है। युवाओं की उच्च कोटि की नेतृत्व क्षमता और निर्णयन कौशल के आधार पर ही भविष्य के सुनहरे सपनों को संजोया जा सकता है। युवाओं में नेतृत्व क्षमता और निर्णयन कौशल को बढ़ाने के लिए आवश्यक उपायों को अमलीजामा पहनाने की आवश्यकता है।
हालांकि आम तौर पर हम समाज में देखते हैं कि कई युवा क्या करें, क्या न करें के उलझन से ग्रस्त दिखाई देते हैं। अधिकांश युवाओं के मन में उथल पुथल चलती दिखाई देती है। बच्चे और युवा अक्सर अपने माता पिता और अभिभावकों की तरफ हर छोटे बड़े निर्णय के लिए देखते दिखाई देते हैं। करियर संबंधी निर्णय हो या अन्य निर्णय युवा अपने पसंद के आधार पर निर्णय लेने से बचते दिखाई देते हैं। ये सब बातें हम अपने आस पास भी देखते रहते हैं लेकिन इसका खास मतलब यही होता है कि हमारे युवा अपने निर्णयों को नहीं ले पा रहे हैं और यह एक बेहद नकारात्मक तथ्य है।
युवाओं में निर्णयन क्षमता और नेतृत्व कौशल में कमी आने के कई कारण हो सकते हैं। सबसे प्रमुख कारण यह माना जा सकता है कि हमारे समाज में एकल परिवारों का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। एकल परिवार में अक्सर माता पिता अपने बच्चों को अत्यधिक सुरक्षा प्रदान करते हैं उन्हें स्वतंत्र निर्णय लेने और नेतृत्व की भूमिका निभाने का अवसर नहीं मिलता है। एकल परिवार में रहने वाले बच्चों और युवाओं का सामाजिक संपर्क भी बेहद सीमित रहता है। जिससे उन्हें एक दूसरे से बातचीत करने और नेतृत्व कौशल विकसित करने का अवसर ही नहीं मिल पाता है। हालांकि यह भी सत्य है कि आज के जटिल प्रतिस्पर्धा के दौर में पढ़ाई प्राथमिक लक्ष्य रहता है जो स्वाभाविक भी है।
एकल परिवार में रहनेवाले युवाओं को अक्सर अपने माता पिता पर निर्भर रहने की आदत सी हो जाती है। इससे वे न तो स्वतंत्र भूमिका ही निभा पाते हैं और न ही स्वतंत्र निर्णय ले पाते हैं। संयुक्त परिवारों में कई स्तरों पर जिम्मेदारियों के निर्वहन की स्थितियां उत्पन्न होती रहती है जिसका एकल परिवारों में अभाव देखा जाता रहता है। साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि आज के डिजिटल क्रांति के दौर में बच्चों और युवाओं द्वारा ज्यादा समय मोबाइल और अन्य डिजिटल उपकरणों पर ही बीत रहा है जिससे उनका सामाजिक संपर्क और भी कम होता जा रहा है। मोबाइल आदि के कारण पारिवारिक स्तर पर संवाद में भारी कमी देखी जा रही है। कई बच्चे तो अब सलाह के लिए माता, पिता, अभिभावक, शिक्षक की जगह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का सहारा लेते दिखाई दे रहे हैं। यह तथ्य भविष्य के लिए और भी नकारात्मक है। हमारी शिक्षा नीति की विसंगतता भी रही है कि हमने बच्चों और युवाओं के रचनात्मक कौशल और नेतृत्व क्षमता को बढ़ाने के लिए सार्थक प्रयास नहीं किए। हालांकि नई शिक्षा नीति 2020 में इस संदर्भ में कुछ सार्थक प्रयास किए हैं लेकिन अभी जमीनी आधार पर काफी कुछ किया जाना है। संचार कौशल पर ध्यान नहीं देने के कारण भी नेतृत्व क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ता है।
बच्चों और युवाओं में नेतृत्व कौशल और निर्णयन क्षमता में कमी के कई नकारात्मक परिणाम होते हैं। मसलन समस्याओं, चुनौतियों के उत्पन्न होने पर युवा अपना आत्मविश्वास भी खोने लगते हैं। किसी भी चुनौती के सामने आने पर युवा हताश होने लगते हैं। अभी जबकि तकनीकी क्रांति के कारण सामाजिक बदलाव बेहद तीव्र गति से हो रहे हैं युवाओं में नेतृत्व क्षमता और निर्णयन कौशल का अभाव एक बड़ी चुनौती बन जाया करता है। सामुदायिक , आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय विकास के संदर्भ में सशक्त युवा शक्ति एक अनिवार्य आवश्यकता होती है। समाज के लिए युवाओं में नेतृत्व क्षमता का विशेष महत्व होता है। क्योंकि यह नई पीढ़ी के नेताओं को तैयार करने, सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने और समुदाय के विकास में मदद करता है।
समय की आवश्यकता इस बात की है कि हमारे बच्चे और युवा नेतृत्व क्षमता और निर्णयन कौशल से युक्त हो क्योंकि आज का दौर नवाचार, नवोन्मेष, उद्यमिता का है। इसके लिए बहुस्तरीय और बहुआयामी प्रयासों में सामंजस्य और समन्वय की आवश्यकता है ।
सबसे पहला प्रयास एकल परिवार के स्तर पर करना होगा। एकल परिवार के माता पिता को अपने बच्चों को इतनी स्वतंत्रता प्रदान करनी चाहिए कि वे छोटे छोटे निर्णयों को ले सके। सही निर्णयों पर उनका उत्साहवर्धन एक सुखद परिणाम देगा। उनके सामाजिक संपर्क बढ़ाने की व्यवस्थाएं करनी चाहिए ताकि उनका संचार और नेतृत्व कौशल विकसित हो सके। हालांकि अभिभावकगण को बच्चों के पियर ग्रुप पर सतर्क नजर रखनी चाहिए ताकि वे गलत संगत में न फंस जाए। आवश्यकता इस बात की भी है कि बच्चों और युवाओं को सीमित स्तर पर ही सही, जिम्मेदारियों को उठाने के लिए प्रेरित करना चाहिए ताकि वे नेतृत्व की भूमिकाएं निभा सकें और निर्णय प्रक्रिया में सहभागी बन सकें। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा। हमारे स्कूलों, कॉलेजों और अन्य शैक्षणिक संस्थाओं में व्यक्तित्व विकास कार्यशाला का नियमित स्तर पर आयोजन किया जाना चाहिए।
बच्चों को खेल आदि गतिविधियों में भाग लेने के लिए के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। बच्चों और युवाओं को डिजिटल डिटॉक्स से जुड़ी गतिविधियों की तरफ भी आकर्षित करना चाहिए। इससे वे मोबाइल और अन्य डिजिटल गैजेट्स से दूर रहने के लिए प्रेरित होंगे। चित्रकला, पेंटिंग, संगीत आदि के माध्यम से युवा डिजिटल डिटॉक्स की तरफ मुड़ेंगे। बच्चों और युवाओं की नेतृत्व क्षमता से संबंधित उपलब्धियों को हर स्तर पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। नेतृत्व क्षमता के विकास में संचार कौशल के विकास की बड़ी भूमिका होती हैं। समस्या समाधान कौशल का विकास, चुनौतियों से निबटने की आदत युवाओं के निर्णयन क्षमता में बढ़ोतरी कर सकती है। युवाओं में निर्णयन क्षमता और नेतृत्व कौशल में बढ़ोतरी के प्रयास परिवार, शैक्षणिक संस्थाओं, सामुदायिक संस्थाओं, सामाजिक, सांस्कृतिक संगठनों के स्तर पर होने चाहिए।
बच्चों में नेतृत्व क्षमता और निर्णयन कौशल में बढ़ोतरी के लिए स्वबोध के जागरण के प्रयास भी नितांत आवश्यक है ताकि वे अपने स्वयं की संभावनाओं का आत्ममूल्यांकन कर सकें। युवाओं को आत्म प्रतिबिंब के लिए प्रोत्साहित करने पर वे अपने मजबूत और कमजोर पक्षों का आसानी से मूल्यांकन कर सकेंगे। पाठ्यक्रम में निर्णयन क्षमता से संबंधित टॉपिक्स को शामिल करना चाहिए। प्रोजेक्ट आधारित शिक्षा के माध्यम से युवाओं को वास्तविक दुनिया की समस्याओं के समाधान करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।युवाओं के लिए मेंटरशिप कार्यक्रमों के माध्यम से उन्हें अनुभवी नेतृत्वकर्ताओं द्वारा मार्गदर्शन और सहयोग प्रदान किया जा सकता है। युवाओं को जोखिम उठाने की प्रेरणा देना भी समय की बड़ी आवश्यकता बनती जा रही है। युवाओं को प्रतिक्रिया और मूल्यांकन के अवसर प्रदान करने से भी उनके निर्णयन क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।
बच्चों और युवाओं में नेतृत्व कौशल और निर्णयन क्षमता में सुधार ही नई पीढ़ी के नेताओं को तैयार करने, सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने और सामुदायिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक विकास में मदद कर सकता है। इसलिए जरूरी है कि इस मसले की गंभीरता को संजीदगी और संवेदनशीलता के साथ समझा जाए और आवश्यक उपाय तत्काल प्रारंभ किया जाए। इसके लिए परिवार, प्रशासन, समाज के स्तर पर प्रयासों में समन्वय और सामंजस्य की आवश्यकता होगी। युवाओं में निर्णयन क्षमता में बढ़ोतरी के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण, आत्म विकास, संचार, सहयोग, अनुभव, अभ्यास के तथ्यों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। प्रेरणा, प्रोत्साहन, उत्साहवर्धन से इस संदर्भ में सुखद परिणाम हासिल किए जा सकते हैं।
घट रही है युवाओं में निर्णय लेने की क्षमता
