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हम भारतीय चाहें जितना भी गर्व कर सकते हैं कि महात्मा गांधी जैसी पवित्र शख्सियत का संबंध भारत से है। हालांकि , उनके प्रति सम्मान और आदर का भाव तो सारी दुनिया ही रखती है।  वे अपने जीवनकाल और उसके बाद भी  करोड़ों लोगों को अपने सत्य और अहिंसा के विचारों से प्रभावित करते हैं। अब भी सारी दुनिया में अनगिनत लोग गांधी जी को ही अपना आदर्श मानते हैं। इसी तरह से न जाने कितने लोग गांधी जी के रास्ते पर चलते हुए अपने – अपने ढंग से  संसार को बेहतर बनाने की कोशिशें कर रहे हैं। उनमें भी अब गांधी जी की छवि दिखाई देती है। कात्सू सान उन गांधीवादियों में शामिल हैं जो विश्व बंधुत्व, प्रेम और शांति का संदेश देने के लिए भारत के गांवों, कस्बों, शहरों और महानगरों में घूमती हैं। आप चाहें तो 88 साल की कात्सू सान को देश की सबसे खास गांधीवादी व्यक्तित्वों में एक मान सकते हैं। कात्सू सान राजघाट पर होने वाली सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं में बुद्ध धर्म ग्रंथों से प्रार्थना पढ़ती हैं। उन्हें सब कात्सू बहन कहते हैं।

गांधी जी के सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को लेकर उनकी निष्ठा निर्विवाद है। वह गुजरे 60 वर्षों से भी ज्यादा सालों से गांधी जी को पढ़ रही हैं और दुनिया को उनके बताए रास्ते पर चलने का संदेश दे रही हैं। कात्सू सान मूलत: जापानी नागरिक हैं। वह 1956 में भगवान बुद्ध के देश भारत में आईं थीं , ताकि ; उन्हें वे और गहराई से जान लें। एक बार यहां आईं तो उनका गांधीवाद से ऐसा साक्षात्कार हो गया कि उसके बाद तो उन्होंने भारत में ही बसने का निर्णय ले लिया। उनमें आप अपनी मां के चेहरे को देख सकते हैं। भारत को लेकर उनकी दिलचस्पी भगवान बौद्ध के चलते ही बढ़ी थी। पर अब तो उन्हें भारत ही अपना देश लगता है। वह कहती हैं कि भारत के   कण-कण में पवित्रता है। भारत ही वास्तव में  संसार का आध्यात्मिक विश्व गुरु है। भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र  पर वो कहती हैं कि मुझे तो दुनिया में कोई अन्य देश मिला ही नहीं , जहां पर सरकारी कार्यक्रमों में सर्वधर्म प्रार्थना सभा आयोजित होती हो। भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ पर सभी धर्मों का बराबरी का सम्मान मिलता  है। कात्सू सान के मुताबिक भगवान बुद्ध और गांधी जी दोनों ही के रास्ते आपको एक दिशा में ही लेकर जाते हैं। इसीलिये ये दोनों सदैव प्रासंगिक रहने वाले हैं। दोनों का जीवन पीड़ा को कम करने और समाज से अन्याय को दूर करने के लिए ही समर्पित रहा था।

इसी प्रकार गांधी जी की दर्जनों मूर्तियां बनाने वाले महान मूर्ति शिल्पकार राम सुतार जी  बचपन से ही गांधी के रास्ते पर चलने लगे थे।वे जब गांधी जी की किसी प्रतिमा को शक्ल दे रहे होते हैं,तो उन्हें लगता है मानो वे गांधी से संवाद कर रहे हों। उन्हें गांधी जी की प्रतिमाओं पर काम करते हुए अपार आनंद मिलता है। संसद भवन के प्रांगण में लगी उनकी बनाई गांधी जी की मूर्ति तो बेजोड़ है। इसमें बापू ध्यान की मुद्रा में हैं। यह असाधारण मूर्ति 17 फीट ऊंची है। उनकी कृतियां मुंह से बोलती हैं। उन्होंने ही पटना के गांधी मैदान में स्थापित बापू की मूर्ति को भी तैयार किया था। 

इसी तरह ब्रदर सोलोमन जॉर्ज भी पक्के गांधीवादी हैं। वे गांधी जी को ही अपना मार्गदर्शक मानते हैं। उन्हें गांधी जी इसलिए भी अपने लगते हैं क्योंकि वह  12 मार्च 1915 को अपनी पहली राजधानी यात्रा के दौरान सेंट स्टीफंस कॉलेज में ही ठहरे थे। देश के कई शहरों में शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के लिए काम कर रही संस्था दिल्ली ब्रदरहुड सोसाइटी से जुड़े हुए हैं ब्रदर सोलोमन। इसी संस्था ने सेंट स्टीफंस क़ॉलेज स्थापित किया था। ब्रदर सोलोमन बताते हैं कि गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में ईसाई मिशनरी जोसेफ डोक से  भी मिले थे जिन्होंने उनकी पहली जीवनी लिखी। वहां ही उनकी दीनबंधु सीएफ एंड्रयूज से भी उनकी मुलाकात हुई। उन्हें लगता है कि गांधी जी विश्व भर में शांति के सबसे बड़े प्रेरक हुए  हैं जिन्हें दुनिया ने बुद्ध और ईसा मसीह के बाद देखा है। गांधी जी आज के दौर में भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि वे अपने जीवन काल में थे। ब्रदर सोलोमन की पसंदीदा गांधीवादी शिक्षाओं में से एक है, “अगर कोई दुश्मन आपके बाएं गाल पर वार करेतो उसे अपना दायां गाल दे दो।”

आपको डॉ. विनय अग्रवाल में भी गांधी जी की छाया नजर आती है। पेशे से मेडिसिन के क्षेत्र से जुड़े हुए डॉ. अग्रवाल अपने स्तर पर लगातार वाल्मीकि समाज के नौजवानों को रोजगार और उन्हें शिक्षित करने के लिए प्रयासरत रहते हैं। उन्हें दलितों के हक में गांधी जी के किए  काम प्रभावित करते हैं। गांधी जी ने मंदिरों में दलितों के प्रवेश के लिए आंदोलनों का समर्थन किया। डॉ. अग्रवाल का बचपन राजधानी के कृष्णा नगर में बीता। उस दौरान उन्होंने वाल्मीकि समाज की बदहाली को अपनी  आंखों से देखा। उसके बाद वे जब सक्षम हुए तो उन्होंने वाल्मीकि समाज के लिए ठोस काम करने शुरू  किये। इसकी प्रेरणा उन्हें गांधी जी से ही मिली। वे कहते हैं कि गांधी की आत्मकथा पढ़ने वाले भलीभांति जानते है कि वे बचपन से ही अस्पृश्यता को नहीं मानते थे। 

अब 62 वर्षीय कृष्णा विद्यार्थी को ही लें। वे राजधानी के पंचकुइयां रोड पर स्थित वाल्मीकि मंदिर के काम-काज को देखते हैं। वाल्मीकि मंदिर और गांधी जी का गहरा संबंध रहा है ।वे इसी मंदिर परिसर के एक साधारण से कमरे में 1 अप्रैल 1946 से लेकर 10 जून 1947 तक रहे। कृष्ण विद्यार्थी बीते चालीस सालों से उस कमरे को रोज सुबह साफ- स्वच्छ करते हैंजिसमें   गांधी जी रहते थे। वाल्मीकि समाज से रिश्ता रखने वाले कृष्ण विद्यार्थी  कहते हैं कि गांधी जी वाल्मीकि समाज की दशा को सुधारने के लिए जीवन पर्यंत सक्रिय रहे। गांधी जी ने वाल्मीकि परिवारों के बच्चों को यहां पढ़ाया भी।   उन्हें इस बात का अफसोस है कि जब गांधी जी 7 सितंबर1947 को अंतिम बार दिल्ली आए तो उन्हें वाल्मीकि बस्ती की बजाय बिड़ला हाउस में लेकर जाया गया। तब कहा गया कि वाल्मीकि बस्ती में उनके लिए असुरक्षित है। पर जो जगह कहने को सुरक्षित थीवहां पर ही उन्हें मार डाला गया। कृष्ण विद्यार्थी के नेतृत्व में यहां पर हरेक 2 अक्तूबर और 30 जनवरी को सर्वधर्म प्रार्थना सभा भी आयोजित होती है। वे खुद गांधी जी के विचारों के प्रसार-प्रचार के लिए देश के कोने-कोने में जाते रहते हैं।

बेशकये सब महान शख्सियतें गांधी जी के विचारों को देश-दुनिया में लेकर जा रही हैं। देश-दुनिया में इनके जैसे अनगिनत गांधी वादी सक्रिय हैं। इनमें हमें गांधी जी के दर्शन होते हैं।

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