Dr Rajendra Prasad Hazaribagh Jail Connection: 7 अनकही बातें जो उनकी आत्मकथा में दर्ज हैं

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हजारीबाग सेंट्रल जेल में बिताए गए डॉ. राजेंद्र प्रसाद के संघर्षपूर्ण दिन
Highlights
  • • आत्मकथा के पृष्ठ 477–478 में हजारीबाग का भावुक विवरण • तीन बार हजारीबाग जेल में कैद • चरखा चलाते हुए निवार और कपड़े की बुनाई • ‘कैदी’, ‘बंदी’ और ‘कारागार’ पत्रिकाओं की शुरुआत • स्वामी सहजानंद से गीता न पढ़ सकने का आजीवन अफसोस • रामगढ़ कांग्रेस और मुंगेर भूकंप राहत में महत्वपूर्ण भूमिका • स्वतंत्रता के बाद भी हजारीबाग से गहरा संबंध

भारत के पहले राष्ट्रपति और देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आत्मकथा के पृष्ठ संख्या 477 और 478 में हजारीबाग को लेकर उनका गहरा भावनात्मक जुड़ाव पढ़ने को मिलता है। Dr Rajendra Prasad Hazaribagh Jail Connection सिर्फ एक ऐतिहासिक प्रसंग नहीं, बल्कि एक ऐसा अध्याय है जिसने स्वतंत्रता संग्राम की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज उनकी जयंती पर इस विशिष्ट प्रसंग की चर्चा करना अत्यंत समीचीन प्रतीत होता है।

Dr Rajendra Prasad Hazaribagh Jail Connection – आत्मकथा में दर्ज भावनात्मक स्वीकारोक्ति

डॉ. प्रसाद ने अपनी आत्मकथा में लिखा—
“पिछले 20–22 वर्षों में जितना मैं छोटानागपुर में रहा हूँ, उतना किसी दूसरे स्थान पर नहीं, क्योंकि जेल जीवन बराबर हजारीबाग में ही काटना पड़ा है।”

यह टिप्पणी उन्होंने अपने हजारीबाग निवासी एक मित्र की शिकायत के जवाब में मजाक में की थी, किंतु इसके भीतर छिपी सच्चाई यह थी कि हजारीबाग उनके मन-मस्तिष्क में रचा-बसा था।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हजारीबाग राजनीतिक तीर्थ में बदल चुका था, और वहां की सेंट्रल जेल राष्ट्रीय नेताओं का केंद्र।

Dr Rajendra Prasad Hazaribagh Jail Connection – तीन बार हुई कैद की कथा

Dr Rajendra Prasad Hazaribagh Jail Connection: 7 अनकही बातें जो उनकी आत्मकथा में दर्ज हैं 1

उनकी कैद की तिथियाँ दस्तावेजों में इस प्रकार दर्ज हैं—
• पहली बार: 12-01-1932 से 24-06-1932
• दूसरी बार: 22-01-1933 से 07-09-1933
• तीसरी बार: 28-01-1944 से 01-12-1944

हजारीबाग जेल में रहते हुए उन्होंने राजनीतिक, साहित्यिक और सामाजिक स्तर पर अपार कार्य किया। जेल में बंदी रहते हुए भी वे निष्क्रिय नहीं रहे। उन्होंने समय का सदुपयोग कर चरखा चलाया, सूत काता और 200 गज निवार और 14–15 गज कपड़े की बुनाई की — यह सब “आपदा को अवसर” में बदलने जैसा था।

Dr Rajendra Prasad Hazaribagh Jail Connection – चरखा, अध्ययन और रचनात्मकता की यात्रा

जेल में उनके साथ डॉ. श्रीकृष्ण सिंह, रामदयालु सिंह, विपिन बाबू, स्वामी भवानी दयाल जैसे क्रांतिकारी बंद थे।
यहां उनके दैनिक जीवन का बड़ा हिस्सा—
• धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन
• चरखा चलाने
• निवार बुनने
• साथी बंदियों को प्रेरित करने
में व्यतीत होता था।

अपनी आत्मकथा में वे लिखते हैं कि उन्हें पहली बार शारीरिक श्रम की वास्तविक महत्ता का आभास हजारीबाग की जेल में ही हुआ।

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Dr Rajendra Prasad Hazaribagh Jail Connection – ‘कैदी’, ‘बंदी’ और ‘कारागार’ पत्रिकाओं का प्रकाशन

उनकी जेल अवधि में दो हस्तलिखित पत्रिकाएँ—
‘कैदी’ और ‘बंदी’ — निकलीं।
इन पत्रिकाओं ने अंग्रेज सरकार की नींद उड़ा दी थी, जिसके बाद बंदियों ने एक और मासिक पत्रिका ‘कारागार’ शुरू की।

इसका तर्क था—
“कैदी और बंदी तो आते-जाते रहते हैं, लेकिन कारागार स्थाई है।”

डॉ. प्रसाद ने इन पत्रिकाओं में लगातार अपनी रचनाएँ दीं और विचारों को जीवित रखा।
इनके मुख्य प्रबंधक थे—
स्वामी भवानी दयाल, रामवृक्ष बेनीपुरी, मथुरा प्रसाद सिंह, कुमार कालिका सिंह आदि।

H3: Dr Rajendra Prasad Hazaribagh Jail Connection – स्वामी सहजानंद से गीता न पढ़ पाने का आजीवन अफसोस

इस जेल यात्रा का एक भावुक पहलू यह रहा कि वे स्वामी सहजानंद सरस्वती से गीता सीखने की इच्छा पूरी नहीं कर सके। यह अफसोस उन्हें जीवनभर खलता रहा।

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Dr Rajendra Prasad Hazaribagh Jail Connection – राष्ट्रीय आंदोलन में हजारीबाग की निर्णायक भूमिका

हजारीबाग उस समय क्रांतिकारियों का गढ़ था।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद यहां से डेढ़ दर्जन से अधिक राजनीतिक यात्राओं पर निकले।
उन्होंने—
• 1934 के मुंगेर भूकंप के बाद यहीं से राहत कोष की शुरुआत की
• ब्रह्म समाज परिसर में सभा की
• रामगढ़ कांग्रेस के सूत्रधारों में अग्रणी भूमिका निभाई

उनके पसंदीदा साहित्य में शामिल था भुवनेश्वर दत्त शर्मा ‘व्याकुल’ का काव्य संग्रह “कलाम-ए-व्याकुल”।

स्वतंत्रता सेनानी त्रिवेणी प्रसाद से उनका आजीवन व्यक्तिगत संबंध रहा।

Dr Rajendra Prasad Hazaribagh Jail Connection – स्वतंत्रता के बाद भी नहीं टूटा संबंध

स्वतंत्रता के बाद भी उनका हजारीबाग से रिश्ता कभी कमजोर नहीं पड़ा।
1956 में उन्होंने सांसद रामनारायण सिंह को पत्र लिखकर पुस्तकें भेजीं।
1958 में उन्होंने चतरा सब-डिवीजन का दौरा किया और स्वतंत्रता सेनानियों से मिले।

आज हजारीबाग सेंट्रल जेल में बना “राजेंद्र स्मृति कक्ष” उनकी संघर्ष-यात्रा की यादें जीवित रखे हुए है।

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