दरभंगा, संवाददाता
पृथ्वी और पर्यावरण को संविधान की प्रस्तावना में स्थान दिलाने की मांग को लेकर दरभंगा में एक अनोखी यात्रा निकाली गई। प्रसिद्ध पृथ्वी अधिकार कार्यकर्ता और लेखक डॉ. जावेद अब्दुल्ला ने 1.9 किलोमीटर की दूरी लोटते और रेंगते हुए तय की।
डॉ. अब्दुल्लाह ने यह यात्रा अपराधी के वस्त्र पहनकर की। उनका कहना था कि आज की मानव जाति पृथ्वी की सबसे बड़ी अपराधी बन गई है। यात्रा की शुरुआत होली रोजरी चर्च, दोनार से हुई। यहां कैथोलिक चर्च के फादर रॉय, ब्रदर नोबेल और अन्य सिस्टर की मौजूदगी में पोप फ्रांसिस की स्मृति में दो मिनट का मौन रख कर यात्रा शुरू की गई। यात्रा कर्पूरी चौक पर समाप्त हुई।
डॉ. अब्दुल्ला ने भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और संसद से अपील की कि वे इस विषय पर संसद और वैश्विक मंचों पर गंभीर विमर्श शुरू करें। उन्होंने सीओपी 30 सम्मेलन में इस मुद्दे को उठाने की मांग की। यात्रा संचालक बृजेश सक्सेना और डॉ. अमर कुमार ने कहा कि यह यात्रा घायल पृथ्वी की चीख है। उन्होंने सीओपी 30 में इस मुद्दे को उठाना समय की मांग बताई।
यात्रा के अंत में छह प्रमुख वैश्विक मांगें रखी गईं। पहली, हर देश के संविधान की प्रस्तावना में पृथ्वी और पर्यावरण संरक्षण को मूल संवैधानिक मूल्य बनाया जाए। दूसरी, हर साल 22 अप्रैल को पृथ्वी ध्वज का संवैधानिक रूप से ध्वजारोहण हो। तीसरी, परमाणु, रासायनिक और जैविक हथियारों पर पूर्ण प्रतिबंध लगे। चौथी, विश्व नागरिकता की अवधारणा लागू हो। पांचवीं, वैश्विक लोकतंत्र की स्थापना हो। छठी, संयुक्त राष्ट्र में लोकतांत्रिक सुधार हो, वीटो पावर समाप्त हो, विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को प्रतिनिधित्व मिले और महासचिव का चयन जनता के वोट से हो।
इस अवसर पर प्रो. मंज़र सुलैमान, अजित कुमार मिश्र, हसनैन, मुहम्मद शमशेर, इंद्रजीत यादव, संतोष महतो, त्रिभुवन राय, नंद किशोर राय, दिलीप मंडल, अंश कुमार कश्यप, आशीष कुमार कश्यप और डॉ. बी. एस. राय मौजूद थे।
पृथ्वी-पर्यावरण को संविधान की प्रस्तावना में स्थान दिलाने की मांग सोशल एक्टिविस्ट डॉ. जावेद ने रेंगते हुए तय की 1.9 किलोमीटर की दूरी, 6 प्रमुख वैश्विक मांगें रखी
