Dr Rajendra Prasad Jayanti 2025: सादगी, विनम्रता और कर्मयोग का दुर्लभ उदाहरण—देशरत्न को समर्पित प्रेरणादायी संस्मरण

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देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद: सादगी और विनम्रता की जीवित प्रतिमा
Highlights
  • • देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद की सादगी और विनम्रता की दुर्लभ कहानियाँ • गांधी जी क्यों कहते थे कि वे राजेंद्र बाबू में खुद को देखते थे • राष्ट्रपति होते हुए भी 3 कमरों तक सीमित जीवन • इलाहाबाद की अद्वितीय घटना—कपड़े सुखाते हुए इंतजार • फिजूलखर्ची और भ्रष्टाचार पर उनका सख्त सिद्धांत • आज के नेताओं के लिए प्रेरणादायी संदेश

Dr Rajendra Prasad Jayanti 2025 के अवसर पर देशभर में आयोजन हो रहे हैं, लेकिन इस दिन का असली सार उस अद्भुत सादगी और विनम्रता के संदेश को याद करना है, जिसने देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत के इतिहास में सबसे विशिष्ट व्यक्तित्वों में शामिल किया। बचपन में सुनी दादाजी स्वर्गीय रामजी पाठक जी की कहानियाँ आज भी इस महान नेता के व्यक्तित्व को जीवंत कर देती हैं—विशेषकर उनकी सादगी, सहजता, सौम्यता और विनम्रता, जिसने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी गहराई से प्रभावित किया था।

Dr Rajendra Prasad Jayanti 2025: बचपन की यादों में सजी विनम्रता की अनगिनत मिसालें

Dr Rajendra Prasad Jayanti 2025: सादगी, विनम्रता और कर्मयोग का दुर्लभ उदाहरण—देशरत्न को समर्पित प्रेरणादायी संस्मरण 1

देशरत्न का जीवन जितना बड़ा था, उतना ही सरल भी। मेरे दादाजी, जो उनके करीबी सहयोगी थे, अक्सर बताते थे कि राष्ट्रपति भवन जैसे विशाल परिसर में भी वे केवल तीन कमरे इस्तेमाल करते थे—एक स्वयं के लिए, दूसरा अपनी धर्मपत्नी के लिए, और तीसरा अपने आराध्य श्रीकृष्ण की पूजा हेतु। बड़े-बड़े कमरों और आलीशान साज-सज्जा की जगह साधारण खादी की चादरें और कंबल उनके जीवन का हिस्सा थे।

रात के भोजन के दौरान वे स्वयं आकर खाने का स्वाद पूछते, ग्रामीण स्नेहियों से सहजता से बातें करते—यह विनम्रता आज के दौर में लगभग असंभव लगती है।

Dr Rajendra Prasad Jayanti 2025: गांधी जी भी थे राजेंद्र बाबू की सादगी के मुरीद

महात्मा गांधी ने कई बार लिखा है कि राजेंद्र बाबू में वे खुद को देखते थे। चंपारण सत्याग्रह के समय गांधी जी ने उनकी विनम्रता, विद्वता और कर्मठता को करीब से पहचाना। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान जो भी नेता उनके संपर्क में आया, वह उनके सौम्य व्यवहार से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था।

गांधी जी अक्सर कहा करते थे कि राजेंद्र बाबू की विनम्रता किसी को छोटा नहीं करती, बल्कि हर व्यक्ति को बड़ा होने का मौका देती है।

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Dr Rajendra Prasad Jayanti 2025: विनम्रता की अनोखी घटना—इलाहाबाद का अख़बार कार्यालय

दादाजी अक्सर एक घटना का ज़िक्र करते थे—एक बार इलाहाबाद के एक अखबार कार्यालय में राजेंद्र बाबू पहुंचे। चौकीदार को अपना नाम एक कागज पर लिखकर दिया और दरवाजे पर बूंदाबांदी के बीच अपने भीगे कपड़े अंगीठी पर सेंकने लगे।

जब संपादक ने नाम पढ़कर बाहर दौड़ लगाई और देर से मिलने के लिए माफी मांगी, तो राजेंद्र बाबू ने मुस्कुराते हुए कहा—
“कोई बात नहीं, आप काम में थे तो मेरा भी कपड़ा सूख गया और मेरा भी काम हो गया।”

यह तब की बात है जब उनका राजनीतिक कद बहुत ऊँचा हो चुका था—फिर भी चेहरे पर वही सरल मुस्कान।

Dr Rajendra Prasad Jayanti 2025: विचारों में मजबूती, प्रस्तुति में विनम्रता

सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन पर प्रधानमंत्री नेहरू से उनके मतभेद की बात जगजाहिर है—लेकिन उन्होंने अपनी बात को तर्कों के आधार पर अत्यंत विनम्रता से रखा।

राजेंद्र बाबू का दृष्टिकोण हमेशा
✔ धर्मनिरपेक्षता
✔ सांस्कृतिक सम्मान
✔ और समाज में सौहार्द
को मजबूत करने की दिशा में रहता था।

Dr Rajendra Prasad Jayanti 2025: फिजूलखर्ची पर उनका सख्त विरोध—आज के दौर के लिए बड़ी सीख

आज जब शादियों और आयोजनों में दिखावा और प्रतिस्पर्धा चरम पर है, राजेंद्र बाबू का सिद्धांत था—
“फिजूलखर्ची ही भ्रष्टाचार की जड़ है।”

उनका तर्क बेहद तार्किक था—
यदि अनावश्यक खर्च होगा तो उसकी भरपाई या तो
– किसी का शोषण करके
– या अनैतिक साधन अपनाकर
ही संभव होगी।

एक राष्ट्रपति होते हुए भी उन्होंने यह सिद्धांत अपने जीवन में पूरी कठोरता से पालन किया—आज यह समझ ही लोकतंत्र को मजबूत कर सकती है।

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Dr Rajendra Prasad Jayanti 2025: सादगी—वह ताकत, जिसने उन्हें इतिहास में ‘देशरत्न’ बनाया

चाहे स्वतंत्रता संग्राम हो, संविधान सभा की बहसें हों, राष्ट्रपति पद का दायित्व या पटना में उनका निवास—हर जगह उनकी एक ही पहचान रही:

सादा जीवन, उच्च विचार।

उनकी सादगी आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा है कि नेतृत्व का असली मूल्य बाहरी आडंबर में नहीं, बल्कि भीतर की ईमानदारी और विनम्रता में है।

Dr Rajendra Prasad Jayanti 2025: आज के राजनेताओं को भी सीखने की ज़रूरत

आज के राजनीतिक दौर में जहाँ भाषा की मर्यादा, विनम्रता और सादगी का अभाव दिखता है, राजेंद्र बाबू का जीवन हमें याद दिलाता है कि महानता पद में नहीं, बल्कि व्यक्तित्व में होती है।

काश! आज का राजनीतिक नेतृत्व भी देशरत्न के व्यक्तित्व का थोड़ा अंश अपना पाए—तो देश स्वतः ही संवर उठेगा।

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