गुमनाम क्रांतिकारियों को प्रकाश में लाने की मुहिम में दुर्गा भाभी नाटक बना मील का पत्थर

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नई दिल्ली, 11 जून। महान क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाली दुर्गा भाभी के बलिदान को सारा देश जानता है। वो कम से कम एक मौके पर भगत सिंह की पत्नी भी बनीं ताकि पुलिस को चमका दिया जा सके। उसी वीरांगना दुर्गा भाभी के जीवन पर पहली बार नाटक का मंचन रविवार को मंडी हाउस में स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्लाय के अभिमंच प्रेक्षागृह में किया गया। इसका नाम है ‘आजादी की दीवानी दुर्गा भाभी’। आज दूसरे दिन वीरांगना दुर्गा भाभी के जीवन पर आधारित नाटक का मंचन किया गया था। राजधानी के लोगों को गुमनाम क्रांतिकारियों में से एक दुर्गा भाभी के जीवन पर आधारित नाटक की प्रस्तुति XIII स्कूल ऑफ़ टैलेंट डेवलेपमेंट गाजियाबाद की प्रस्तुति देखने को मिली। दूसरे दिन के कार्यक्रम में पूर्व राज्यसभा सांसद श्री आर. के. सिन्हा एवं सुश्री अंजना, अवर सचिव, संस्कृति मंत्रालय सहित कई गणमान्य लोग भी नाटक की प्रस्तुति के दौरान उपस्थित रहे।
इस मौके पर भाजपा के पूर्व सांसद और कार्यक्रम के अध्यक्ष आर के सिन्हा ने कहा कि दुर्गा भाभी गुमनाम क्रांतिकारियों में से एक हैं जिन्होंने आजादी की लड़ाई में तन मन से भाग लिया। आजादी के दिनों में दुर्गा भाभी क्रांतिकारियों को अपने घर में पनाह देने के अलावे उनके खाने पीने के अलावा सभी आर्थिक जरूरतों को पूरा करती थी। श्री सिन्हा ने कहा कि इस नाटक के देशभर में 50 से अधिक मंचन होंगे। इससे पहले इसका मंचन पटना और गाजियाबाद में भी किया गया है। श्री सिन्हा ने बताया कि अनेकों क्रांतिकारियों समेत शहीद चंद्रशेखर आजाद को माउजर पिस्टल उपलब्ध कराने से लेकर शहीद भगत सिंह और राजगुरु को अपने तीन वर्षीय पुत्र के साथ लाहौर से निकालने का कार्य दुर्गा भाभी ने ही अंजाम तक पहुंचाया था।
भारत के गुमनाम क्रांतिकारियों को प्रकाश में लाने के अभियान में ‘आजादी की दीवानी दुर्गा भाभी’ नाटक मील का पत्थर साबित हुआ है। नाटक के निर्देशक एवं लेखक अक्षयवर नाथ श्रीवास्तव ने कहा कि 19 दिसंबर, 1928 को राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव ने सांडर्स नाम के एक अंग्रेज़ अफ़सर, जिसने लाला लाजपत राय पर ताबड़तोड़ लाठियां चलायी थीं, का वध कर दिया। अपने काम को पूर करने के बाद भगत सिंह अंग्रेज़ी साहब बनकर तथा राजगुरु उनके सेवक बनकर पुलिस को चकमा देकर लाहौर से निकल गए थे। उस समय भगत सिंह और राज गुरु के साथ दुर्गा भाभी भी थीं। वो भगत सिंह की पत्नी बनी हुईं थीं। दुर्गा भाभी का पूरा नाम दुर्गा देवी वोहरा था। वो मशहूर हुईं दुर्गा भाभी के रूप में। अफसोस कि दिल्ली में उनके नाम पर कोई सड़क या स्कूल नहीं है। यह शर्मनाक स्थिति है।
निर्देशक ने बताया कि वीरांगना दुर्गा भाभी के जीवन की उन्होंने साढ़े तीन साल तक गहन पड़ताल की। अनेक तथ्य जुटाये। उनके परिजनों से सम्पर्क किया। फिर इसे लिखा और इसका निर्देशन किया। उन्हें गर्व है कि आजादी की यह दीवानी वीरांगना दुर्गा भाभी अपने अंतिम समय तक गाजियाबाद में भी रहीं। अभी तक इस नाटक के 6-7 मंचन हो चुके है। नाटक का सह-लेखन एवं सह-निर्देशन अदित श्रीवास्तव ने किया। वस्त्र परिकल्पना रोजी श्रीवास्तव की थी। गीत कवि डॉ. चेतन आनंद ने लिखे। संगीत संकल्प श्रीवास्तव ने दिया। सेट व प्रकाश परिकल्पना राघव प्रकाश एवं दिव्यांग श्रीवास्तव की रही। कला निर्देशन साहेब श्रीवास्तव व प्रखर श्रीवास्तव का था। रूपसज्जा हरि सिंह खोलिया का था। डॉ. माला कपूर ‘गौहर’ का विशेष सहयोग रहा। नाटक के 35 कलाकारों का डेढ़ घंटे के इस नाटक में नौजवानों की संख्या सर्वाधिक थी।
नाटक में काम करने वाले कलाकारों में तनुपाल, शिवम सिंघल, अभिषेक त्यागी, कुमार सौरभ, राजीव वैद, सिमरन मिश्रा, रूकेशव साधना, बालकृष्ण श्रीवास्तव, निशांत शर्मा, अनिरुद्ध शर्मा, विनय कुमार, नेहा पाल, साक्षी देशवाल, मनु वर्मा, कल्याणी मिश्रा, जतिन शर्मा, श्रेयस अग्निहोत्री, ऋषभ सहगल, नीरज शर्मा, इमप्रीत सिंह, शौर्य केसरवानी, राहुल, सुभाष शर्मा, तरुण योगी, आभास, प्रवीण डहल, निखिल, दिव्यांशु भट्ट, अमन, देव आदि प्रमुख थे।

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