‘बोया बीज बबूल का आम कहां से खाय’ संत कबीर की यह पंक्तियां धर्म को लेकर कड़वे बोल बोलने वालों पर सटीक बैठती हैं। सनातन धर्म और भगवान राम को लेकर समाज को बांटने वाली हरकतें समाजिक सौहार्द को बिगाड़ने का ही काम करती हैं।ऐसे में धर्म के सहारे सियासत में कामयाबी पाने का रास्ता क्या आसान हो जाता है? इस सवाल का जवाब अगर हां में दिया जाए तो शायद गलत नहीं होगा। धर्म से आस्था जुड़ी होती है। मनोविज्ञान कहता है कि समान धर्म के लोग आपस में औरों की अपेक्षा अपने को ज्यादा करीब पाते हैं।
अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनने के बाद जब दक्षिण से राम भक्तों का रेला आना शुरू हुआ तो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के कान खड़े हो गए। द्रमुक और अन्नाद्रमुक भले ही पेरियार के आत्मसम्मान आंदोलन की उपज हों लेकिन कालांतर में यह सोच उत्तर दक्षिण के बीच खाई बनाती जा रही है। सनातन धर्म तो सहिष्णुता के ताने बाने में रहता आया है। यह धर्म वसुधैव कुटुम्बकम के मंत्र के साथ फलता फूलता रहा। लेकिन, द्रविड़ अस्मिता की सोच हिन्दू विरोध की मानसिकता से उबर नहीं सकी। आम द्रविड़ नागरिक इस पचड़े में इसलिए नहीं पड़ना चाहता क्योंकि उनके बच्चों को रोजी रोटी के लिए दक्षिण से निकलकर शेष भारत में जाना ही होगा। नफरत की राजनीति उनके लिए हितकर नहीं रहेगी। यही कारण है कि तमिलनाडु, आंध्र तेलंगाना, कर्नाटक और केरल के लोग भी मनोयोग से हिन्दी सीख रहे हैं।
स्टालिन की क्यों बढ़ी चिंता
दक्षिण के हिन्दुओं में भगवान राम के प्रति बढ़ते श्रद्धाभाव से स्टालिन को अपनी राजसत्ता पर क्या संकट नजर आने लगा है? दरअसल मुख्यमंत्री स्टालिन की पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) तमिलनाडु में हिन्दू विरोध के बीज बोकर सत्ता की फसल काट रही है। 2026 में तमिलनाडु विधानसभा के चुनाव होने हैं। इसीलिए भी स्टालिन हिन्दू विरोध की गतिविधियों में सक्रिय हैं। जब हिन्दू विभाजित होता है तो हिन्दू विरोधी विजयी होते हैं। दक्षिण के हिन्दुओं को तमिल और हिन्दी के प्रथकतावादी नारों से भ्रमित और विभाजित करके ही स्टालिन सत्ता पाते रहे हैं। अब तमिल हिन्दू जाग रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के मिले जुले अभियान का ही यह नतीजा है कि धर्म आधारित नफरत का काफी शमन हुआ है। तमिल हिन्दू सच्चाई से वाकिफ होता जा है। राजनीति के पेंच उसके भी समझ में आ रहे हैं।
ग्लोबल मुथामिज मुरुगन सम्मेलन
अयोध्या के राममंदिर में दर्शन के लिए दक्षिण के धर्मप्रेमी तमिलों के उमड़ने से चिंतित स्टालिन ने हाल ही में तमिलनाडु के पलानी शहर में ग्लोबल मुथामिज मुरुगन सम्मेलन का आयोजन किया। अयोध्या में राम मंदिर की भव्यता से चकित स्टालिन का लक्ष्य तमिल देवता मुरुगन की महिमा को और बढ़ाना है। स्टालिन का लक्ष्य सम्मेलन के माध्यम से दुनिया भर के भगवान मुरुगन के भक्तों को एकजुट करना और उनके मूल सिद्धांतों का प्रचार प्रसार करने के बहाने अपनी सियासत को साधना है। सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए स्टालिन ने तमिलनाडु के मंदिरों में श्रद्धालुओं से समान व्यवहार और तमिल भाषा को प्राथमिकता देने पर जोर दिया।
कौन हैं भगवान मुरुगन
बुंदेलखंड में एक कहावत है- गुड़ खाएं और गुलगुलों से परहेज करें। द्रमुक नेता यही कर रहे हैं। हिन्दुओं के आराध्य देव भगवान राम को शत्रु बताते हैं और शिवपुत्र भगवान मुरुगन को पूजते हैं। महादेव पुत्र कार्तिकेय को ही दक्षिण भारत में भगवान मुरुगन के नाम से जाना जाता है। अब जब भगवान मुरुगन शिव पुत्र कार्तिकेय ही हैं। तो फिर हिन्दू विरोध का औचित्य ही समझ में नहीं आता ? हिन्दू मायथोलॉजी में देवाधिदेव शिव भगवान राम को पूजते हैं। वहीं लंका विजय के लिए समुद्र तट पर पहुंच कर भगवान राम शिवलिंग की विधि विधान से पूजा करते हैं। यानि कहा जा सकता है कि सनातन धर्म में समस्त देवी देवताओं ने भी परस्पर सम्मान का संदेश दिया है। तभी तो जब द्रमुक नेता सनातन धर्म के खिलाफ जहर उगलते हैं तब उनके उत्तर दक्षिण के तर्क तमिल हिन्दुओं के ही गले नहीं उतरते।
द्रमुक नेताओं के बिगड़े बोल
जब भी अवसर मिलता है द्रमुक नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री ए राजा भगवान राम और सनातन धर्म पर हमला करने से नहीं चूकते। याद होगा कुछ दिन पहले ही राजा ने कहा था- ‘ये आपका जयश्री राम है। आपकी भारत माता की जय है। हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे। तमिलनाडु इसे मंजूर नहीं करेगा। उनसे कह दो हम सब राम के शत्रु हैं।’ ऐसे भड़काऊ और अलगाववादी विचार भारत की जनता की तो छोड़िए गठबंधन के साथियों को भी असहज करते रहे हैं। इन बयानों की हर स्तर पर निंदा हुई। गठबंधन की साथी कांग्रेस ने भी राजा के बयान को निजी विचार बताया। ऐसे नफरती भाषण के लिए नेताओं को कठघरे में खड़ा किया ही जाना चाहिए।
सनातन धर्म की आलोचना
तमिलनाडु के मुख्य मंत्री एमके स्टालिन के बेटे और मंत्री उदय निधि स्टालिन भी सनातन धर्म को डेंगू और मलेरिया बताते रहे हैं। वे यहां तक कह जाते हैं कि सनातन धर्म का विरोध नहीं, बल्कि पूरी तरह खात्मा कर दिया जाना चाहिए। वे शायद नहीं जानते कि तमाम हमलों के बाद भी सनातन धर्म का बाल बांका नहीं हो पाया। ऐसे बयान पर भाजपा के साथ हिंदू संगठनों की तीखी प्रतिक्रिया होनी ही थी। इसके बाद भी वह अपने बयान पर कायम हैं। उदयनिधि के स्वर में स्वर मिलाते हुए ए. राजा ने भी सनातन धर्म को एड्स और कुष्ठ रोग जैसा बताया था। यह राजनीति ही है कि एमके स्टालिन समेत द्रमुक के अन्य नेता उदय निधि और राजा के बेतुके बयानों को सही ठहराने में आगे रहे। वोटों की खातिर राजनीति जो ना कराए कम है।
सामाजिक एकता में धर्म की भूमिका
140 करोड़ में से 80 फीसदी हिन्दुओं की आबादी वाले भारत में धर्म और भाषा की विविधता ऐसी है कि हर बीस किलोमीटर पर तो यहां बोली बदल जाती है। सनातन धर्म देश को जोड़ने का काम करता है। भारत के किसी भी कोने में चले जाइए आपको हिन्दू देवी देवताओं के मंदिर और मूर्तियों को पूजते लोग मिल ही जाएंगे। राम की महिमा ही ऐसी है कि श्रद्धा से शीष झुक जाता है। शायद यह राम नाम की महिमा का ही करिश्मा है कि श्रद्धालु धर्म…पंथ…जाति की लक्ष्मण रेखाओं को लांघकर राम लला के दर्शन करने अयोध्या पहुंच रहे हैं। जो राम नाम के प्रखर आलोचक थे वो भी परिवार के साथ देर सबेर राम लला की परिक्रमा कर आए। दरअसल राम का चरित्र और नाम प्रेम… श्रद्धा… सद्भाव और सहयोग का प्रतीक है। नफरत की यहां कोई जगह है ही नहीं।
सबके राम, सभी राम के
अगर कोई हिन्दू है तो उसके मन में राम के प्रति श्रद्धा होगी ही। यह सच है कि राम किसी खास के नहीं सबके आराध्य हैं। यहां 1990 की राम रथ यात्रा की चर्चा करना समीचीन लगता है। मैं लाल कृष्ण आडवाणी की राम रथ यात्रा का साक्षी रहा हूं। नवभारत टाइम्स ने मुझे धनवाद (बिहार) से रथयात्रा का जिम्मा सौंपा था। उस समय राम की महिमा के कदम कदम पर दर्शन हुए। तब झारखंड अस्तित्व में नहीं आया था। तबके बिहार के आदिवासी अंचलों से राम रथ यात्रा का दर्शन पाने के लिए घनघोर अंधेरे में भी आदिवासी परिवार दीपक जलाकर सड़क किनारे इंतजार करते मिले। जैसे ही रथयात्रा वहां से गुजरती क्या बच्चे, क्या बूढ़े और क्या महिलाएं श्रद्धा से झुककर राम नाम का जयघोष कर उठते। राम की एक झलक पाने को लोग भूखे- प्यासे ही नहीं नंगे बदन ठिठुराती सर्दी में पंक्तिबद्ध इंतजार करते हुए डटे रहे। राम के नाम पर सामाजिक समरसता का यह भाव ही हिन्दुत्व की ताकत और खूबसूरती है। आज मोदी सरकार के मुखर कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह ही आडवाणी की राम रथ यात्रा के बिहार में संयोजक थे।
हालांकि तब यात्रा के अपने गंतव्य पर पहुंचने से पहले ही तत्कालीन लालू सरकार ने आडवाणी को हिरासत में ले लिया। लेकिन राम मंदिर मुद्दे पर भाजपा की पानी पी पी कर आलोचना करने वाले कांग्रेस और वामपंथ के अनेक बड़े चेहरे भी राम रथ यात्रा के दर्शन करने पटना के चौराहे पर सपत्नीक पहुंचे थे। आम जनता किसी भी धर्म और जाति की हो…प्रेम, शांति और सद्भाव के साथ रहना चाहती है। सियासत ही इस धार्मिक एकता में सत्ता या वर्चस्व के इरादे से दरार डालती रही है। नेता और राजनीतिक दलों को भले ही इससे लाभ मिल जाता हो, लेकिन जनता को तो नुकसान ही उठाना पड़ता है।