पदमसंभव श्रीवास्तव ( लेखक और टिप्पणीकार )
धीरेंद्र ब्रह्मचारी नाम के साथ पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के संबंध में कई बार ब्लिट्ज’ और ‘करंट ‘ साप्ताहिक समाचार पत्रिकाओं और प्रयागराज से प्रकाशित पत्रिका ‘ माया ‘ और प्रोब इंडिया ‘ समेत अन्य कई खोजबीन आधारित रिपोर्टों के लिए चिन्हित समाचार पत्रिकाओं में कौतूहल बना रहा था। रविवार साप्ताहिक पत्रिका में संपादक उदयन शर्मा द्वारा एक विशेष आलेख के प्रकाशन के बाद आम जनों को अर्पणा आश्रम की गतिविधियों से परिचित होने का अवसर मिला। पॉश फ्रेंड्स कॉलोनी में ए-50 बंगला, जो अब शायद ही किसी का ध्यान आकर्षित करता है क्योंकि घर के दरवाजे अक्सर बंद रहते हैं, जब धीरेन्द्र ब्रह्मचारी वहां रहते थे तो वहां चहल-पहल रहती थी। विभिन्न क्षेत्रों के प्रभावशाली लोग देश के संभवतः प्रथम सेलिब्रिटी योग शिक्षक के साथ कुछ मिनट बिताने के लिए उनके घर आते थे।
स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी बिहार के मधुबनी जिले से थे, और जयप्रकाश नारायण ने जवाहर लाल नेहरू से उन्हें हठयोगी के रूप में मिलवाया था। नेहरू ने उन्हें तीन मूर्ति में अपने परिवार से मिलवाया। एमओ मथाई काफी नाराज हुए। सन् 1958 में धीरेंद्र दिल्ली पहुंचे, उनके पास पैसे नहीं थे, क्योंकि उन्हें अपनी महिला योग शिष्याओं के साथ यौन संबंध बनाने के कारण जम्मू से निकाल दिया गया था। एमओ मथाई के अनुसार, जल्द ही इंदिरा ब्रह्मचारी के प्रभाव में आ गईं और नेहरू ने उनसे योग सीखना शुरू कर दिया।
इंदिरा के धीरेंद्र ब्रह्मचारी के प्रति आकर्षित होने की सच्चाई उनके द्वारा अपनी मित्र डोरोथी नॉर्मन को लिखे गए पत्र में उनके ही शब्दों में पाई जा सकती है।’बेहद खूबसूरत’ और ‘शानदार शरीर’ के रूप में रेखांकित करते हुए उनकी जीवनीकार कैथरीन फ्रैंक ने उनके प्रेम संबंध के बारे में संकेत दिया है।
कैथरीन फ्रैंक लिखती हैं – ‘ब्रह्मचारी एकमात्र व्यक्ति थे जिन्होंने इंदिरा को योग शिक्षा देते समय उनके कमरे में अकेले देखा था, और वह एकमात्र पुरुष थे जिनके साथ इस अवधि के दौरान इंदिरा का संबंध हो सकता था’।
ब्रह्मचारी ने दिल्ली में योग के प्रचार के लिए विश्वायतन योग आश्रम और ट्रस्ट की स्थापना की, जिसका उद्घाटन नेहरू ने किया। आश्रम को शिक्षा मंत्रालय और आवास मंत्रालय द्वारा अनुदान दिया गया और जंतर मंतर रोड पर एक सरकारी बंगला आवंटित किया गया। इंदिरा के प्रधानमंत्री बनने के बाद, खास तौर पर 1970 के दशक में, धीरेंद्र ब्रह्मचारी को इंदिरा के घर और खाने की मेज़ पर नियमित रूप से जाने की अनुमति मिल गई। इंदिरा पर उसका प्रभाव और संजय गांधी के साथ उसकी मिलीभगत कई गुना बढ़ गई। यहीं से गांधी परिवार ने उसे साम्राज्य खड़ा करने और उससे लाभ उठाने में मदद की। 1967 से, जब इंदिरा प्रधानमंत्री थीं, ब्रह्मचारी के ट्रस्ट को 42 लाख रुपए मिले। 1973 में अपर्णा आश्रम और ट्रस्ट बनाने के लिए उन्हें दिल्ली और हरियाणा में बेहतरीन ज़मीनें दी गईं।जम्मू-कश्मीर के उधमपुर के मंतलाई में ज़मीन का आवंटन होने के बाद ही स्वर्ग रचने का स्वप्न पूरा करने के लिए उन्होंने एक आलीशान रिसॉर्ट-सह-योग केंद्र बनाया।
1976 में आपातकाल के दौरान धीरेंद्र ने अमेरिका से 4-सीटर मौल एम-5 विमान 40 हजार डॉलर में खरीदा और यह कहकर कस्टम ड्यूटी माफ करवा ली कि यह तोहफा है। इंदिरा की नजदीकी ने इसमें मदद की। इस विमान का इस्तेमाल लुटियंस और उससे आगे के इलाकों के बड़े लोगों, कुलीन वर्ग और गणमान्य लोगों को जम्मू-कश्मीर के मंतलाई रिसॉर्ट तक लाने-ले जाने के लिए किया जाता था। उन्होंने भारतीय वायुसेना की आपत्तियों के बावजूद रक्षा मंत्रालय से मंतलाई में हवाई पट्टी बनवाने को कहा क्योंकि यह संवेदनशील रडार साइट और उधमपुर हवाई अड्डे के करीब था। रक्षा मंत्री बंसीलाल के संयुक्त सचिव एसके मिश्रा के हस्तक्षेप के बाद आपत्तियों को दरकिनार कर दिया गया।
ब्रह्मचारी के शानदार विमान द्वारा की गई 213 उड़ानों में से 73 में संजय गांधी और 19 में राजीव गांधी सवार थे। गांधी परिवार ने भारत और इसके संसाधनों को अपनी जागीर समझा और सामंतों और महारानियों के बच्चों की तरह लूट का अपना हिस्सा मौज-मस्ती में गटक लिया। ब्रह्मचारी से जुड़े भ्रष्टाचारों से निपटने वाले शाह आयोग ने मंतलाई रिसॉर्ट का विस्तृत ब्यौरा देते हुए लंबे-लंबे पन्ने लिखे हैं। जरा देखिए कि कर अधिकारियों को छापे में क्या मिला। यह कोई योग केंद्र नहीं था…और गांधी परिवार के साथ अन्य विदेशी मेहमान भी वहां गए थे। आश्चर्य की बात यह है कि धीरेन्द्र को जम्मू में एक बंदूक फैक्ट्री भी मिली थी और बाद में उस पर इसके लिए आरोप भी लगाया गया था, लेकिन ‘यो नो इट वेल’ के कारण उसे छोड़ दिया गया था।
धीरेन्द्र ब्रह्मचारी एक तांत्रिक थे और इंदिरा के सभी जीवनीकार इस बात से सहमत हैं कि वह इंदिरा को बताया करते थे कि गांधी परिवार के कई दुश्मन तांत्रिक अनुष्ठानों के माध्यम से उनके खिलाफ साजिश रच रहे हैं और उनके पास इसके लिए उपाय भी हैं। और इंदिरा उनकी बात मानती थीं। ब्रह्मचारी को 1976-83 के बीच दूरदर्शन पर अपने सहायक बाल मुकुंद के साथ योगा एपिसोड मिले और वे भारत में एक प्रसिद्ध व्यक्ति बन गए। 1984 में इंदिरा की मृत्यु के बाद, धीरेंद्र ने अपना पक्ष खो दिया। जब आईजी को लाया गया तो वे शहनाज़ हुसैन (गांधी की ब्यूटीशियन) के साथ एम्स में मौजूद थे। दिल्ली की सड़कों पर अपनी नीली रंग की टोयोटा कार चलाने का उन्हें शौक था, 9 जून 1994 को जम्मू में एक विमान दुर्घटना में मारे गए। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की 1994 में उधमपुर के मंतलाई में उड़ान भरने के कुछ देर बाद एम-5 विमान दुर्घटना में ध्वस्त होने के बाद मृत्यु हो गई थी। उस समय तक उन्होंने एक साम्राज्य स्थापित कर लिया था।
इंदिरा के निधन के साथ ही उनके सितारे फीके पड़ने लगे और उन्होंने खुद को अपने घर तक ही सीमित कर लिया, शायद ही कभी बाहर निकलते थे। दूरदर्शन पर उनके कार्यक्रम ने उन्हें राष्ट्रीय पहचान दिलाई थी, जिसे राजीव गांधी ने बंद कर दिया था। उनके शिष्य बाल मुकुंद भी अक्सर प्रधानमंत्री आवास, 1, सफदरजंग रोड पर आते थे। अब सरकारी स्कूल में योग शिक्षक के रूप में अपनी नौकरी से सेवानिवृत्त हो चुके मुकुंद महिपालपुर में रहते हैं। हरियाणा सरकार ने हाल ही में गुड़गांव में अपर्णा आश्रम को अपने नियंत्रण में लेने के लिए कानून बनाया है।
कल्पना कीजिए, नेहरू-गांधी परिवार के दिग्गजों के अधीन भारत में राजनीति और लोकतंत्र की क्या स्थिति थी। उन्होंने भारत को अपनी जागीर समझकर उसका मनचाहा शोषण किया। कांग्रेस-प्रणाली का सामंती लोकतंत्र हमारे संविधान में निहित भारतीय गणतंत्र के आदर्शों के विपरीत है।
भारत का एक ‘रासपुतिन’ धीरेन्द्र ब्रह्मचारी
