प्रो. (डॉ. ) राजेंद्र प्रसाद गुप्ता
(बिहार विधान परिषद् में सत्तारूढ़ दल के उपनेता)
दिन में इधर रामलीला मैदान से ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ की दहाड़ भरी गई और उधर वामपंथी नेताओं को छोड़कर सरकार द्वारा तानाशाही प्रतिक्रिया स्वरूप रातों–रात लोकनायक जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेई, मोरार जी देसाई, राज नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, मधु लिमए, जार्ज फर्नांडिस इत्यादि विपक्ष के बड़े नेताओं की गिरफ्तारी शुरू हो गई। वामपंथी नेता जो बार-बार बोलने की आजादी और संविधान की दुहाई देते रहते हैं, उन लोगों ने इस तानाशाही का पूर्ण समर्थन कर व्यक्ति और मीडिया के मुंह पर ताला लगवा दिया था। मौलिक अधिकार क्या होता है, ये पूरे भारत को आपातकाल में समझ आया, जब कुछ भी बोलने, लिखने या अभिव्यक्त करने का अधिकार रातोंरात छीन गया।
25 जून सन् 1975 की वह रात भारत के लोकतंत्र पर कलंक की रात के रूप में याद की जाएगी। बाबा साहब अंबेडकर द्वारा देश को दिए गए पवित्र संविधान को शक्तिहीन कर दिया गया था। संविधान की पूरी तरह अवहेलना करते हुए, कैबिनेट से सहमति लिए बिना ही, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा से संबध्द कागजात पर राष्ट्रपति से हस्ताक्षर करवा लिया और पूरे देश को जेल बना डाला। गांधीवाद का माला जपने वाली कांग्रेस ने महात्मा गांधी के ही आदर्शों की एक झटके में हत्या कर दी। अखबार में, रेडियो पर या टीवी में वही सुनाई या दिखाई देता था, जो सरकार चाहती थी। आकाशवाणी उस समय इंदिरावाणी बन गई थी। विपक्ष की आवाज दबाने के लिए इंदिरा गांधी ने संसद के दोनों सदनों में प्रश्नकाल पर रोक लगा दिया। आपातकाल में ही 38वां संविधान संशोधन करके प्रधानमंत्री के चुनाव की जांच करने का अधिकार छीन लिया।
आपातकाल की घोषणा के अनेक कारण हो सकते हैं, किंतु तात्कालिक कारण बना उच्च न्यायालय, इलाहाबाद का फैसला । देश उस समय महंगाई, भ्रष्टाचार, परिवारवाद का गहरा दंश झेल रहा था। बिहार और गुजरात में चरम पर पहुंच चुका छात्र आंदोलन धीरे धीरे लोकनायक स्व. जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में पूरे देश भर में जन आंदोलन का रूप ले रहा था। तब तक 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले में न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को निरस्त कर दिया। साथ ही उन्हें 6 वर्षों के लिए चुनाव लड़ने के अधिकार से भी वंचित कर दिया। उसके बाद सत्ता खोने के डर से बेचैन होकर उन्होंने आनन फानन में देश पर आपातकाल थोप दिया ।
21 महीने के उस भयानक अत्याचार को झेलने के बाद 1977 में अवसर मिलते ही जनता ने कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंका और पहली बार मोरार जी भाई देसाई के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी जनता पार्टी की सरकार बनी। तुरंत ही प्राथमिकता से आपातकाल के दुष्परिणामों की जांच के लिए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे. सी. शाह के नेतृत्व में आयोग गठन हुआ। शाह आयोग की रिपोर्ट एवं सदन में रखे गए साक्ष्यों के अनुसार, आपातकाल में पूरा देश भयानक प्रताड़ित हुआ। विवादास्पद परिवार नियोजन के नाम पर 1.1 करोड़ से भी अधिक लोगों की जबरन नसबंदी कराई गयी। उसमें 82 लाख से अधिक पुरुष और लगभग 30 लाख महिलाएं थीं, जिसमें हजारों नाबालिग किशोर, अविवाहित व वृद्ध लोग भी थे। जिलावार लगभग 50 हजार का लक्ष्य दिया गया। अलग अलग अधिकारियों, कर्मचारियों, शिक्षकों और चिकित्सकों सहित कई लोगों के ऊपर कुछ न कुछ लक्ष्य जबरदस्ती थोपा गया। उस जबरन बर्बरतापूर्ण नसबंदी के कारण अनेक लोगों की मृत्यु हुई।
देश में अनेक जगहों पर सौंदर्यीकरण के नाम पर झुग्गी बस्तियों के हजारों लोगों को झटके में बुलडोजर और गोलियां चलवाकर विस्थापित कर दिया गया। केवल दिल्ली में 30 हजार घर तोड़े गए, जिसके कारण 2.5 से 3 लाख परिवार तबाह हो गया।1 लाख 10 हजार से ज्यादा राजनीतिक एवं वैचारिक विरोधियों को गिरफ्तार कर जेल डालकर प्रताड़ित किया गया । जेल में जगह कम पड़ी तो विद्यालय, महाविद्यालय, धर्मशालाएं आदि को अस्थाई जेल बना दिया गया। अनेक बड़े नेताओं सहित हजारों राजनीतिक कार्यकर्ता नजरबंद कर दिए गए।
आपातकाल घोषणा के दो दिन बाद ही संजय गांधी ने इंद्र कुमार गुजराल को हटाकर अपने अधिक करीबी विद्या चरण शुक्ला को सूचना एवं प्रसारण मंत्री बना दिया। अध्यादेश की संवैधानिक शक्ति का भरपूर दुरुपयोग करते हुए प्रेस पर प्री सेंसरशिप लगा दिया गया। अखबारों के कार्यालय में सरकारी अधिकारी बैठा दिए गए। सेमिनार और ओपिनियन का प्रकाशन बंद कर दिया गया। 3800 समाचार पत्रों का डिक्लेरेशन जब्त कर लिया गया। 327 पत्रकारों को मीसा के तहत जेल में डाल दिया गया। 290 अखबारों के विज्ञापन बंद कर दिए गए। ब्रिटेन की ‘टाइम’ और ‘गार्जियन’ के 7 संवाददाताओं को देश से निष्कासित कर दिया गया। रातों रात अनेक समाचार एजेंसियों के टेलीफोन बिजली कनेक्शन आदि अन्य सुविधाएं छीन ली गई। 51 विदेशी पत्रकारों की मान्यता रद्द कर दी गई। 29 विदेशी पत्रकारों को भारत में आने से रोक दिया गया।
11 फरवरी 1976 को आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशन निषेध अधिनियम लाया गया। इस कानून को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती थी। मदरलैंड के संपादक को बहुत प्रताड़ित किया गया। अपने मनमुताबिक खबर छापने के लिए देश के चार बड़ी-बड़ी समाचार एजेंसियों का विलय कर दिया गया। पीटीआई, यू एन आई, हिंदुस्तान समाचार और समाचार भारती का विलय कर ‘समाचार’ नमक एजेंसी बनाई गई। जनता पार्टी की सरकार आने के बाद अप्रैल 1978 में इन समाचार एजेंसियों को पुनः मुक्त किया गया।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हत्या का विरोध जताते हुए द इंडियन एक्सप्रेस, द स्टेट्समैन जैसे अनेक समाचार पत्र ने संपादकीय का स्थान रिक्त छोड़ दिया। कुलदीप नैयर, देवेंद्र स्वरूप, श्याम खोसला इत्यादि पत्रकार जो प्री सेंसरशिप का विरोध किए, उनको सरकारी तंत्रों द्वारा भयानक प्रताड़ना दी गई। ऐसे तानाशाही की स्थिति में भी वामपंथियों के साथ कुछ नामी पत्रकार जैसे द हिन्दू के संपादक जी कस्तूरी, खुशवंत सिंह इत्यादि ने इंदिरा गांधी के इस निर्णय का पुरजोर समर्थन किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं राष्ट्रहित के विचार से जुड़े पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को भारी प्रताड़ना दी गई। पाञ्चजन्य, ऑर्गनाइजर, राष्ट्रधर्म, युगधर्म, पंजाब केसरी आदि को विशेष रूप से प्रताड़ित किया गया। फिर भी भूमिगत पत्रकारिता के माध्यम से अनेक पत्रकारों ने प्रताड़ना झेलते हुए अंत तक विरोध जारी रखा और देश को जागृत करते रहे।
पूरा देश मिलकर आपातकाल का पुरजोर विरोध किया। आपातकाल समाप्त होने के बाद आम चुनाव हुए। इसमे इंदिरा गांधी को करारी हार का सामना करना पड़ा। मोरार जी भाई देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। नई सरकार ने लोकतंत्र को पुनः प्रतिष्ठित करते हुए, जनता, मीडिया, साहित्य, कला इत्यादि क्षेत्रों को उनका मौलिक अधिकार प्रदान किया, जिसे कांग्रेस द्वारा छीन लिया गया था। सरकार ने आपातकाल में लाए गए अनेक संशोधनों को निरस्त कर भारत के पवित्र संविधान की रक्षा की।
हमारे पूर्वजों ने बहुत संघर्ष से हमारे संविधान को बचाया है, इसलिए आज हम अपने लोकतंत्र और संविधान पर गर्व कर पाते हैं। आगे पुनः ऐसी स्थिति न आए और भारत का लोकतंत्र और अधिक सशक्त एवं परिपक्व हो, इसे सुनिश्चित करने हेतु देशवासियों को ऐसी दुर्घटनाओं के प्रति लगातार जागृत करते रहने की आवश्यकता है। पिछले वर्ष सदन में माननीय उप राष्ट्रपति श्री धनकड़ जी ने आपातकाल पर संवाद के दौरान भारत सरकार से आग्रह किया कि आपातकाल की जांच के लिए गठित की गई जेसी शाह आयोग की रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखा जाए और पूरे देशवासियों को इसके परिणाम से अवगत कराया जाए ताकि पुनः बिना उचित कारण अपनी सत्ता के लिए कोई भी भारत में आपातकाल लागू करने की हिम्मत न कर सके।
भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने तीसरे कार्यकाल का शपथ लेते ही संसद में पहली चर्चा में पूरे देश से आह्वान करते हुए भारत, भारत के संविधान और भारतीय लोकतंत्र की सुरक्षा करने का संकल्प करवाया। उन्होंने कहा कि दुबारा हम किसी को भी हमारे देश, हमारे संविधान और लोकतंत्र का गला घोंटने नहीं देंगे। इसलिए हम सभी का ये दायित्व है कि इस घाव के दर्द से बचे रहने के लिए सतत सावधान रहें ।
आपातकाल: जब रातों रात पूरा देश जेल बन गया
